पंथ प्रेम को अटपटो – Panth Prem Ko Atpato

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भाग एक : ’मैंने राम रतन धन पायो’ एवं भाग दो : ’झुक आयी बदरिया सावन की’ मीरा-वाणी प्रवचनमालाओं के अंतर्गत प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए बीस अमृत प्रवचनों का संकलन।
भाग एक : ’मैंने राम रतन धन पायो’ एवं भाग दो : ’झुक आयी बदरिया सावन की’ मीरा-वाणी प्रवचनमालाओं के अंतर्गत प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए बीस अमृत प्रवचनों का संकलन।

पंथ प्रेम को अटपटो – Panth Prem Ko Atpato
सभी महत्वपूर्ण चीजों के संबंध में भ्रांतियां हो जाती हैं। जो भी व्यर्थ है, उसके संबंध में कभी भ्रांति नहीं होती। जो बात जितनी सार्थक है, उतनी भ्रांति पैदा होती है। उसका कारण यह है कि जो जितनी व्यर्थ है, हमारी सबकी समझ के भीतर होती है। और जो जितनी सार्थक है, हमारी समझ इस पार पड़ जाती है, बात आगे निकल जाती है। तो जमीन के संबंध में कोई बात हो, तो भ्रांति नहीं होगी; आकाश के संबंध में बात हुई, तो भ्रांति शुरू हो जाएगी। तो जितनी ऊंची बात है, उतनी मिस-अंडरस्टैंडिंग पैदा होनी अनिवार्य है। क्योंकि हम तो वहीं से पकड़ सकते हैं, जहां हम हैं। और हम वही समझ सकते हैं, जो हम समझ सकते हैं। जो हमारी समझ के पार है, उसको भी हम समझने की कोशिश करते हैं, इसी से भ्रांति पैदा होती है।

अब जैसे यौन तो मनुष्य की समझ के भीतर है, सेक्स तो उसकी समझ के भीतर है; ब्रह्मचर्य उसकी समझ के बिलकुल बाहर है। तो वह जो भी ब्रह्मचर्य का अर्थ लेगा, वह किसी न किसी तरह से सेक्स-सेंटर्ड होगा। जो भी अर्थ लेगा, वह यौन-केंद्रित होगा। और वहीं से भ्रांति शुरू हो जाएगी। ब्रह्मचर्य का कोई संबंध यौन से नहीं है। कोई भी संबंध। हां, ब्रह्मचर्य के परिणाम में जरूर यौन पर प्रभाव पड़ते हैं। दो बातें समझ लेनी चाहिए। एक तो मनुष्य के मन में--मनुष्य के ही नहीं, समस्त प्राणियों के मन में, शायद प्राणियों के मन में ही नहीं, पौधे, वृक्षों, वनस्पति के मन में भी सुख का जो अनुभव है वह यौन से बंधा हुआ है। और स्वभावतः, जिस चीज से सुख का अनुभव बंधा होगा, उसी से दुख का अनुभव भी बंधेगा। तो सर्वाधिक सुख की कल्पना और कामना भी यौन में केंद्रित है और सर्वाधिक दुख की भी। तो जब भी कभी और किसी बड़े आनंद की बात की गई है, तो हमारे पास जो तौलने का मापदंड है, वह यौन-सुख है। हम उसी से तौलते हैं। और यह भी हमारे खयाल में आ गया कि जिन लोगों को वह आनंद उपलब्ध होता है, उनके जीवन से यौन एकदम विदा हो जाता है। हमारी जो तौल है परम सुख की, आनंद की, मोक्ष की, कोई भी नाम दें--तो हम यही सोच सकते हैं कि जैसे अनंत-अनंत संभोगों का सुख होगा उसमें। शास्त्र में ऐसी बात भी चलती है। अनंत संभोगों का सुख इसमें है!

तो हम तौल भी सकते हैं। अगर हमसे कोई मोक्ष की और आनंद की और ब्रह्म की बात करे, तो हम तौलें कहां से? हमारे पास मेजरमेंट क्या है? हमने जो सुख जाना है, उसी से हम तौलेंगे। स्वभावतः वैसे ही जैसे कुएं का मेढक, सागर के संबंध में भी बात करो, तो कुएं से ही तौलेगा। वह यह पूछेगा कि तुम्हारा सागर कितना बड़ा है? हमारे कुएं से दो गुना बड़ा, दस गुना बड़ा, पचास गुना बड़ा? और उस मेढक को हम कहें कि नहीं, तुम्हारा कुआं तो मेजरमेंट ही नहीं है सागर का, तो वह फिर वह हम पर अविश्र्वास करेगा। वह कहेगा, ऐसी कोई चीज हो नहीं सकती। कितनी ही बड़ी हो, कुएं से नप जाएगी। क्योंकि बड़ी से बड़ी जो है उसकी दुनिया वह कुएं तक सीमित है। तो हमारे मन के सुख के जो भी छोटे-मोटे झरने का हमें अनुभव हुआ है, वह सेक्स से संबंधित है। —ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:
ब्रह्मचर्य..., यौन..., प्रेम...., ध्यान...., आनंद...., महत्वाकांक्षा...., क्रांति...., जागरण...., ध्यान..., अहंकार.....
अधिक जानकारी
Type फुल सीरीज
Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13 978-0-88050-786-8
Number of Pages 505
File Size 1.60 MB
Format Adobe ePub