सर्वसार उपनिषद – Sarvasar Upanishad
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संत पलटू पर दिए गए बीस प्रवचनों में से दस प्रवचन सूत्रों पर व दस प्रश्नोत्तरी है। ओशो के इन अमृत प्रवचनों की यह सुंदर श्रृंखला है।
संत पलटू पर दिए गए बीस प्रवचनों में से दस प्रवचन सूत्रों पर व दस प्रश्नोत्तरी है। ओशो के इन अमृत प्रवचनों की यह सुंदर श्रृंखला है।
सर्वसार उपनिषद!
असार से सार को खोज लेना भी कठिन है; सार में से भी सार को खोजना अति कठिन। जो व्यर्थ है उसमें सार्थक का पता लगा लेना भी आसान नहीं; लेकिन जो सार्थक है, उसमें से भी परम सार्थक को चुन लेना करीब-करीब असंभव जैसा है। मिट्टी से सोने को खोजने की अपनी मुसीबत, मुश्किल है, लेकिन सोने में से भी सोने के सार को...स्वर्ण-सार को खोज लेना करीब-करीब असंभव है।
सर्वसार उपनिषद का अर्थ है: जो भी आज तक जाना गया गुह्य ज्ञान है, इसोटेरिक नॉलेज है, उसमें से भी जो सारभूत है, दि मोस्ट फाउंडेशनल; वह जो आधारभूत है--जिसमें से रत्ती भर भी छोड़ा नहीं जा सकता, जिसमें छोड़ने को कुछ भी असार नहीं बचा है, जिसमें शरीर को हमने बिलकुल ही छोड़ दिया और शुद्ध आत्म को ही निकाल लिया है, जिसमें सोने में से वस्तु को अलग कर दिया--केवल स्वर्ण--स्वर्ण के स्वर्णत्व को ही बाहर खींच लिया है, वैसा यह उपनिषद है।
इस एक उपनिषद को जान लेने से मनुष्य की प्रतिभा ने जो भी गहनतम जाना है, उस सबके द्वार खुल जाते हैं। इसलिए इसका नाम है: ‘सर्वसार’--दि सिक्रेट ऑफ दि सिक्रेट्स; गुह्य में भी जो गुह्य है और सार में भी जो सार है।
खतरनाक भी है ऐसी बात; क्योंकि जितनी सूक्ष्म हो जाती है विद्या उतनी ही पकड़ के बाहर भी हो जाती है। सत्य जितना शुद्ध होता है उतना हमारी समझ से दूर भी हो जाता है। सत्य का कोई कसूर नहीं, हमारी समझ इतनी अशुद्ध है कि जितना हो शुद्ध सत्य, उतना हमारे और उसके बीच फासला हो जाता है। हमारी अशुद्धि ही कारण है। इसलिए जितना, जितना सूक्ष्मतम सत्य है, वह उतना ही हमारे व्यवहार में आने योग्य नहीं रह जाता।
इसीलिए इस देश में जीवन का परम ज्ञान खोजा गया, लेकिन हम उसकी चर्चा ही करने में समय को व्यतीत करते रहे हैं; उसे जीवन में उतारना खयाल में ही नहीं आता; उतारना भी चाहें तो कोई राह नहीं मिलती; निर्णय भी कर लें तो पैर उठने के लिए कोई दिशा नहीं सूझती। इतना गहन है, इतना सूक्ष्म है कि हम आशा ही छोड़ देते हैं कि उसे जीवन में उतारा जा सकेगा। फिर अपने को धोखा देने के लिए हम चर्चा करके मन को समझा लेते हैं।
तो हम चर्चा करते रहे सदियों तक। और जिस संबंध की हमने चर्चा की है, वह ऐसा है, जिसे चर्चा से समझा नहीं जा सकता; जिसे जीएं हम तो ही जान सकते हैं; जीना ही उसे जानने की विधि है; चलें उस पर तो ही समझ पाते हैं। चलना ही समझना है। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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