हरि बोलौ हरि बोल – Hari Bolo Hari Bol

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सुंदरदास के पदों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
सुंदरदास के पदों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks

उद्धरण: हरि बोलौ हरि बोल, # 1 नीर बिनु मीन दुखी
हरि बोलौ हरि बोल!

हरि के अतिरिक्त कुछ और न बचे, ऐसी इस नई यात्रा पर सुंदरदास के साथ हम चलेंगे। संतों में... कविताएं तो बहुत संतों ने की हैं, लेकिन काव्य के हिसाब से सुंदरदास को ही केवल कवि कहा जा सकता है। बाकी के पास कुछ गाने को था, तो गाया है। लेकिन सुंदर के पास कुछ गाने को भी है और गाने की कला भी है। सुंदरदास अकेले, सारे निर्गुण संतों में, महाकवि के पद पर प्रतिष्ठित हो सकते हैं। जो कहा है वह तो अपूर्व है ही; जैसे कहा है, वह भी अपूर्व है। संदेश तो प्यारा है ही, संदेश के शब्द-शब्द भी बड़े बहुमूल्य हैं।


तुम एक महत्वपूर्ण अभियान पर निकल रहे हो। इसके पहले कि हम सुंदरदास के सूत्रों में उतरना शुरू करें... और सीढ़ी-सीढ़ी तुम्हें बड़ी गहराइयों में वे सूत्र ले जाएंगे। ठीक जल-स्रोत तक पहुंचा देंगे। पीना हो तो पी लेना। क्योंकि संत केवल प्यास जगा सकते हैं। कहावत है न, घोड़े को नदी ले जा सकते हो, घोड़े को पानी दिखा सकते हो, लेकिन पानी पिला नहीं सकते। सुंदरदास का हाथ पकड़ो। वे तुम्हें ले चलेंगे उस सरोवर के पास, जिसकी एक घूंट भी सदा को तृप्त कर जाती है। लेकिन बस सरोवर के पास ले चलेंगे, सरोवर सामने कर देंगे। अंजुली तो तुम्हें ही बनानी पड़ेगी अपनी। झुकना तो तुम्हें ही पड़ेगा। पीना तो तुम्हें ही पड़ेगा। लेकिन अगर सुंदर को समझा तो मार्ग में वे प्यास को भी जगाते चलेंगे, तुम्हारे भीतर सोए हुए चकोर को पुकारेंगे, जो चांद को देखने लगे। तुम्हारे भीतर सोए हुए चातक को जगाएंगे, जो स्वाति की बूंद के लिए तड़फने लगे।


तुम्हें समझाएंगे कि तुम मछली की भांति हो, जिसका सागर खो गया है और जो किनारे पर तड़प रही है। सागर का तुम्हें पता हो या न हो, एक बात का तो तुम्हें पता है जिससे तुम्हें राजी होना पड़ेगा कि तुम तड़प रहे हो कि तुम परेशान हो, कि तुम पीड़ित हो, कि तुम बेचैन हो, कि तुम्हारे जीवन में कोई राहत की घड़ी नहीं है, कि तुमने जीवन में कोई सुख की किरण नहीं जानी। आशा की है। सुख मिला कब? सोचा है मिलेगा, मिलेगा, अब मिला, तब मिला; पर सदा धोखा होता रहा है। खोजा बहुत है। नहीं कि तुमने कम खोजा है--जन्मों-जन्मों से खोजा है। मगर तुम्हारे हाथ खाली हैं। तुम्हारी खोज गलत दिशाओं में चलती रही है। तुम्हारी खोज तुम्हें सरोवर के पास नहीं लाई--और-और दूर ले गई है। और धीरे-धीरे तुम्हारे अनुभव ने तुम्हारे भीतर यह बात गहरा दी है कि शायद यहां मिलने को कुछ भी नहीं है। और अगर कोई ऐसा हताश हो जाए कि यहां मिलने को कुछ भी नहीं है, तो फिर मिलने को कुछ भी नहीं है। क्योंकि पैर थक जाएंगे। तुम टूट कर गिर जाओगे। सुंदर तुम्हें याद दिलाएंगे: यहां मिलने को बहुत कुछ है। सिर्फ खोजने की कला चाहिए। ठीक दिशा, ठीक आयाम। यहां पाने को बहुत कुछ है। स्वयं परमात्मा यहां छिपा है। लेकिन तुम गलत खोजते रहे हो। तुम कंकड़-पत्थर बीन रहे हो, जहां हीरे की खदानें हैं। तुम्हारी प्यास जगाएंगे, तुम्हारे चातक को जगाएंगे, तुम्हारे चकोर को जगाएंगे। तुम्हारे भीतर एक प्रज्वलित अग्नि पैदा करेंगे। ऐसी घड़ी तुम्हारे भीतर प्यास की आ जाएगी जरूर, जब न मालूम किस गहराई से ‘हरि बोलौ हरि बोल’ ऐसे बोल तुम्हारे भीतर उठेंगे। तभी तुम इन सूत्रों को समझ पाओगे। ओशो


इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:


ध्यान, मौन, क्रांति, सत्य, बुद्धत्व, पांडित्य, श्रद्धा, प्रेम, स्वच्छंदता, प्रतीक्षा, खोज
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Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13 978-0-88050-839-1
Format Adobe ePub