साक्षी का बोध – Sakshi Ka Bodh

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ध्यान साधना शिविर, तुलसीश्याम में ध्यान प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए चार प्रवचन
साक्षी का बोध – Sakshi Ka Bodh
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ध्यान साधना शिविर, तुलसीश्याम में ध्यान प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए चार प्रवचन

किन दीवालों में अपने को मैं बंद किए हुए हूं, उनकी मैं चर्चा करूंगा। क्योंकि अगर दिखाई पड़ना शुरू हो जाए, पहला तो यह जरूरी है कि दीवाल दिखाई पड़े भीतर। दिखाई पड़े तो फिर टूट सकती है। अब जिस कैदी को यही भूल गया हो कि मैं कैदी हूं, फिर तो मुश्किल हो गया, फिर कैद से छुटकारे का कोई रास्ता न रहा। पहली तो बात यह कि यह दिखाई पड़े, अनुभव में आए कि हम भीतर कैद में घिर गए हैं, एक बिलकुल एक कारागृह में बंद हैं। और खुद ही उसको सम्हाले हुए हैं, खुद ही उसकी ईंटें रखते हैं, खुद ही उसकी दीवालों पर जहां-जहां द्वार है वहां-वहां बंद कर देते हैं, रोशनी भीतर न पहुंचे इसके सब उपाय करते हैं और फिर चिल्लाते हैं कि हे परमात्मा! हम अंधकार में खड़े हुए हैं, हम क्या करें? यानी हमारी स्थिति ऐसी है कि हम चारों तरफ से दरवाजे बंद करके अंधकार में खड़े हो जाते हैं और फिर चिल्लाते हैं: हे परमात्मा! हम क्या करें? बहुत अंधकार है! परमात्मा से चिल्लाने की कोई जरूरत नहीं है, उसकी रोशनी हमेशा चारों तरफ मौजूद है। हमें देखना और जानना होगा कि हम कहीं खुद ही तो अपने दरवाजे बंद किए हुए नहीं खड़े हैं? और जैसा मैं देखता हूं, मुझे दिखता है, हम दरवाजे बंद किए हुए हैं। तो आज की सुबह तो मैं यही पहली बात आपसे कहूं: संतुष्टि की दौड़ व्यर्थ है, इसे देखने की आंख पैदा करिए। जब भी मन किसी संतोष की तलाश में लगे, तो स्मरण रखिए कि संतोष की चीज तो मिल जाएगी, लेकिन संतोष नहीं मिलेगा। जब भी कोई दौड़ कामना की और वासना की मन को पकड़े, तो खयाल में बोधपूर्वक देखिए कि वह मिल भी जाएगी तो भी कुछ मिलेगा नहीं। दौड़ हो जाएगी, समय व्यतीत होगा, शक्ति क्षीण होगी, लेकिन कुछ भीतर उपलब्धि नहीं होगी। सब उपलब्धियां बाहर की मिल कर भी भीतर कुछ उपलब्ध नहीं करती हैं, यह आपको दिखाई पड़ना चाहिए। और इसे देखने के लिए बाहर चारों तरफ जिनकी उपलब्धियां हैं, उन पर ध्यान करिए, उनको देखिए। चारों तरफ जिनके पास सब कुछ है, उनके असंतोष को देखिए। जिनके पास बहुत कुछ है, उनकी पीड़ा और संताप को अनुभव करिए। आंख खोलिए और चारों तरफ देखिए। अपने, दूसरे के अनुभव, इनके प्रति बोधपूर्वक स्मरण, इनका निरीक्षण, इनका ठीक-ठीक ऑब्जर्वेशन, आपके भीतर संतुष्टि का जो भ्रम है, उसे तोड़ देगा। ठीक है कि संतुष्टि की कामना है, लेकिन अगर संतुष्टि के प्रति आंख आ जाए, तो कामना विलीन हो जाएगी। तो मैं संतुष्टि की कामना से लड़ने को नहीं कह रहा हूं, यह स्मरण रखें, मैं केवल बोध के लिए कह रहा हूं। अगर उससे आप लड़ने लगे, तो आप एक और नये पागलपन में पड़ जाएंगे। एक तरफ गृहस्थ हैं, जो संतुष्टि के पीछे दौड़ रहे हैं। एक तरफ संन्यासी हैं, जो संतुष्टि से लड़ रहे हैं। इन दोनों को ही मैं गलत समझता हूं। ये एक-दूसरे की प्रतिक्रियाएं हैं, एक-दूसरे के रिएक्शंस हैं। गृहस्थ जो गलती कर रहा है, ठीक उसके विरोध में दूसरी गलती संन्यासी करता है। एक संतुष्टि के पीछे भाग रहा है, एक संतुष्टि से भाग रहा है। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज