अंतर्यात्रा – Antaryatra

ऑडियोपुस्तकें — अन्य प्रारूपों में भी उपलब्ध है:ई-पुस्तकें (English)
स्टॉक में
ध्यान साधना शिविर, आजोल में ध्यान-प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए आठ अमृत प्रवचनों का अप्रतिम संकलन
ध्यान साधना शिविर, आजोल में ध्यान-प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए आठ अमृत प्रवचनों का अप्रतिम संकलन

साधक के लिए पहली सीढ़ी क्या है? विचारक के लिए सीढ़ियां अलग होती हैं, प्रेमी के लिए सीढ़ियां अलग होती हैं। साधक के लिए अलग ही यात्रा करनी होती है। साधक के लिए पहली सीढ़ी क्या है? साधक के लिए पहली सीढ़ी शरीर है। लेकिन शरीर के संबंध में न तो कोई ध्यान है, न शरीर के संबंध में कोई विचार है। और थोड़े समय से नहीं, हजारों वर्षों से शरीर उपेक्षित है। यह उपेक्षा दो प्रकार की है। एक तो उन लोगों ने शरीर की उपेक्षा की है, जिन्हें हम भोगी कहते हैं--जो जीवन में खाने-पीने और कपड़े पहनने के अतिरिक्त और किसी अनुभव को नहीं जानते। उन्होंने शरीर की उपेक्षा की है, शरीर का अपव्यय, शरीर को व्यर्थ खोया है, शरीर की वीणा को खराब किया है। और वीणा खराब हो जाए तो उससे संगीत पैदा नहीं हो सकता। यद्यपि संगीत वीणा से बिलकुल भिन्न बात है। संगीत बात ही और है, वीणा बात ही और है। लेकिन वीणा के बिना संगीत पैदा नहीं हो सकता। जिन लोगों ने शरीर को उपभोग की दिशा में व्यर्थ किया है, वे एक तरह के लोग हैं। और दूसरी तरह के लोग हैं, जिन्होंने योग की और त्याग की दिशा में भी शरीर के साथ अनाचार किया है। शरीर को कष्ट भी दिया है, शरीर का दमन भी किया है, शरीर के साथ शत्रुता भी की है। न तो शरीर को भोगने वालों ने शरीर की अर्थवत्ता को समझा है और न शरीर को कष्ट देने वाले तपस्वियों ने शरीर की अर्थवत्ता को समझा है। शरीर की वीणा पर दो तरह के अनाचार और अत्याचार हुए हैं--एक भोगी की तरफ से, दूसरा योगी की तरफ से। और इन दोनों ने ही शरीर को नुकसान पहुंचाया है। पश्चिम में एक तरह से शरीर को नुकसान पहुंचाया गया है, पूरब में दूसरी तरह से। लेकिन नुकसान पहुंचाने में हम सब एक साथ सहभागी हैं। वेश्यागृहों में जाने वाले लोग और मधुशालाओं में जाने वाले लोग भी शरीर को एक तरह का नुकसान पहुंचाते हैं। धूप में नग्न खड़े रहने वाले लोग और जंगल की तरफ भागने वाले लोग भी शरीर को दूसरी तरह से नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन शरीर की वीणा से ही जीवन का संगीत उत्पन्न हो सकता है। यद्यपि जीवन का संगीत शरीर से बिलकुल अलग बात है; बिलकुल भिन्न और दूसरी बात है, लेकिन शरीर की वीणा के अतिरिक्त उसकी कोई उपलब्धि संभव नहीं है। इस तरफ अब तक कोई ध्यान ठीक से नहीं दिया गया है।—ओशो
अधिक जानकारी
Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज