का सोवै दिन रैन – Ka Sovai Din Rain
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धनी धरमदास के पदों पर हुए ग्यारह ओशो प्रवचनों की दूसरी प्रवचनमाला छः प्रवचन सूत्रों पर व पांच प्रश्नोत्तर।
धनी धरमदास के पदों पर हुए ग्यारह ओशो प्रवचनों की दूसरी प्रवचनमाला छः प्रवचन सूत्रों पर व पांच प्रश्नोत्तर।
का सोवै दिन रैन – Ka Sovai Din Rain
जिंदगी मिलती है--अवसर की तरह, चुनौती की तरह। जो उस चुनौती को स्वीकार कर लेता है, जो उस अवसर का उपयोग कर लेता है, उसे परम जीवन मिल जाता है।
यह जिंदगी तो उस परम जीवन का द्वार है। इस पर ही मत अटक जाना। यह तो उस राजमहल का द्वार है। इस द्वार पर ही मत बैठे रह जाना, नहीं तो भिखमंगे ही रह जाओगे। तुम सम्राट होने को पैदा हुए हो, उससे कम पर राजी मत होना। लेकिन सम्राट होने के लिए बड़ी धूल-धवांस चित्त से झाड़नी होगी। नींद और सपने छोड़ देने होंगे।
मैं भी तुमसे कुछ छोड़ने को कहता हूं। संसार छोड़ने को नहीं कहता, स्वप्न छोड़ने को कहता हूं। मैं भी तुमसे कुछ छोड़ने को कहता हूं। पत्नी, बच्चे, परिवार छोड़ने को नहीं कहता। यह मन के पास, मन के दर्पण के पास जो गर्द-गुबार जम गई है, जो स्वभावतः जम जाती है...। यात्रा कर रहे हैं हम जन्मों-जन्मों से, सदियों-सदियों से। यात्रा में यात्री के कपड़ों पर धूल जम ही जाएगी। यह स्वाभाविक है। इस धूल-धवांस को झाड़ दो। और तुम पाओगे, तुम्हारे भीतर छिपा है कोहिनूर। तुम्हारे भीतर मालिक छिपा है। जिसको तुम खोज रहे हो, तुम्हारे भीतर छिपा है। खोजने वाले में छिपा है। और तुम भागे चले जाते हो। और तुमने कभी आंख खोल कर अपने भीतर जरा भी टटोला नहीं।
इसके पहले कि तुम जगत में खोजने निकलो, एक बार अपने भीतर तो झांक कर देख लो। धर्म उस झांकने की कला का नाम है। इसलिए धर्म का प्रारंभ श्रद्धा से होता है, और अंत भी श्रद्धा पर।
श्रद्धा का क्या अर्थ है? श्रद्धा का अर्थ है: जो दिखाई नहीं पड़ता, उसकी खोज की हिम्मत। श्रद्धा का अर्थ है: बीज को बोने की हिम्मत। बीज में अभी फूल तो दिखाई पड़ते नहीं। श्रद्धा का अर्थ है: भरोसा, कि बीज टूटेगा, कि बीज कंकड़ नहीं है। मगर ऐसे तो बीज और कंकड़ में क्या फर्क दिखाई पड़ता है? फर्क तो भविष्य में तय होगा। भविष्य अभी आया नहीं है।
बीज को जब कोई बोता है तो भरोसे की सूचना देता है। श्रद्धा का इशारा हो रहा है। श्रद्धा की भाव भंगिमा है, बीज को बोने में बड़ी श्रद्धा है। इस बात की श्रद्धा है कि बीज टूटेगा, कंकड़ नहीं है। इस बात की श्रद्धा है कि बीज में फूल छिपे हैं, जो प्रकट होंगे। अभी दिखाई नहीं पड़ते कोई फिकर नहीं। कभी दिखाई पड़ेंगे। जो अभी अदृश्य है, वह दृश्य होगा।
फिर बीज को पानी देता है माली। अब तो बीज दिखाई भी नहीं पड़ता। फूल तो दूर, फूल का दिखाई पड़ना तो दूर, अब तो बीज भी जमीन में खो गया है और बीज भी दिखाई नहीं पड़ता। बड़ी श्रद्धा चाहिए। बीज भी गया, फूलों का कुछ पता नहीं है। देता है पानी, देता है खाद--और प्रतीक्षा करता है, और प्रार्थना करता है। —ओशो
यह जिंदगी तो उस परम जीवन का द्वार है। इस पर ही मत अटक जाना। यह तो उस राजमहल का द्वार है। इस द्वार पर ही मत बैठे रह जाना, नहीं तो भिखमंगे ही रह जाओगे। तुम सम्राट होने को पैदा हुए हो, उससे कम पर राजी मत होना। लेकिन सम्राट होने के लिए बड़ी धूल-धवांस चित्त से झाड़नी होगी। नींद और सपने छोड़ देने होंगे।
मैं भी तुमसे कुछ छोड़ने को कहता हूं। संसार छोड़ने को नहीं कहता, स्वप्न छोड़ने को कहता हूं। मैं भी तुमसे कुछ छोड़ने को कहता हूं। पत्नी, बच्चे, परिवार छोड़ने को नहीं कहता। यह मन के पास, मन के दर्पण के पास जो गर्द-गुबार जम गई है, जो स्वभावतः जम जाती है...। यात्रा कर रहे हैं हम जन्मों-जन्मों से, सदियों-सदियों से। यात्रा में यात्री के कपड़ों पर धूल जम ही जाएगी। यह स्वाभाविक है। इस धूल-धवांस को झाड़ दो। और तुम पाओगे, तुम्हारे भीतर छिपा है कोहिनूर। तुम्हारे भीतर मालिक छिपा है। जिसको तुम खोज रहे हो, तुम्हारे भीतर छिपा है। खोजने वाले में छिपा है। और तुम भागे चले जाते हो। और तुमने कभी आंख खोल कर अपने भीतर जरा भी टटोला नहीं।
इसके पहले कि तुम जगत में खोजने निकलो, एक बार अपने भीतर तो झांक कर देख लो। धर्म उस झांकने की कला का नाम है। इसलिए धर्म का प्रारंभ श्रद्धा से होता है, और अंत भी श्रद्धा पर।
श्रद्धा का क्या अर्थ है? श्रद्धा का अर्थ है: जो दिखाई नहीं पड़ता, उसकी खोज की हिम्मत। श्रद्धा का अर्थ है: बीज को बोने की हिम्मत। बीज में अभी फूल तो दिखाई पड़ते नहीं। श्रद्धा का अर्थ है: भरोसा, कि बीज टूटेगा, कि बीज कंकड़ नहीं है। मगर ऐसे तो बीज और कंकड़ में क्या फर्क दिखाई पड़ता है? फर्क तो भविष्य में तय होगा। भविष्य अभी आया नहीं है।
बीज को जब कोई बोता है तो भरोसे की सूचना देता है। श्रद्धा का इशारा हो रहा है। श्रद्धा की भाव भंगिमा है, बीज को बोने में बड़ी श्रद्धा है। इस बात की श्रद्धा है कि बीज टूटेगा, कंकड़ नहीं है। इस बात की श्रद्धा है कि बीज में फूल छिपे हैं, जो प्रकट होंगे। अभी दिखाई नहीं पड़ते कोई फिकर नहीं। कभी दिखाई पड़ेंगे। जो अभी अदृश्य है, वह दृश्य होगा।
फिर बीज को पानी देता है माली। अब तो बीज दिखाई भी नहीं पड़ता। फूल तो दूर, फूल का दिखाई पड़ना तो दूर, अब तो बीज भी जमीन में खो गया है और बीज भी दिखाई नहीं पड़ता। बड़ी श्रद्धा चाहिए। बीज भी गया, फूलों का कुछ पता नहीं है। देता है पानी, देता है खाद--और प्रतीक्षा करता है, और प्रार्थना करता है। —ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:ध्यान, एकाग्रता, प्रार्थना, अनुकरण, मन, कामवासना, प्रेम, मृत्यु, नागार्जुन, सिगमंड फ्रायड
Type | फुल सीरीज |
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Publisher | ओशो मीडिया इंटरनैशनल |
ISBN-13 | 978-0-88050-955-8 |
File Size | 2.92 MB |
Format | Adobe ePub |
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