निर्वाण उपनिषद – Nirvan Upanishad

ई-पुस्तक — अन्य प्रारूपों में भी उपलब्ध है:ऑडियोपुस्तकें (English)
स्टॉक में
निर्वाण उपनिषद पर ओशो द्वारा दिए गए पंद्रह अमृत प्रवचन
निर्वाण उपनिषद पर ओशो द्वारा दिए गए पंद्रह अमृत प्रवचन

निर्वाण उपनिषद – Nirvan Upanishad
यह भी बहुत मजे की बात है कि उपनिषद का ऋषि और गणित के अंक का प्रयोग करता है, ब्रह्म के लिए। यह जानकर आप हैरान होंगे कि इस जगत में, इस पूरे मनुष्य की जानकारी में गणित ही अकेला शास्त्र है, जिसमें सबसे कम विवाद है। उसका कारण है। क्योंकि शब्द का कोई उपयोग नहीं है। अंकों का उपयोग है। अंकों में विवाद नहीं हो सकते। और दो और दो किसी भी भाषा में लिखे जाएं, और परिणाम चार किसी भी तरह कहा जाए, तो अंतर नहीं पड़ता है। इसलिए गणित सबसे कम विवादग्रस्त विज्ञान है। और वैज्ञानिक मानते हैं कि आज नहीं कल हमें सारे विज्ञान की भाषा को गणित की भाषा में ही रूपांतरित करना पड़ेगा, तो ही हम अन्य विज्ञानों और शास्त्रों के विवाद से मुक्त हो सकेंगे। बहुत पहले, हजारों साल पहले ऋषि उस ब्रह्म को, उस परम सत्ता को कहता है: द फोर्थ, चौथा, तुरीय।

मैंने कहा, एक तो तीन गुणों के जो पार है, वह चौथा। एक और गहन खोज, जिसका सारा श्रेय उपनिषदों को है और आधुनिक मनोविज्ञान उस श्रेय के ठीक-ठीक मालिक को खोज लेने में समर्थ हो गया है, कि उपनिषद ही उस श्रेय के हकदार हैं, वह है मनुष्य के चित्त की तीन दशाएं हैं--जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति। जागते हैं, स्वप्न देखते हैं, सोते हैं। अगर इन तीनों में ही मनुष्य समाप्त है, तो वह कौन है जो जागता है! वह कौन है जो सोता है! वह कौन है जो स्वप्न देखता है!

निश्चित ही चौथा भी होना चाहिए, जिस पर जागरण का प्रकाश आता है, जिस पर निद्रा का अंधकार आता है, जिस पर स्वप्नों का जाल बुन जाता है। वह द फोर्थ, चौथा होना चाहिए, वह तीन में नहीं हो सकता। अगर मैं तीन में से एक हूं, तो बाकी दो मेरे ऊपर नहीं आ सकते। अगर मैं जाग्रत ही हूं, तो निद्रा मुझ पर कैसे उतरेगी? अगर मैं निद्रा ही हूं, तो मुझ पर स्वप्नों की तरंगें कैसी बनेंगी? ये तीन अवस्थाएं हैं, और जो मैं हूं, वह निश्चित ही चौथा होना चाहिए। उपनिषद उसे तुरीय कहते हैं, वह जो चौथा है। —ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:
स्मरण..., आनंद..., अंधकार..., संकल्प..., समर्पण..., ध्वनि...., असहाय..., धैर्य..., रावण..., वोल्तेयर....
अधिक जानकारी
Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13 978-0-88050-990-9
Number of Pages 1968
File Size 2.87 MB
Format Adobe ePub