पीवत रामरस लगी खुमारी – Peevat Ram Ras Lagi Khumari
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संतों द्वारा दिए गए सूत्रों पर तथा जिज्ञासुओं के प्रश्नों के उत्तर में दिए गए ओशो के दस अमृत प्रवचनों
संतों द्वारा दिए गए सूत्रों पर तथा जिज्ञासुओं के प्रश्नों के उत्तर में दिए गए ओशो के दस अमृत प्रवचनों
कबीर निश्चय ही मुझे अतिप्रिय हैं। कारण बहुत हैं। बुद्ध से मुझे बहुत लगाव है, लेकिन बुद्ध राजमहल के एक उपवन हैं। सुंदर फूल खिले हैं। बड़ी सजावट है बगिया में, बड़ी रौनक है। परिष्कार है। लेकिन जंगल की जो सहजता है, स्वाभाविकता है, उसका अभाव है। बुद्ध अगर उपवन हैं तो कबीर जंगल हैं। जंगल का अपना सौंदर्य है--अछूता, कुंवारा। न तो मालियों ने संवारा है, न शिक्षा है, न संस्कार हैं, न ज्ञान है। और फिर भी परम प्रकाश का अनुभव हुआ है। शिक्षित-परिष्कृत व्यक्ति को जब परम प्रकाश का अनुभव होता है तो स्वभावतः उसकी अभिव्यक्ति जटिल होगी, दुरूह होगी। चाहे या न चाहे वह, उसकी अभिव्यक्ति में सिद्धांत की छाया होगी। उसकी अभिव्यक्ति अनगढ़ नहीं हो सकती। कबीर की अभिव्यक्ति अनगढ़ है। ऐसा हीरा, जो अभी-अभी खान से निकला; जौहरी के हाथ ही नहीं पड़ा। न छैनी लगी, न पहलू उभरे। वैसा ही है जैसा परमात्मा ने बनाया था। आदमी ने अभी अपने हस्ताक्षर नहीं किए। इसलिए दूर हिमालय के पहाड़ों पर, कुंवारे जंगलों में जो सन्नाटा है, जो संगीत है, जो गहन मौन है, जो प्रगाढ़ शांति है--वैसी ही कुछ कबीर में है। कबीर के साथ ही भारत में बुद्धों की एक नई श्रृंखला शुरू होती है--नानक, रैदास, फरीद, मीरा, सहजो, दया। यह एक अलग ही श्रृंखला है। बुद्ध, महावीर, कृष्ण--यह एक अलग ही श्रृंखला है। बुद्ध, महावीर और कृष्ण राजमहलों के गीत हैं। कबीर, नानक, फरीद झोपड़ों में बजी वीणा हैं। राजमहल में गीत का पैदा हो जाना बहुत आसान; न हो तो आश्चर्य, हो तो कोई आश्चर्य नहीं। राजमहलों में जो रहा है, ऊब ही जाएगा। राजमहलों में जो जीया है, जगत से उसकी आसक्ति टूट ही जाएगी। लाख सम्हालना चाहे, बचाना चाहे, बहुत मुश्किल है बचाना। निर्धन को धन में आशा होती है। लगता है मिल जाएगा धन तो सब मिल जाएगा, फिर पाने को कुछ और क्या! लेकिन जिसको सब मिला है उसकी आशा के लिए कोई आकाश नहीं बचता। उसके हाथ तो सिर्फ निराशा रह जाती है, हताशा रह जाती है। बुद्ध के पास सब था; कबीर के पास कुछ भी नहीं। बुद्ध के पास क्या नहीं था? कबीर के पास क्या था? इसलिए बुद्ध अगर संसार की आपाधापी से छूट गए, यह दौड़ अगर व्यर्थ हो गई, तो नहीं कोई आश्चर्य है। राजमहलों में रहकर भी अगर कोई संन्यस्त न हो तो महामूढ़ होगा, मंदबुद्धि होगा। सिर्फ इसका सबूत देगा। —ओशो
Publisher | OSHO Media International |
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ISBN-13 | 978-0-88050-797-4 |
Number of Pages | 243 |
File Size | 1,299 KB |
Format | Adobe ePub |
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