संभावनाओं की आहट – Sambhavnaon Ki Aahat
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समाजवाद पर क्रांतिकारी उद्बोधन एवं प्रश्नोत्तर-चर्चाओं सहित क्रास मैदान, बंबई में ओशो द्वारा दिए गए पांच अमृत प्रवचनों का का अनूठा संकलन
समाजवाद पर क्रांतिकारी उद्बोधन एवं प्रश्नोत्तर-चर्चाओं सहित क्रास मैदान, बंबई में ओशो द्वारा दिए गए पांच अमृत प्रवचनों का का अनूठा संकलन
‘न-करने’ का नाम ध्यान है।
हम भी स्नान करने की भाषा समझते हैं। तो हम सोचते हैं कि ध्यान करना भी कोई एक क्रिया होगी। कई नासमझ तो यह भी समझाते हैं कि वह भीतरी स्नान है, आत्मिक स्नान है। जैसी शीतलता नहाने से मिलती है, वैसी शीतलता ध्यान से भी मिलती है। लेकिन करने की भाषा में जब तक आप समझेंगे, आप नहीं समझ पाएंगे, क्योंकि करने की भाषा की आदत ही बाधा है।…
अब तक हमने जीवन में करने की ही एकमात्र दिशा जानी है, न-करने की हमने कोई दिशा नहीं जानी। तो हमें पता ही नहीं! जब हम कहते हैं किसी से प्रेम की बात, तो भी हम उससे कहते हैं कि मैं प्रेम करता हूं! हालांकि जिनको भी कभी प्रेम का अनुभव हुआ होगा, उन्हें पता है कि प्रेम किया नहीं जाता। वह क्रिया नहीं है।… हम तो यह भी कहते हुए सुने जाते हैं कि श्र्वास लेते हैं। हालांकि आपने कभी श्र्वास नहीं ली अपने जीवन में अभी तक और न कभी आप ले सकते हैं। श्र्वास चलती है।…
वह जो हमारे भीतर से भीतर जो बैठा हुआ है, उसे करने की कोई भी जरूरत नहीं है। वह है। और वह सदा से है। और उसके मिटने का भी कोई उपाय नहीं है। वह सदा होगा। उसका होना अगर जानना है तो करने से मुक्त हुए बिना जानना बहुत मुश्किल है। क्योंकि जब तक हम करने में उलझे होते हैं, तब तक होने का पता नहीं चलता। करना यानी डूइंग और होना यानी बीइंग। जो आदमी डूइंग में उलझा हुआ है, उसको पता नहीं चलता कि क्या है भीतर, कौन है भीतर। जब सारी क्रिया छूट जाती है, एक क्षण को भी, सिर्फ होना रह जाता है--जैसे हवाएं चल रही हैं और वृक्ष है, पत्ते हिल रहे हैं।; लेकिन वृक्ष पत्ते हिला नहीं रहा है; हवाएं चल रही हैं, वृक्ष के पत्ते हिल रहे हैं; श्र्वास चल रही है--यह सब हो रहा है।
ध्यान की अवस्था का मतलब है: होने में छूट जाएं। जो हो रहा है, होने दें।…
तो करने की आदत से थोड़ा सावधान होना चाहिए। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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