जीवन क्रांति के सूत्र – Jeevan Kranti Ke Sutra

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जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मुंबई में ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन
जीवन क्रांति के सूत्र – Jeevan Kranti Ke Sutra
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जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मुंबई में ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन

जीवन की क्रांति एक साधना है। जीवन को जानना जन्म ले लेने से पूरा नहीं हो जाता। कोई आदमी पैदा हो गया, इसलिए जीवन को नहीं जान लेता है। जन्म तो बीज की भांति है। अगर बीज को हम बगीचे में बोएं, तो वह कभी फूल बन सकता है। बीज के भीतर फूल छिपा है, लेकिन बीज खुद फूल नहीं है। और अगर बीज यह समझ ले कि मैं फूल हूं, तो बात खत्म हो गई। फिर बीज, बीज ही रह जाएगा, सड़ेगा, नष्ट हो जाएगा, लेकिन कभी फूल नहीं बन सकेगा। बीज को जानना पड़ेगा कि वह कुछ होने की यात्रा है, कोई संभावना, कोई पॉसिबिलिटी, कोई पोटेंशियलिटी है। वह अभी है नहीं, हो सकता है। आदमी हो सकता है कुछ, आदमी है नहीं। हम कुछ हो सकते हैं, हम कुछ हैं नहीं। हम सिर्फ होने की एक संभावना मात्र हैं। हम एक बीज हैं, जो टूट जाए तो फूल खिल सकते हैं और न टूटे तो सड़ सकता है, नष्ट हो सकता है, दुर्गंध फैल सकती है। जिस बीज के फूल बन जाने से सुगंध फैलेगी, आकाश में नृत्य होगा रंगों का। वही अगर फूल न बन पाए, बीज ही रह जाए, तो सिर्फ दुर्गंध फैलेगी; न कोई नृत्य होगा, न कोई सुगंध होगी, सिर्फ दुर्गंध फैलेगी। सड़ेगा बीज, नष्ट होगा और मरेगा। हम मरते हैं, नष्ट होते हैं। लेकिन न तो हम जीवित हैं और न हम जीवन को उपलब्ध होते हैं। हम उन बीजों की तरह हैं, जो पागल हो गए हों और समझते हैं कि हम फूल हो गए हैं। मनुष्य को जानना पड़ेगा कि वह सिर्फ बीज है। एक संभावना है। कुछ हो सकता है, लेकिन हो नहीं गया है। यह मैं पहला सूत्र कहना चाहता हूं आपसे। हम हैं कुछ होने के लिए। जैसे कोई तीर किसी प्रत्यंचा पर चढ़ा हो, कोई तीर किसी धनुषबाण पर चढ़ा हो; और धनुष पर चढ़ा हुआ तीर सिर्फ संभावना है। वह जा सकता है वहां, जहां अभी गया नहीं है; वह पहुंच सकता है उन लक्ष्यों पर, जो बहुत दूर हैं, लेकिन अभी वह धनुष पर चढ़ा है, अभी कहीं गया नहीं। आदमी धनुष पर चढ़ा हुआ तीर है। चल जाए तो परमात्मा तक पहुंच सकता है, रुक जाए तो धनुष पर ही रह जाता है। हम शरीर पर चढ़ी हुई आत्माएं हैं। चल जाएं तो परमात्मा तक पहुंच सकते हैं, रुक जाएं तो कब्र के अतिरिक्त और कहीं नहीं पहुंचते, कहीं नहीं पहुंच सकते। लेकिन जन्म को ही हमने सब-कुछ समझ लिया है। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज