जिन-सूत्र, भाग: तीन – Jin Sutra, Vol. 3

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ओशो ने भगवान महावीर के समण-सुत्तं पर बोली प्रवचन माला में कुल बासठ प्रवचन दिए हैं। भाग तृतीत में कुल सोलह प्रवचनों का अपूर्व संकलन है।
ओशो ने भगवान महावीर के समण-सुत्तं पर बोली प्रवचन माला में कुल बासठ प्रवचन दिए हैं। भाग तृतीत में कुल सोलह प्रवचनों का अपूर्व संकलन है।

फिर हम महावीर के तीर्थ की चर्चा करें। ऐसे सत्पुरुषों को फिर-फिर सोचना जरूरी है। सोच-सोच कर सोचना जरूरी है। बार-बार उनका स्वाद हमारे प्राणों में उतरे। हमें भी वैसी प्यास जगे। जिस प्यास ने उन्हें परमात्मा बनाया, वही प्यास हमें भी परमात्मा बनाये। क्योंकि अंततः प्यास ही ले जाती है। जब प्यास इतनी सघन होती है कि सारा प्राण प्यास में रूपांतरित हो जाता है, तो परमात्मा दूर नहीं। परमात्मा पाने के लिए कुछ और चाहिए नहीं। ऐसी परम प्यास चाहिए कि उसमें सब कुछ डूब जाए, तल्लीन हो जाए। तो फिर महावीर की चर्चा करें। और महावीर की फिर चर्चा करने में यह बात सबसे पहले समझ लेनी जरूरी है कि महावीर ने श्रवण पर बड़ा जोर दिया है। महावीर कहते हैं, सोया है आदमी, तो कैसे जागेगा? कोई पुकारे उसे, कोई हिलाये-डुलाये, कोई जगाये। कोई उसे खबर दे कि जागरण का भी कोई लोक है। सोया आदमी अपने से कैसे जागेगा। सोया तो जागने का भी सपना देखने लगता है। सोया तो सपने में भी सोचने लगता है, जाग गये! भेद कैसे करेगा सोया हुआ आदमी कि जो मैं देख रहा हूं वह स्वप्न है या सत्य? कोई जागा उसे जगाये। कोई जागा उसे हिलाये। इसलिए महावीर कहते हैं, सुनकर ही सत्य की यात्रा शुरू होती है। महावीर ने कहा है, मेरे चार तीर्थ हैं। श्रावक का, श्राविका का; साधु का, साध्वी का। लेकिन पहले उन्होंने कहा, श्रावक का, श्राविका का। श्रावक का अर्थ है, जो सुनकर पहुंच जाए। साधु का अर्थ है, जो सुनकर न पहुंच सके, सुनना जिसे काफी न पड़े जिसे कुछ और करना पड़े। साधुओं ने हालत उल्टी बना दी है। साधु कहते हैं कि साधु श्रावक से ऊपर है। ऊपर होता तो महावीर उसकी गणना पहले करते। तो उसे प्रथम रखते। महावीर कहते हैं, ऐसे हैं कुछ धन्यभागी, जो केवल सुनकर पहुंच जाते हैं। जिन्हें कुछ और करना नहीं पड़ता। करना तो उन्हें पड़ता है जो सुनकर समझ नहीं पाते। तो करने वाला सुनने से दोयम है, नंबर दो है। इसे समझना। बुद्ध कहते थे, ऐसे घोड़ेे हैं कि जिनको मारो तो ही चलते हैं। ऐसे भी घोड़े हैं कि कोड़े की फटकार देखकर चलते हैं, मारने की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे भी घोड़े हैं कि कोड़े की छाया देखकर चलते हैं। फटकारने की भी जरूरत नहीं पड़ती। श्रावक को सुनना काफी है। उतना ही जगा देता है। तुमने किसी को पुकारा, कोई जग जाता है। पर किसी को हिलाना पड़ता है। किसी के मुंह पर पानी फेंकना पड़ता है। तब भी वह करवट लेकर सो जाता है। श्रावक है वह, जिसने सुनी पुकार और जाग गया। साधु है वह, जो करवट लेकर सो गया। जिसको हिलाओ, शोरगुल मचाओ, आंखों पर पानी फेंको। श्रवण--सम्यक-श्रवण--सुधी व्यक्ति के लिए पर्याप्त है। इशारा बहुत है बुद्धिमान को। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज