मन का दर्पण – Man Ka Darpan

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जीवन के विभिन्न पहलुओं पर दी गईं चार OSHO Talks का संग्रह
जीवन के विभिन्न पहलुओं पर दी गईं चार OSHO Talks का संग्रह

मन का दर्पण – Man Ka Darpan
जीवन यानी परमात्मा

धार्मिकता का अर्थ मेरी दृष्टि में सजगता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। न मंदिरों की पूजा और न प्रार्थना। न शास्त्रों का पठन और पाठन। सोया हुआ आदमी यह सब करता रहेगा, तो यह सब और सो जाने की तरकीबों से ज्यादा नहीं है।
लेकिन जागा हुआ आदमी पाता है--नहीं किसी मंदिर में जाता है पूजा करने फिर, बल्कि पाता है कि जहां वह है, वहीं मंदिर है। नहीं फिर किसी मूूर्ति में भगवान उसे देखने की और खोजने की जरूरत पड़ती है, बल्कि पाता है कि जो भी है और जो भी दिखाई पड़ता है, वही भगवान है।

धार्मिक आदमी वह नहीं है, जो मंदिर जाता हो। धार्मिक आदमी वह है कि जहां होता है, वहीं मंदिर को पाता है। धार्मिक आदमी वह नहीं है, जो प्रार्थना करता हो। धार्मिक आदमी वह है, जो पाता हो कि जो भी किया जाता है, वह प्रार्थना हो गई। धार्मिक आदमी नहीं है वह जो भगवान की खोज में कहीं भटकता हो, बल्कि आंख खोले हुए वह आदमी है, जो पाता है कि जहां भी मैं जाऊं, भगवान के अतिरिक्त कोई और से तो मिलना नहीं होता है। लेकिन यह होगा एक जागरूक-चित्तता में। और जागरूक-चित्तता ही जीवन की परिपूर्ण अनुभूति है।
मत पूछें मुझसे कि जीवन क्या है? और न जाएं किसी को सुनने जो समझाता हो कि जीवन क्या है। जीवन कोई किसी को न समझा सकेगा। जीवन कोई समझाने की बात है? प्रेम कोई समझाने की बात है? सत्य कोई समझाने की बात है? कोई शब्दों से और विचारों से कुछ कह सकेगा उस तरफ?

नहीं, कभी कोई कुछ नहीं कह सका है। जीवन तो खुद जानने की बात है।
जीना पड़ेगा उस मार्ग पर जहां-जहां जीवन जाना जाता है और वह मार्ग है जागरूकता का, वह मार्ग है सचेतता का। उठते-बैठते, चलते-फिरते, बात करते--जीएं देखते हुए, आंख खोले हुए, होश से भरे हुए, तो रोज-रोज कोई जागने लगेगा, कोई प्राण की ऊर्जा विकसित होने लगेगी। और एक दिन, एक दिन जो महाविराट ऊर्जा है जीवन की, उससे उसका मिलन हो जाएगा। जैसे कोई सरिता बहती है पहाड़ों से और भागती चली जाती है, भागती चली जाती है, न मालूम कितने मार्गों को पार करती, कितनी घाटियों को छलांगती और एक दिन सागर तक पहुंच जाती है। ऐसे ही जागरूकता की धारा जो व्यक्ति जगाना शुरू कर देता है--सारी बाधाओं को, सारे पहाड़-पर्वतों को पार करती पहुंच जाती है वहां, जहां प्रभु का सागर है, जहां जीवन का सागर है।

जीवन मेरे लिए परमात्मा का ही पर्यायवाची है। जीवन यानी परमात्मा। जीवन और प्रभु भिन्न नहीं हैं।...
भीतर कोई जागा हो, तो इसी क्षण अभी और यहीं जीवन और प्रभु का मिलन है।
उस ओर जागने के लिए निवेदन और प्रार्थना करता हूं। उस ओर इशारा करता हूं। मेरी बातों को भूल जाएं, उनसे कुछ लेना-देना नहीं है। उनसे क्या संबंध? कोई आदमी इशारा करे चांद की तरफ, हम उसकी अंगुली पकड़ लें, तो भूल हो जाती है। अंगुली से क्या मतलब है? भूल जाएं इशारे को, देख लें चांद को।
चांद को इशारा किया जा सकता है, लेकिन हम इशारों को पकड़ लेते हैं--कोई महावीर की अंगुली पकड़े हुए है, कोई बुद्ध की, कोई क्राइस्ट की। और अंगुलियों की पूजा चल रही है, प्रार्थना चल रही है। पागल हो गया है आदमी क्या! इशारे पूजा के लिए नहीं हैं, भूल जाने के लिए हैं। देखना है उसे जिस तरफ इशारा है--उधर!

जीवन की समस्याओं से भागने को हम हजार-हजार रास्तों से मूर्च्छा के मार्ग खोजते हैं। कोई संगीत में खोजता होगा, कोई सेक्स में खोजता होगा, कोई सौंदर्य में खोजता होगा, कोई कहीं और। कोई धन में खोज लेता है। जीवन भर धन के लिए दौड़ता रहता है स्वयं को भूल कर। कोई पद के लिए दौड़ता रहता है। कोई मोक्ष के लिए दौड़ता रहता है। खुद को भूलने की, खुद से एस्केप की, खुद से पलायन की हमने बहुत सी विधियां खोज ली हैं। और इसलिए हम सोए ही रह जाते हैं, जाग नहीं पाते हैं।
शब्दों में, विचारों में, ज्ञान में भी कोई अपने को भूल सकता है। जीवन को, जीवन के प्रति आंखें बंद कर सकता है। अक्सर पंडित जीवन से अपरिचित रह जाते हैं। जीवन को छोड़ कर कहीं बंद हो जाते हैं--किन्हीं शास्त्रों में, शब्दों में थोथे और मृत, और वहीं खो जाते हैं, वहीं रुक जाते हैं।
ओशो

पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:

• महत्वाकांक्षा: दुखों का मूल आधार
• जिंदगी का असली सवाल: ‘मैं कौन हूं?’
• संबंधों के बीच ‘असंग’की खोज के सूत्र
• ‘जीवन की खोज’के सूत्र
In this title, Osho talks on the following topics:
महत्वाकांक्षा, गैर-महत्वाकांक्षा, असंग, जीवन, मैं कौन हूं? ध्यान, संगठन, सम्यक संदेह, आत्म-स्मृति, जागरूकता
अधिक जानकारी
Type फुल सीरीज
Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-365-5
Dimensions (size) 127 x 203 mm
Number of Pages 110