माटी कहै कुम्हार सूं – Mati Kahai Kumhar Soon
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ध्यान साधना शिविर, जूनागढ़ में ध्यान-प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन
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माटी कहै कुम्हार सूं – Mati Kahai Kumhar Soon
एक आश्चर्यजनक दुर्भाग्य मनुष्य-जाति के ऊपर रोज-रोज अपनी काली छाया बढ़ाता गया है। अब तो शायद हमें उस दुर्भाग्य का कोई पता भी नहीं चलता है। जैसे कोई जन्म से ही बीमार पैदा हो तो उसे स्वास्थ्य का कभी कोई पता नहीं चलता। जैसे कोई जन्म से ही अंधा पैदा हो, तो जगत में कहीं प्रकाश भी है, इसका उसे कोई पता नहीं चलता। ऐसे ही हम एक अदभुत अनुभव से जन्म के साथ ही जैसे वंचित हो गए हैं। धीरे-धीरे मनुष्य-जाति को यह खयाल भी भूलता गया है कि वैसा कोई अनुभव है भी। उस अनुभव को इंगित करने वाले सब शब्द झूठे और थोथे मालूम पड़ने लगे हैं।
ईश्वर से ज्यादा आज कोई शब्द थोथा और व्यर्थ है? धर्म से ज्यादा थोथा और व्यर्थ आज कोई शब्द है? मंदिरों से ज्यादा अनावश्यक, प्रार्थनाओं से ज्यादा व्यर्थ आज कोई और भाव-दशा है? मनुष्य के जीवन से सारा संबंध जैसे परमात्मा का समाप्त हो गया है!
इस दुर्भाग्य के कारण मनुष्य किस भांति जी रहा है--किस चिंता में, दुख में, पीड़ा में, परेशानी में--उसका भी हमें कोई अनुभव नहीं हो रहा है। और जब भी यह बात उठती है कि ईश्वर से मनुष्य का संबंध क्यों टूट गया है? पशु-पक्षी भी ज्यादा आनंदित मालूम होते हैं। पौधों पर खिलने वाले फूल भी आदमी की आंखों से ज्यादा प्रफुल्लित मालूम होते हैं। आकाश में उगे हुए चांद-तारे भी, समुद्र की लहरें भी, हवाओं के झोंके भी आदमी से ज्यादा आह्लादित मालूम होते हैं। आदमी को क्या हो गया है? अकेला आदमी इस बड़े जगत में रुग्ण, बीमार मालूम पड़ता है। लेकिन अगर हम पूछें कि ऐसा क्यों हो गया है? ईश्वर से संबंध क्यों टूट गया है? तो जिन्हें हम धार्मिक कहते हैं, वे कहेंगे: नास्तिकों के कारण, वैज्ञानिकों के कारण, भौतिकवाद के कारण, पश्चिम की शिक्षा के कारण ईश्वर से मनुष्य का संबंध टूट गया है।
ये बातें एकदम ही झूठी हैं। किसी नास्तिक की कोई सामर्थ्य नहीं कि मनुष्य का संबंध परमात्मा से तोड़ सके। यह वैसा ही है...और किसी भौतिकवादी की यह सामर्थ्य नहीं कि मनुष्य के जीवन से अध्यात्म को अलग कर सके। किसी पश्चिम की कोई शक्ति नहीं कि उस दीये को बुझा सके जिसे हम धर्म कहते हैं। यह वैसा ही है जैसे मेरे घर में अंधेरा हो और आप मुझसे पूछें आकर कि दीये का क्या हुआ? और मैं कहूं कि मैं क्या करूं! दीया तो मैंने जलाया, लेकिन अंधेरा आ गया और उसने दीये को बुझा दिया! तो आप हंसेंगे और कहेंगे, अंधेरे की क्या शक्ति है कि प्रकाश को बुझा दे!
अंधेरा आज तक कभी किसी प्रकाश को नहीं बुझाया है। मिट्टी के एक छोटे से दीये में भी उतनी ताकत है कि सारे जगत का अंधकार मिल कर भी उसे नहीं बुझा सकता है।
हां, दीया बुझ जाता है तो अंधेरा जरूर आ जाता है। अंधेरे के आने से दीया नहीं बुझता; दीया बुझ जाता है तो अंधेरा आ जाता है। —ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:ध्यान, प्रेम, प्रार्थना, अहोभाव, अहंकार, अभीप्सा, जीवन का अर्थ, विवाह, समर्पण, नया मनुष्य
Publisher | ओशो मीडिया इंटरनैशनल |
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ISBN-13 | 978-0-88050-969-5 |
Number of Pages | 143 |
File Size | 1.44 MB |
Format | Adobe ePub |
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