जिन-सूत्र, भाग: दो – Jin Sutra, Vol. 2

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ओशो ने भगवान महावीर के समण-सुत्तं पर बोली प्रवचन माला में कुल बासठ प्रवचन दिए हैं। भाग द्वितीय में कुल पंद्रह प्रवचनों का अपूर्व संकलन है।
ओशो ने भगवान महावीर के समण-सुत्तं पर बोली प्रवचन माला में कुल बासठ प्रवचन दिए हैं। भाग द्वितीय में कुल पंद्रह प्रवचनों का अपूर्व संकलन है।

जीवन के रास्ते पर जिन्होंने अपने को परिपूर्ण मिटा दिया है, वे ही केवल ऐसा प्रकाश बन सके हैं जिनसे भूले-भटकों को राह मिल जाये। जिसने अपने को बचाने की कोशिश की है, वह दूसरों को भटकाने का कारण बना है। और जिसने अपने को मिटा लिया, वह स्वयं तो पहुंचा ही है; लेकिन सहज ही, साथ-साथ, उसके प्रकाश में बहुत और लोग भी पहुंच गये हैं। महावीर किसी को पहुंचा नहीं सकते; लेकिन जो पहुंचने के लिए आतुर हो वह उनकी रोशनी में बड़ी दूर तक की यात्रा कर सकता है। यात्री को स्वयं निर्णय लेना पड़े। जाना है, तो प्रकाश के साथ संबंध बनाने पड़े। अभी हमने जीवन-जीवन, जन्मों-जन्मों अंधेरे के साथ संबंध बनाये हैं। धीरे-धीरे अंधेरे के साथ हमारे संबंध, संस्कार हो गये हैं, स्वभाव हो गए हैं। अंधेरा हमें सहज ही आकर्षित कर लेता है। एक तो रोशनी हमें दिखाई ही नहीं पड़ती, शायद अंधेरे में रहने के कारण हमारी आंखें रोशनी में तिलमिला जाती हैं; या अगर दिखाई भी पड़ जाये तो भीतर बड़ा भय पैदा होता है। अपरिचित का भय। नये का भय। अनजान का भय। तो हम तो बंधी लकीर में जीते हैं--कोल्हू के बैल की तरह जीते हैं। कोल्हू का बैल चलता बहुत है, दिनभर चलता है; पहुंचता कहीं भी नहीं। वर्तुलाकार जो घूमेगा, वह पहुंचेगा कैसे? इसलिए हमने जीवन को चक्र कहा है। गाड़ी के चाक की भांति, घूमता है, घूमता रहता है; कभी एक आरा ऊपर आता है, कभी दूसरा आरा नीचे चला जाता है--लेकिन वस्तुतः कोई भेद नहीं पड़ता। कभी क्रोध ऊपर आया, कभी मोह ऊपर आया; कभी प्रेम झलका, कभी घृणा उठी; कभी ईर्ष्या से भरे, कभी बड़ी करुणा छा गई; कभी बादल घिरे, कभी सूरज निकला--ऐसी धूप-छांव चलती रहती है। एक आरा ऊपर, दूसरा आरा नीचे होता रहता है, और हम चाक की भांति घूमते रहते हैं। लेकिन हम हैं वहीं, जहां हम थे। हमारे जीवन में यात्रा नहीं है। तीर्थयात्रा तो दूर, यात्रा ही नहीं है। बंद डबरे की भांति हैं, जो सागर की तरफ जाता नहीं। डबरा डरता है। सागर में खो जाने का डर है। और डर सच है, क्योंकि डबरा खोयेगा सागर में। लेकिन उसे पता नहीं, उसके खोने में ही सागर का हो जाना भी उसे मिलने वाला है। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज