सहज-योग – Sahaj Yog
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सरहपा तिलोपा वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए बीस प्रवचन
सरहपा तिलोपा वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए बीस प्रवचन
सहज-योग – Sahaj Yog
प्रकृति में पागलपन घटता ही नहीं। प्रकृति पागलपन को जानती नहीं। क्यों? अशांति ही नहीं है तो विक्षिप्तता कैसे होगी? अशांति नहीं है, क्योंकि समय ही नहीं है, तो अशांत कोई कैसे होगा?
इसे थोड़ा समझ लेना, तो ये सूत्र समझ में आने आसान हो जायेंगे।
अशांत होने के लिए समय चाहिए। अशांत होने के लिए अतीत का भाव चाहिए, भविष्य का भाव चाहिए। अतीत की याददाश्त चाहिए अशांत होने के लिए। वह जो दस साल पहले किसी ने गाली दी थी, वह अभी भी चुभनी चाहिए। गाली भी गई, देने वाले भी गये, समय भी गया, मगर तुम भीतर चुभाए बैठे हो। तुम उसे पकड़े बैठे हो। तुम उसे ढो रहे हो। वर्षों पहले की याददाश्तें तुम्हारे चित्त पर बोझिल होनी चाहिए तो तुम अशांत हो सकते हो। और भविष्य की कल्पना होनी चाहिए कि कल ऐसा करेंगे, परसों ऐसा करेंगे। योजनायें, कल्पनायें भविष्य की और स्मृतियां अतीत की--इन दोनों के बीच में ही पिसकर तुम पागल होओगे। इन दो चक्की के पाट के बीच जो फंस जाता है वह बच नहीं पाता।
और मजा यह है कि दोनों ही चक्की के पाट झूठे हैं। अतीत जा चुका, अब नहीं है और भविष्य अभी आया नहीं। सच्चा तो सिर्फ वर्तमान है। सच्चा तो यह क्षण है। नगद तो केवल यह क्षण है। इस क्षण में कैसी अशांति? जरा सोचो, गुनो! इस क्षण में कैसी अशांति? मत आने दो अतीत को, मत आने दो भविष्य को, फिर इस क्षण में तुम अशांति खोज सकोगे? चेष्टा भी करोगे तो अशांत न हो सकोगे। वर्तमान अशांति जानता ही नहीं।
अब यह बड़ा मजा है कि आदमी भविष्य की कल्पना करके अशांति खड़ी करता है और फिर भविष्य में ही शांत होने की योजना भी बनाता है। उससे अशांति और कई गुनी हो जाती है। और भविष्य को हम फैलाये चले जाते हैं। इस जन्म में ही हमारे भविष्य का विस्तार नहीं है, हम अगले जन्मों में भी फैलाते हैं। हमारी वासनायें इतनी हैं कि इस जन्म में भी पूरी नहीं होती, उनकी कल्पना अगले जन्म में होगी। और-और जन्म, और-और जन्म...आगे फैलाये चले जाते हैं। सारा बोझ तुम्हारी छाती पर पड़ता है। तुम टूट जाते हो। इसी बोझ के नीचे दबा हुआ आदमी अशांत होता है। —ओशो
इसे थोड़ा समझ लेना, तो ये सूत्र समझ में आने आसान हो जायेंगे।
अशांत होने के लिए समय चाहिए। अशांत होने के लिए अतीत का भाव चाहिए, भविष्य का भाव चाहिए। अतीत की याददाश्त चाहिए अशांत होने के लिए। वह जो दस साल पहले किसी ने गाली दी थी, वह अभी भी चुभनी चाहिए। गाली भी गई, देने वाले भी गये, समय भी गया, मगर तुम भीतर चुभाए बैठे हो। तुम उसे पकड़े बैठे हो। तुम उसे ढो रहे हो। वर्षों पहले की याददाश्तें तुम्हारे चित्त पर बोझिल होनी चाहिए तो तुम अशांत हो सकते हो। और भविष्य की कल्पना होनी चाहिए कि कल ऐसा करेंगे, परसों ऐसा करेंगे। योजनायें, कल्पनायें भविष्य की और स्मृतियां अतीत की--इन दोनों के बीच में ही पिसकर तुम पागल होओगे। इन दो चक्की के पाट के बीच जो फंस जाता है वह बच नहीं पाता।
और मजा यह है कि दोनों ही चक्की के पाट झूठे हैं। अतीत जा चुका, अब नहीं है और भविष्य अभी आया नहीं। सच्चा तो सिर्फ वर्तमान है। सच्चा तो यह क्षण है। नगद तो केवल यह क्षण है। इस क्षण में कैसी अशांति? जरा सोचो, गुनो! इस क्षण में कैसी अशांति? मत आने दो अतीत को, मत आने दो भविष्य को, फिर इस क्षण में तुम अशांति खोज सकोगे? चेष्टा भी करोगे तो अशांत न हो सकोगे। वर्तमान अशांति जानता ही नहीं।
अब यह बड़ा मजा है कि आदमी भविष्य की कल्पना करके अशांति खड़ी करता है और फिर भविष्य में ही शांत होने की योजना भी बनाता है। उससे अशांति और कई गुनी हो जाती है। और भविष्य को हम फैलाये चले जाते हैं। इस जन्म में ही हमारे भविष्य का विस्तार नहीं है, हम अगले जन्मों में भी फैलाते हैं। हमारी वासनायें इतनी हैं कि इस जन्म में भी पूरी नहीं होती, उनकी कल्पना अगले जन्म में होगी। और-और जन्म, और-और जन्म...आगे फैलाये चले जाते हैं। सारा बोझ तुम्हारी छाती पर पड़ता है। तुम टूट जाते हो। इसी बोझ के नीचे दबा हुआ आदमी अशांत होता है। —ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:मौन, ध्यान, एकाग्रता, सुनने की कला, विश्वास, जिज्ञासा, धर्म, अध्यात्म, श्रद्धा, अहंकार
Publisher | ओशो मीडिया इंटरनैशनल |
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ISBN-13 | 978-0-88050-977-0 |
Number of Pages | 3518 |
File Size | 4.35 MB |
Format | Adobe ePub |
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