पथ के प्रदीप - Path Ke Pradeep
मा योग सोहन, पुणे को ओशो द्वारा लिखे गए 100 पत्रों का संग्रह
मा योग सोहन, पुणे को ओशो द्वारा लिखे गए 100 पत्रों का संग्रह
पथ के प्रदीप, पत्रः 90
आविष्कार! आविष्कार! आविष्कार!--कितने आविष्कार रोज हो रहे हैं? लेकिन जीवन संताप से संताप बनता जाता है। नरक को समझाने के लिए अब किन्हीं कल्पनाओं को करने की आवश्यकता नहीं। इस जगत को बतला कर कह देना ही काफी हैः ‘नरक ऐसा होता है!’ और इसके पीछे कारण क्या है? कारण है कि मनुष्य स्वयं आविष्कृत होने से रह गया है।
मैं देख रहा हूं कि मनुष्य के लिए अंतरिक्ष के द्वार खुल गए हैं, और उसकी आकाश की सुदूरगामी यात्रा की तैयारी भी पूरी हो चुकी है। लेकिन क्या आश्चर्यजनक नहीं है कि स्वयं के अंतस के द्वार ही उसके लिए बंद हो गए हैं और उस यात्रा का खयाल ही उसे विस्मरण हो गया है जो कि वह अपने ही भीतर कर सकता है? मैं पूछता हूं कि यह पाना है या कि खोना? मनुष्य ने यदि स्वयं को खोकर शेष सब-कुछ भी पा लिया, तो उसका क्या अर्थ है और क्या मूल्य है? समग्र ब्रह्मांड की विजय भी उस छोटे से बिंदु को खोने का घाव नहीं भर सकती है, जो कि वह स्वयं है, जो कि उसकी निज सत्ता का केंद्र है।
रात्रि ही कोई पूछता था: ‘‘मैं क्या करूं और क्या पाऊं?’’ मैंने कहा: ‘‘स्वयं को पाओ और जो भी करो ध्यान रखो कि वह स्वयं के पाने में सहयोगी बने। स्वयं से जो दूर ले जावे वही है अधर्म और जो स्वयं में ले आवे उसे ही मैंने धर्म जाना है।’’
स्वयं के भीतर प्रकाश की छोटी सी ज्योति भी हो तो सारे संसार का अंधेरा पराजित हो जाता है, और यदि स्वयं के केंद्र पर अंधकार हो तो बाह्याकाश के करोड़ों सूर्य भी उसे नहीं मिटा पाते हैं।
ओशो
पथ के प्रदीप है भाव-प्रधान लोगों के लिए, हृदय में जीने वालों के लिए।
अंधकार से भरी रात्रि में प्रकाश की एक किरण का होना भी सौभाग्य है। क्योंकि, जो उसका अनुसरण करते हैं, वे प्रकाश के स्रोत तक पहुंच जाते हैं।
मनुष्य के भीतर जो जीवन है वह अमृत्व की किरण है--जो बोध है, वह बुद्धत्व की बूंद है--और जो आनंद है, वह सच्चिदानंद की झलक है।
सत्य स्वयं के भीतर है। उसे पहचान लेना भी कठिन नहीं, लेकिन उसके लिए अपने ही भीतर यात्रा करनी होगी। जब कोई अपने भीतर जाता है, तो अपने ही प्राणों के प्राण में वह सत्य को भी पा जाता है और स्वयं को भी।
ओशो
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
क्या है हमारे होने का अभिप्राय--क्या है उद्देश्य?
आनंद क्या है? जीवन क्या है?
धर्म क्या है? संयम क्या है?
दुख क्या है? प्रेम क्या है?
योग क्या है? पाप क्या है?
जीवन में सबसे बड़ा रहस्य-सूत्र क्या है?
Type | फुल सीरीज |
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Publisher | ओशो मीडिया इंटरनैशनल |
ISBN-13 | 978-0-88050-739-4 |
Number of Pages | 463 |
File Size | 4.55 MB |
Format | Adobe ePub |
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