शून्य की नाव – Shunya Ki Nav
ऑडियोपुस्तकें — अन्य प्रारूपों में भी उपलब्ध है:ई-पुस्तकें (English)
स्टॉक में
कर्म, ज्ञान व भक्ति पर राजकोट में ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन
कर्म, ज्ञान व भक्ति पर राजकोट में ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन
निश्र्चित ही आज तक जीवन को बंधन ही कहा गया है। लेकिन जीवन बंधन नहीं है। जो लोग जीवन को जीने की कला नहीं जानते, उनके लिए जीवन जरूर बंधन हो जाता है।… जीवन जंजीर नहीं है और जीवन से भिन्न कोई मोक्ष नहीं है।
जीवन को ही जो उसकी परिपूर्णता में जानने में समर्थ होता है, वह जीवन के मध्य, जीवन के बीच ही मोक्ष को उपलब्ध हो जाता है।
यह हो भी नहीं सकता है कि जीवन और मोक्ष में कोई विरोध हो। यह हो भी नहीं सकता कि जगत में कोई दो विरोधी सत्ताएं हों। यह हो भी नहीं सकता कि प्रभु और संसार में बुनियादी शत्रुता हो। कोई गहरी मैत्री का सेतु है। कोई एक ही सब संसार में, मोक्ष में प्रकट हो रहा है--देह में, आत्मा में; रूप में, अरूप में।
लेकिन हमारी असफलता, जीवन के फल को चखने की हमारी सीमा हमारे लिए बंधन बनती रही है। जीवन को जीने की कला ही हमने नहीं सीखी। बल्कि कला न जानने से जब जीवन तिक्त और बेस्वाद लगा तो हमने जीवन को ही तोड़ देने की कोशिश की, अपने को बदलने की नहीं।... मुक्त होना है तो स्वयं को बदलना पड़ता है, न कि जीवन को तोड़ना। मुक्त होना हो तो; स्वयं को आमूल बदलना पड़ता है। और स्वयं को जो आमूल बदलने को तैयार हो जाता है, वह पाता है कि जीवन एक धन्यता है, एक कृतार्थता है। वह परमात्मा के प्रति धन्यवाद से भर उठता है--इतना सुंदर है जीवन, इतना अद्भुत है, इतना रसपूर्ण, इतने छंद से भरा हुआ, इतने गीतों से, इतने संगीत से! लेकिन उस सबको देखने की क्षमता और पात्रता चाहिए। उस सबको देखने की आंखें, सुनने के कान, स्पर्श करने वाले हाथ चाहिए।
‘जीवन की कला’ से मेरा यही प्रयोजन है कि हमारी संवेदनशीलता, हमारी पात्रता, हमारी ग्राहकता, हमारी रिसेप्टिविटी इतनी विकसित हो कि जीवन में जो सुंदर है, जीवन में जो सत्य है, जीवन में जो शिव है, वह सब...वह सब हमारे हृदय तक पहुंच सके। उस सबको हम अनुभव कर सकें। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
---|---|
Type | फुल सीरीज |
The information below is required for social login
Sign In or Create Account
Create New Account