ध्यान विज्ञान – Dhyan Vigyan
"जो लोग शरीर के तल पर ज्यादा संवेदनशील हैं, उनके लिए ऐसी विधियां हैं जो शरीर के माध्यम से ही आत्यंतिक अनुभव पर पहुंचा सकती हैं। जो भाव-प्रवण हैं, भावुक प्रकृति के हैं, वे भक्ति-प्रार्थना के मार्ग पर चल सकते हैं। जो बुद्धि-प्रवण हैं, बुद्धिजीवी हैं, उनके लिए ध्यान, सजगता, साक्षीभाव उपयोगी हो सकते हैं।
लेकिन मेरी ध्यान की विधियां एक प्रकार से अलग हट कर हैं। मैंने ऐसी ध्यान-विधियों की संरचना की है जो तीनों प्रकार के लोगों द्वारा उपयोग में लाई जा सकती हैं। उनमें शरीर का भी पूरा उपयोग है, भाव का भी पूरा उपयोग है और होश का भी पूरा उपयोग है।
तीनों का एक साथ उपयोग है और वे अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग ढंग से काम करती हैं। शरीर, हृदय, मन—मेरी सभी ध्यान विधियां इसी शृंखला में काम करती हैं। वे शरीर पर शुरू होती हैं, वे हृदय से गुजरती हैं, वे मन पर पहुंचती हैं और फिर वे मनातीत में अतिक्रमण कर जाती हैं।"—ओशो
"तुम्हारे मन का हाल यह है कि मानो तुम फिल्म देखने गए हो। पर्दे पर फिल्म चल रही है और तुम उसे देखने में ऐसे तल्लीन हो कि तुम्हें फिल्म और कहानी के अतिरिक्त सब भूल जाता है। उस समय अगर कोई पूछ दे कि तुम कौन हो, तो तुम कुछ न कह सकोगे।
यही स्वप्न में घटता है। और यही हमारी जिंदगी है। फिल्म की घटना तो सिर्फ तीन घंटे की है, लेकिन स्वप्न-क्रिया जन्मों-जन्मों चलती है। और अचानक यदि सपना बंद भी हो जाए तो भी तुम नहीं पहचान पाओगे कि तुम कौन हो। अचानक तुम धुंधला-धुंधला अनुभव करोगे और भयभीत भी। तुम फिर फिल्म में लौट जाना चाहोगे, क्योंकि वह परिचित है। तुम उससे भलीभांति परिचित हो, तुम उसके साथ समायोजित हो।
क्योंकि जब स्वप्न तिरोहित होता है तो एक मार्ग खुलता है, खासकर झेन में जिसे त्वरित मार्ग, त्वरित बुद्धत्व का मार्ग कहते हैं। इन एक सौ बारह विधियों में कई ऐसी विधियां हैं जो त्वरित बुद्धत्व को प्राप्त करा सकती हैं।
लेकिन वह तुम्हारे लिए अति हो जा सकती है। और हो सकता है कि तुम उसे झेल न पाओ। इस विस्फोट में तुम मर भी सकते हो। क्योंकि सपनों के साथ तुम इतने समय से जी रहे हो कि उनके हटने पर तुम्हें याद ही नहीं रहेगा कि तुम कौन हो।" —ओशो
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
- गैर-यांत्रिक होना ही रहस्य है
- यौन-मुद्रा : काम-ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन की एक सरल विधि
- मौन और एकांत का इक्कीस दिवसीय प्रयोग
- ध्यान के भीतर ध्यान
- बहना-मिटना-तथाता ध्यान
Type | संकलन |
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Publisher | Divyansh Pub. |
ISBN-13 | 978-81-7261-169-9 |
Number of Pages | 192 |
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