रोम रोम रस पीजिए – Rom Rom Ras Peejiye

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ओशो द्वारा दिए गए दस प्रश्‍नोतर प्रवचनों का अपूर्व संकलन।
ओशो द्वारा दिए गए दस प्रश्‍नोतर प्रवचनों का अपूर्व संकलन।

रोम रोम रस पीजिए – Rom Rom Ras Peejiye
मृत्यु तो जीवन की ही पूर्णता है। जिस भांति हम जीते हैं उस भांति ही हम मरते हैं। मृत्यु तो सूचना है पूरे जीवन की--कि जीवन कैसा था? तो यदि मौत खाली हाथ पाती हो तो कोई भूल में रहा होगा कि जिंदगी में भरा था। जिंदगी में भी खाली रहा होगा।
कुछ थोड़े से लोगों को जीवन में ही यह दिखाई पड़ने लगता है कि हाथ खाली हैं। जिनको यह दिखाई पड़ता है कि हाथ खाली हैं, वे संसार की दौड़ छोड़ देते हैं--धन की और यश की, पद की और प्रतिष्ठा की। लेकिन वे लोग भी एक नई दौड़ में पड़ जाते हैं--परमात्मा को पाने की, मोक्ष को पाने की। और मैं यह निवेदन करना चाहूंगा इन तीन दिनों में कि जो भी आदमी दौड़ता है वह हमेशा खाली रह जाता है, चाहे वह परमात्मा के लिए दौड़े और चाहे धन के लिए दौड़े। इसलिए केवल सम्राट ही खाली हाथ नहीं मरते, और भिखारी ही नहीं, बहुत से संन्यासी भी खाली हाथ ही मरते हैं।

जीवन में जो भी पाने जैसा है वह दौड़ कर नहीं पाया जा सकता है। जीवन का सौंदर्य और जीवन का सत्य और जीवन का संगीत कहीं बाहर नहीं है कि कोई दौड़े और उसे पा ले। जो कुछ भी बाहर होता है उसे पाने के लिए यात्रा करनी होती है, चलना होता है। और जो भी भीतर है उसे पाने के लिए जो यात्रा करेगा वह भटक जाएगा। क्योंकि यदि मुझे आपके पास आना हो तो मैं चलूंगा और तब आपके पास पहुंच सकूंगा। और अगर मुझे अपने ही पास पहुंचना हो तो चलने से कैसे पहुंचा जा सकता है? मैं तो जितना चलूंगा उतना ही दूर निकल जाऊंगा। अगर मुझे अपने पास पहुंचना है तो मुझे सारा चलना छोड़ देना पड़ेगा, दौड़ना छोड़ देना पड़ेगा, तो शायद मैं पहुंच जाऊं।

तो एक तो रास्ता वह है जो बाहर की तरफ जाता है, जिस पर हमें चलना पड़ता है, श्रम करना पड़ता है, पहुंचना पड़ता है। एक रास्ता ऐसा भी है जिस पर चलना नहीं पड़ता, और जो चलता है वह कभी नहीं पहुंचता, जिस पर रुकना पड़ता है। और जो रुक जाता है वह पहुंच जाता है। यह बात बड़ी उलटी मालूम पड़ेगी। क्योंकि हमने तो अब तक यही जाना है कि जो खोजेगा वह पाएगा, जो चलेगा वह पहुंचेगा, और जो जितने जोर से चलेगा उतने जल्दी पहुंचेगा। और जो जितने श्रम से दौड़ेगा उतने शीघ्र पहुंच जाएगा। लेकिन इन तीन दिनों में मैं यह निवेदन करूंगा: जो चलेगा वह कभी नहीं पहुंचेगा। और जो जितने जोर से चलेगा उतने ही ज्यादा जोर से अपने से दूर निकल जाएगा। —ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:
ध्यान, मौन, जीवन, पंडित, धर्म, वासना, प्रार्थना, प्रेम, बुल्लेशाह, जगजीवन
अधिक जानकारी
Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13 978-0-88050-975-6
Number of Pages 1008
File Size 2.15 MB
Format Adobe ePub