होनी होय सो होय – Honi Hoy So Hoy
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कबीर वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए दस प्रवचन ....
कबीर वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए दस प्रवचन ....
संत तो हजारों हुए हैं, पर कबीर ऐसे हैं जैसे पूर्णिमा का चांद--अतुलनीय, अद्वितीय! जैसे अंधेरे में कोई अचानक दीया जला दे, ऐसा यह नाम है। जैसे मरुस्थल में कोई अचानक मरूद्यान प्रकट हो जाए, ऐसे अदभुत और प्यारे उनके गीत हैं! मैं कबीर के शब्दों का अर्थ नहीं करूंगा। शब्द तो सीधे-सादे हैं। कबीर को तो पुनरुज्जीवित करना होगा। व्याख्या नहीं हो सकती उनकी, उन्हें पुनरुज्जीवन दिया जा सकता है। उन्हें अवसर दिया जा सकता है कि वे मुझसे बोल सकें। तुम ऐसे ही सुनना जैसे यह कोई व्याख्या नहीं है; जैसे बीसवीं सदी की भाषा में, पुनर्जन्म है। जैसे कबीर का फिर आगमन है। और बुद्धि से मत सुनना। कबीर का कोई नाता बुद्धि से नहीं है। कबीर तो दीवाने हैं। और दीवाने ही केवल उन्हें समझ पाए और दीवाने ही केवल समझ पा सकते हैं। कबीर मस्तिष्क से नहीं बोलते हैं। यह तो हृदय की वीणा की अनुगूंज है। और तुम्हारे हृदय के तार भी छू जाएं, तुम भी बज उठो, तो ही कबीर समझे जा सकते हैं। यह कोई शास्त्रीय, बौद्धिक आयोजन नहीं है। कबीर को पीना होता है, चुस्की-चुस्की। जैसे कोई शराब पीए! और डूबना होता है, भूलना होता है अपने को, मदमस्त होना होता है। भाषा पर अटकोगे, चूकोगे; भाव पर जाओगे तो पहुंच जाओगे। भाषा तो कबीर की टूटी-फूटी है। बेपढ़े-लिखे थे। लेकिन भाव अनूठे हैं, कि उपनिषद फीके पड़ें, कि गीता, कुरान और बाइबिल भी साथ खड़े होने की हिम्मत न जुटा पाएं। भाषा पर अटकोगे, तो कबीर साधारण मालूम होंगे। कबीर ने कहा भी: ‘लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात।’ नहीं पढ़ कर कह रहे हैं। देखा है आंखों से। जो नहीं देखा जा सकता उसे देखा है, और जो नहीं कहा जा सकता उसे कहने की कोशिश की है। बहुत श्रद्धा से ही कबीर समझे जा सकते हैं। शंकराचार्य को समझना हो, श्रद्धा की ऐसी कोई जरूरत नहीं। शंकराचार्य का तर्क प्रबल है। नागार्जुन को समझना हो, श्रद्धा की क्या आवश्यकता! उनके प्रमाण, उनके विचार, उनके विचार की अदभुत तर्कसरणी--वह प्रभावित करेगी। कबीर के पास न तर्क है, न विचार है, न दर्शनशास्त्र है। शास्त्र से कबीर का क्या लेना-देना! कहा कबीर ने: ‘मसि कागद छुओ नहीं।’ कभी छुआ ही नहीं जीवन में कागज, स्याही से कोई नाता ही नहीं बनाया। सीधी-सीधी अनुभूति है; अंगार है, राख नहीं। राख को तो तुम सम्हाल कर रख सकते हो। अंगार को सम्हालना हो तो श्रद्धा चाहिए, तो ही पी सकोगे यह आग। —ओशो
इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
ध्यान, प्रेम, मौन, श्रद्धा, अहंकार, समर्पण, मांग, प्रार्थना, मृत्यु, संस्कार,
इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
ध्यान, प्रेम, मौन, श्रद्धा, अहंकार, समर्पण, मांग, प्रार्थना, मृत्यु, संस्कार,
Type | Series of Talks |
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Publisher | ओशो मीडिया इंटरनैशनल |
ISBN-13 | 978-0-88050-872-8 |
Format | Adobe ePub |
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