प्रीतम छबि नैनन बसी – Preetam Chhabi Nainan Basi
ई-पुस्तक — अन्य प्रारूपों में भी उपलब्ध है:ऑडियोपुस्तकें (English)
स्टॉक में
प्रेम, कर्म, ज्ञान, हास्य आदि विविध पहलुओं पर ओशो द्वारा दिए गए सोलह अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।
प्रेम, कर्म, ज्ञान, हास्य आदि विविध पहलुओं पर ओशो द्वारा दिए गए सोलह अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।
मनुष्य परमात्मा के बिना खाली है, बुरी तरह खाली है। और खालीपन खलता है। खालीपन को भरने के हम हजार-हजार उपाय करते हैं--धन से, पद से, प्रतिष्ठा से। लेकिन खालीपन ऐसे भरता नहीं। धन बाहर है, खालीपन भीतर है। बाहर की कोई वस्तु भीतर के खालीपन को नहीं भर सकती। कुछ भीतर की ही संपदा चाहिए। बाहर की संपदा बाहर ही रह जाएगी। उसके भीतर पहुंचने का कोई उपाय नहीं है। धन के ढेर लग जाएंगे, लेकिन भीतर का भिखमंगा भिखमंगा ही रहेगा। दुनिया में दो तरह के भिखमंगे हैं: गरीब भिखमंगे हैं और धनी भिखमंगे हैं। मगर उनके भिखमंगेपन में कोई फर्क नहीं। सच तो यह है कि धनी भिखमंगे को अपने भिखमंगेपन की ज्यादा प्रतीति होती है। क्योंकि बाहर धन है और भीतर निर्धनता है। बाहर के धन की पृष्ठभूमि में भीतर की निर्धनता बहुत उभर कर दिखाई पड़ती है। जैसे रात में तारे दिखाई पड़ते हैं। अंधेरे में तारे उभर आते हैं। दिन में भी हैं तारे, पर सूरज की रोशनी में खो जाते हैं। गरीब को अपनी गरीबी नहीं खलती, अमीर को अपनी गरीबी बहुत बुरी तरह खलती है। यही कारण है कि गरीब देशों में लोग संतुष्ट मालूम पड़ते हैं, अमीर देशों की बजाय। तुम्हारे साधु-संत तुम्हें समझाते हैं कि तुम संतुष्ट हो, क्योंकि तुम धार्मिक हो। यह बात सरासर झूठ है। तुम संतुष्ट प्रतीत होते हो, क्योंकि तुम गरीब हो। भीतर भी गरीबी, बाहर भी गरीबी, तो गरीबी खलती नहीं, गरीबी दिखती नहीं, उसका अहसास नहीं होता। जैसे कोई सफेद दीवाल पर सफेद खड़िया से लिख दे, तो पढ़ना मुश्किल होगा। इसीलिए तो स्कूल में काले तख्ते पर सफेद खड़िया से लिखते हैं। पृष्ठभूमि विपरीत चाहिए, तो चीजें उभर कर दिखाई पड़ती हैं। गरीब देशों में जो एक तरह का संतोष दिखाई पड़ता है, वह झूठा संतोष है, उसका धर्म से कोई संबंध नहीं है। लेकिन तुम्हारे अहंकार को भी तृप्ति मिलती है। तुम्हारे साधु-महात्मा कहते हैं कि तुम संतुष्ट हो, क्योंकि तुम धार्मिक हो। तुम्हारा अहंकार भी प्रसन्न होता है, प्रफुल्लित होता है। पर यह सरासर झूठ है। अहंकार जीता ही झूठों के आधार पर है। झूठ अहंकार का भोजन है। सचाई कुछ और है। तुम्हारे साधु-महात्मा कहते हैं कि देखो पश्चिम की कैसी दुर्गति है! वे तुम्हें समझाते हैं कि दुर्गति इसलिए हो रही है पश्चिम की, क्योंकि पश्चिम नास्तिक है, क्योंकि पश्चिम ईश्वर को नहीं मानता। —ओशो
Publisher | OSHO Media International |
---|---|
ISBN-13 | 978-0-88050-799-8 |
Number of Pages | 536 |
File Size | 1,612 KB |
Format | Adobe ePub |
The information below is required for social login
साइन इन करें
Create New Account