उपासना के क्षण – Upasana Ke Kshan
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ओशो द्वारा प्रश्नोतर प्रवचनमाला के अंतर्गत दिए गए दस अपूर्व प्रवचनों का संकलन।
ओशो द्वारा प्रश्नोतर प्रवचनमाला के अंतर्गत दिए गए दस अपूर्व प्रवचनों का संकलन।
नहीं, कुछ भी मत करिए। नॉन-कोऑपरेशन करिए। किसी तरह का भी सहयोग मत दीजिए विचार को। चुपचाप बैठे देखिए और वे चले जाएंगे। विचार तो हैं, चल रहे हैं, लेकिन विचार अपने में शक्तिहीन हैं, जब तक कि मेरा उन्हें सहयोग न मिले, जब तक कि मैं उनको शक्ति न दूं। उनमें अपनी कोई शक्ति नहीं है। तो मुझे विचार से कुछ नहीं करना है, मैं जो शक्ति उसे देता हूं, वह भर नहीं देनी है। अभ्यास कुल इतना ही है कि मैं अपनी तरफ से शक्ति न दूं, वे आएं, आने दें; जाएं, जाने दें। आप किसी तरह की आइडेंटिटी विचार के साथ, किसी तरह का तादात्म्य, किसी तरह की मैत्री कायम न करें। इतना ही होश रखें कि मैं केवल देखने वाला भर हूं--ये आए और गए।
तो आप धीरे-धीरे पाएंगे कि जो-जो विचार आएगा, अगर आपने कोई सहयोग नहीं दिया, तो वह बिलकुल निष्प्राण होकर मर जाएगा। उसके प्राण नहीं रह सकते, वह खत्म हुआ। और इस तरह सतत प्रयोग करने पर अचानक आप पाएंगे कि उसका आना भी बंद हो गया है। इसी साक्षी के माध्यम से हमारे भीतर जो संगृहीत हैं, उनकी भी निर्जरा हो जाएगी...।संचित जो हैं, उनकी भी निर्जरा हो जाएगी। वे आएंगे, उठेंगे, पूरे रूप से खड़े होंगे; लेकिन हम अगर चुप रहे और कोई सहयोग नहीं दिया, तो सिवाय इसके कि वे विसर्जित हो जाएं, उनका और कोई रास्ता नहीं है।
कितनी ही चिंता पकड़ती हुई मालूम हो, चुपचाप देखते रहें। यह भाव मत करिए कि मैं चिंतित हो रहा हूं। क्योंकि वह सहयोग शुरू हो गया फिर। इतना ही भाव करिए कि मैं देख रहा हूं कि चिंता है। मैं चिंतित हूं, यह तो खयाल ही मत करिए। यह विचार तो फिर सहयोग हो गया।
असहयोग का अर्थ है कि मैं एक सेपरेशन, एक भेद मान कर चल रहा हूं चिंता में और अपने में, विचार में और अपने में। जो हो रहा है उसमें और मैं जो देख रहा हूं उसमें, मैं एक भेद मान रहा हूं। इसी भेद को साधते चले जाना है कि जो भी मेरे भीतर हो रहा है, उससे मैं भिन्न हूं; जो भी मुझसे बाहर हो रहा है, उससे मैं भिन्न हूं। इस बोध को साधते चले जाना है। तो एक सीमा आएगी कि जो-जो जिस-जिस से मैं भिन्न हूं वह-वह विलीन हो जाएगा और अंततः केवल वही शेष रह जाएगा जिससे मैं अभिन्न हूं। भिन्न के विलीन हो जाने पर जो अभिन्न है वह शेष रह जाएगा, उसी शेष सत्ता का जो अनुभव है वही स्व-अनुभव है।
तो उससे किसी तरह का तादात्म्य न करें, किसी तरह का संबंध न जोड़ें।
बात थोड़ी ही है, बहुत नहीं है वह। नहीं करते हैं इसलिए बहुत बड़ी मालूम होती है। बात तो थोड़ी ही है। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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