अंतर्वीणा - Antarveena

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विभिन्न मित्रों व प्रेमियों को ओशो द्वारा लिखे गए 150 पत्रों का संग्रह।
विभिन्न मित्रों व प्रेमियों को ओशो द्वारा लिखे गए 150 पत्रों का संग्रह।

अंतर्वीणा
ध्यान की अनुपस्थिति है मन ध्यान के लिए श्रम करो।
मन की सब समस्याएं तिरोहित हो जावेंगी। असल में तो मन ही समस्या है (Mind is the problem)।
शेष सारी समस्याएं तो मन की प्रतिध्वनियां मात्र हैं।
एक-एक समस्या से अलग-अलग लड़ने से कुछ भी न होगा।
प्रतिध्वनियों से संघर्ष व्यर्थ है।
पराजय के अतिरिक्त उसका और कोई परिणाम नहीं है।
शाखाओं को मत काटो।
क्योंकि, एक शाखा के स्थान पर चार शाखाएं पैदा हो जावेंगी।
शाखाओं को काटने से वृक्ष और भी बढ़ता है।
और, समस्याएं शाखाएं हैं।
काटना ही है, तो जड़ को काटो।
क्योंकि, जड़ के कटने से शाखाएं अपने आप ही विदा हो जाती हैं।
और, मन है जड़।
इस जड़ को काटो ध्यान से।
मन है समस्या।
ध्यान है समाधान।
मन में समाधान नहीं है।
ध्यान में समस्या नहीं है।
क्योंकि, मन में ध्यान नहीं है।
क्योंकि, ध्यान में मन नहीं है।
ध्यान की अनुपस्थिति है मन।
मन का अभाव है ध्यान।
इसलिए कहता हूं: ध्यान के लिए श्रम करो।

ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:
ध्यान..., मौन..., प्रार्थना..., मन..., प्रतीक्षा.., संकल्प..., प्रेम..., होश..., भय..., साहस....
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Type Series of Talks
Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13 978-0-88050-913-8
Number of Pages 434
File Size 1.70 MB
Format Adobe ePub