गीता-दर्शन, अध्याय आठ – Gita Darshan, Adhyaya 8

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श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय आठ ‘अक्षर ब्रह्म योग’ पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए ग्यारह प्रवचन
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय आठ ‘अक्षर ब्रह्म योग’ पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए ग्यारह प्रवचन

गीता-दर्शन, अध्याय आठ,
आज तो विज्ञान भी स्वीकार करता है कि पदार्थ की जो आंतरिक घटना है, वह पदार्थ नहीं है, प्रकाश ही है। जहां-जहां हम पदार्थ देखते हैं, वह प्रकाश का घनीभूत रूप है, कंडेंस्ड लाइट। या उसको विद्युत कहें, या उसको प्रकाश की किरण कहें, या शक्ति कहें। लेकिन आज विज्ञान अनुभव करता है कि पदार्थ जैसी कोई भी चीज जगत में नहीं है। सिर्फ प्रकाश है। और प्रकाश ही जब घनीभूत हो जाता है, तो हमें पदार्थ मालूम पड़ता है।
विज्ञान के विश्लेषण से पदार्थ का जो अंतिम रूप हमें उपलब्ध हुआ है, वह इलेक्ट्रान है, वह विद्युत-कण है। विद्युत-कण छोटा सूर्य है। अपने आप में पूरा, सूर्य की भांति प्रकाशोज्ज्वल। विज्ञान भी इस नतीजे पर पहुंचा है कि सारा जगत प्रकाश का खेल है।

और धर्म तो इस नतीजे पर बहुत पहले से पहुंचा है कि परमात्मा का जो अनुभव है, वह वस्तुतः प्रकाश का अनुभव है। फिर कुरान कितनी ही भिन्न हो गीता से, और गीता कितनी ही भिन्न हो बाइबिल से, लेकिन एक मामले में जगत के सारे शास्त्र सहमत हैं, और वह है प्रकाश। सारे धर्म एक बात से सहमत हैं, और वह है, प्रकाश की परम अनुभूति।

विज्ञान और धर्म दोनों एक नतीजे पर पहुंचे हैं, अलग-अलग रास्तों से। विज्ञान पहुंचा है पदार्थ को तोड़-तोड़कर इस नतीजे पर कि अंतिम कण, अविभाजनीय कण, प्रकाश है। और धर्म पहुंचा है स्वयं के भीतर डूबकर इस नतीजे पर कि जब कोई व्यक्ति अपनी पूरी गहराई में डूबता है, तो वहां भी प्रकाश है; और जब उस गहराई से बाहर देखता है, तो सब चीजें विलीन हो जाती हैं, सिर्फ प्रकाश रह जाता है।

अगर यह सारा जगत प्रकाश रह जाए, तो निश्चित ही हजारों सूर्य एक साथ उत्पन्न हुए हों, ऐसा अनुभव होगा। हजार भी सिर्फ संख्या है। अनंत सूर्य! अनंत से भी हमें लगता है कि गिने जा सकेंगे, कुछ सीमा बनती है। नहीं, कोई सीमा नहीं बनेगी। अगर पृथ्वी का एक-एक कण एक-एक सूर्य हो जाए। और है। एक-एक कण सूर्य है। पदार्थ का एक-एक कण विद्युत ऊर्जा है।

तो तब कोई गहन अनुभव में उतरता है अस्तित्व के, तो प्रकाश ही प्रकाश रह जाता है।
संजय इसी तरफ धृतराष्ट्र को कह रहा है कि और हे राजन्‌! आकाश में हजार सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न हुआ जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्वरूप परमात्मा के प्रकाश के सदृश कदाचित ही होवे।
—ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:
कर्म, योग, सत्य, ध्यान, संकल्प, जीवन, वासना, अहंकार, श्रद्धा, अर्जुन
अधिक जानकारी
Type फुल सीरीज
Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13 978-0-88050-928-2
File Size 3,423 KB
Format Adobe ePub