संतो, मगन भया मन मेरा – santo magan bhaya man mera

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जीवन के विविध आयामों पर ओशो द्वारा दिए गए ग्यारह अमृत प्रवचनों का संकलन।
जीवन के विविध आयामों पर ओशो द्वारा दिए गए ग्यारह अमृत प्रवचनों का संकलन।

संतो, मगन भया मन मेरा – santo magan bhaya man mera
एक ही जगत है--यही जगत। फिर चाहो नरक बना लो, चाहे स्वर्ग। जगत मात्र एक अवसर है। कोरी किताब। क्या तुम लिखोगे, तुम पर निर्भर है। और केवल तुम पर! किसी और की कोई जिम्मेवारी नहीं। नरक में जीना हो नरक बना लो, स्वर्ग में जीना हो स्वर्ग बना लो--तुम्हारे हाथों का ही सारा निर्माण है। यहां सब मौजूद है। युद्ध करना हो तो युद्ध और प्रेम की छाया में जीना हो तो प्रेम की छाया। शांति के फूल उगाने हों तो कोई रोकता नहीं, निर्वाण के दीये जलाने हों तो कोई बुझाता नहीं--और अगर जख्म ही छाती में लगाने हों तो भी कोई हाथ रोकने आएगा नहीं।

तुम मुक्त हो। तुम स्वतंत्र हो। मनुष्य की यही महिमा है। यही उसका विषाद भी। विषाद, कि मनुष्य स्वतंत्र है; गलत करने को भी स्वतंत्र है। स्वतंत्रता में गलत करने की स्वतंत्रता सम्मिलित है। अगर ठीक करने की ही स्वतंत्रता होती तो उसे स्वतंत्रता ही क्या कहते! स्वतंत्रता का अर्थ ही होता है, गलत होने की स्वतंत्रता भी है। चाहो तो मिटा लो, चाहो तो बना लो। चाहो तो गिर जाओ मिट्टी में और कीचड़ हो जाओ और चाहो तो कमल बन जाओ।

जीवन एक कोरा अवसर है--बिलकुल कोरा अवसर! जैसे कोरा कैनवास हो और चित्रकार उस पर चित्र उभारे; कि अनगढ़ पत्थर हो, कि मूर्तिकार उसमें मूर्ति निखारे। शब्द उपलब्ध हैं; चाहो गालियां बना लो और चाहे गीत। इस बात को जितने गहरे में उतर जाने दो हृदय में, उतना अच्छा है। भूल कर भी मत सोचना कि कोई तुम्हारे भाग्य का निर्माण कर रहा है। उस बात में बड़ा खतरा है। फिर आदमी अवश हो जाता है। फिर जो हो रहा है, हो रहा है। फिर सहने के सिवाय कोई उपाय नहीं। फिर आदमी मिट्टी का लौंदा हो जाता है; उसके प्राण सूख जाते हैं; उसमें जीवन की धार नहीं बहती। चुनौतियों को अंगीकार करने की सामर्थ्य खो जाती है। और जहां चुनौतियों को अंगीकार करने की सामर्थ्य नहीं, वहां आत्मा का जन्म नहीं। आत्मा जन्मती है चुनौतियों के स्वीकार करने से। तूफानों में पैदा होती है आत्मा। आंधियों-अंधड़ों में पैदा होती है आत्मा।

और बड़ी से बड़ी आंधी यही है कि तुम अपनी स्वतंत्रता को स्वीकार कर लो। कठिन होगी बात, क्योंकि सारा दायित्व सिर पर आ जाएगा। अभी तो सोचने के लिए बहुत उपाय हैं कि क्या करें, किस्मत, भाग्य, कर्म, भगवान... क्या करें? अभी तो दूसरे पर टालने का उपाय है। लेकिन यह तुम्हारी तरकीब है--और चालबाज तरकीब है। ये सिद्धांत तुम्हारे गढ़े हुए हैं और बेईमानी से भरे हैं। इन सिद्धांतों की आड़ में तुमने अपने को खूब छिपा लिया। और पाया क्या छिपाने से? इतना ही पाया कि नरक बनाने की सुविधा मिल गई और स्वर्ग बनाने की क्षमता खो गई। —ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:
एकाकीपन, सम्मोहन, मृत्यु, अंधकार-ध्यान, मन, अहिंसा, मौन, क्रोध, अहंकार, तोतापुरी
अधिक जानकारी
Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13 978-0-88050-980-0
Number of Pages 3388
File Size 4.24 MB
Format Adobe ePub