गीता-दर्शन, अध्याय चार – Gita Darshan, Adhyaya 4
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श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय चार ‘ज्ञान कर्म संन्यास योग’ पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए अठारह प्रवचन
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय चार ‘ज्ञान कर्म संन्यास योग’ पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए अठारह प्रवचन
गीता-दर्शन, अध्याय चार
कर्म क्या है और अकर्म क्या है, बुद्धिमान व्यक्ति भी निर्णय नहीं कर पाते हैं। कृष्ण कहते हैं, वह गूढ़ तत्व मैं तुझसे कहूंगा, जिसे जानकर व्यक्ति मुक्त हो जाता है।
अजीब-सी लगेगी यह बात; क्योंकि कर्म क्या है और अकर्म क्या है, यह तो मूढ़जन भी जानते हैं। कृष्ण कहते हैं, कर्म क्या है और अकर्म क्या है, यह बुद्धिमानजन भी नहीं जानते हैं।
हम सभी को यह खयाल है कि हम जानते हैं, क्या है कर्म और क्या कर्म नहीं है। कर्म और अकर्म को हम सभी जानते हुए मालूम पड़ते हैं। लेकिन कृष्ण कहते हैं कि बुद्धिमानजन भी तय नहीं कर पाते हैं कि क्या कर्म है और क्या अकर्म है। गूढ़ है यह तत्व। तो फिर पुनर्विचार करना जरूरी है। हम जिसे कर्म समझते हैं, वह कर्म नहीं होगा; हम जिसे अकर्म समझते हैं, वह अकर्म नहीं होगा।
हम किसे कर्म समझते हैं? हम प्रतिकर्म को कर्म समझे हुए हैं, रिएक्शन को एक्शन समझे हुए हैं। किसी ने गाली दी आपको, और आपने भी उत्तर में गाली दी। आप जो गाली दे रहे हैं, वह कर्म न हुआ; वह प्रतिकर्म हुआ, रिएक्शन हुआ। किसी ने प्रशंसा की, और आप मुस्कुराए, आनंदित हुए; वह आनंदित होना कर्म न हुआ; प्रतिकर्म हुआ, रिएक्शन हुआ।
आपने कभी कोई कर्म किया है! या प्रतिकर्म ही किए हैं?
चौबीस घंटे, जन्म से लेकर मृत्यु तक, हम प्रतिकर्म ही करते हैं; हम रिएक्ट ही करते हैं। हमारा सब करना हमारे भीतर से सहज-जात नहीं होता, स्पॉन्टेनियस नहीं होता। हमारा सब करना हमसे बाहर से उत्पादित होता है, बाहर से पैदा किया गया होता है।
किसी ने धक्का दिया, तो क्रोध आ जाता है। किसी ने फूलमालाएं पहनाईं, तो अहंकार खड़ा हो जाता है। किसी ने गाली दी, तो गाली निकल आती है। किसी ने प्रेम के शब्द कहे, तो गदगद हो प्रेम बहने लगता है। लेकिन ये सब प्रतिकर्म हैं।
ये प्रतिकर्म वैसे ही हैं, जैसे बटन दबाई और बिजली का बल्ब जल गया; बटन बुझाई और बिजली का बल्ब बुझ गया। बिजली का बल्ब भी सोचता होगा कि मैं कर्म करता हूं जलने का, बुझने का। लेकिन बिजली का बल्ब जलने-बुझने का कर्म नहीं करता है। कर्म उससे कराए जाते हैं। बटन दबती है, तो उसे जलना पड़ता है। बटन बुझती है, तो उसे बुझना पड़ता है। यह उसकी स्वेच्छा नहीं है।
—ओशो
हम सभी को यह खयाल है कि हम जानते हैं, क्या है कर्म और क्या कर्म नहीं है। कर्म और अकर्म को हम सभी जानते हुए मालूम पड़ते हैं। लेकिन कृष्ण कहते हैं कि बुद्धिमानजन भी तय नहीं कर पाते हैं कि क्या कर्म है और क्या अकर्म है। गूढ़ है यह तत्व। तो फिर पुनर्विचार करना जरूरी है। हम जिसे कर्म समझते हैं, वह कर्म नहीं होगा; हम जिसे अकर्म समझते हैं, वह अकर्म नहीं होगा।
हम किसे कर्म समझते हैं? हम प्रतिकर्म को कर्म समझे हुए हैं, रिएक्शन को एक्शन समझे हुए हैं। किसी ने गाली दी आपको, और आपने भी उत्तर में गाली दी। आप जो गाली दे रहे हैं, वह कर्म न हुआ; वह प्रतिकर्म हुआ, रिएक्शन हुआ। किसी ने प्रशंसा की, और आप मुस्कुराए, आनंदित हुए; वह आनंदित होना कर्म न हुआ; प्रतिकर्म हुआ, रिएक्शन हुआ।
आपने कभी कोई कर्म किया है! या प्रतिकर्म ही किए हैं?
चौबीस घंटे, जन्म से लेकर मृत्यु तक, हम प्रतिकर्म ही करते हैं; हम रिएक्ट ही करते हैं। हमारा सब करना हमारे भीतर से सहज-जात नहीं होता, स्पॉन्टेनियस नहीं होता। हमारा सब करना हमसे बाहर से उत्पादित होता है, बाहर से पैदा किया गया होता है।
किसी ने धक्का दिया, तो क्रोध आ जाता है। किसी ने फूलमालाएं पहनाईं, तो अहंकार खड़ा हो जाता है। किसी ने गाली दी, तो गाली निकल आती है। किसी ने प्रेम के शब्द कहे, तो गदगद हो प्रेम बहने लगता है। लेकिन ये सब प्रतिकर्म हैं।
ये प्रतिकर्म वैसे ही हैं, जैसे बटन दबाई और बिजली का बल्ब जल गया; बटन बुझाई और बिजली का बल्ब बुझ गया। बिजली का बल्ब भी सोचता होगा कि मैं कर्म करता हूं जलने का, बुझने का। लेकिन बिजली का बल्ब जलने-बुझने का कर्म नहीं करता है। कर्म उससे कराए जाते हैं। बटन दबती है, तो उसे जलना पड़ता है। बटन बुझती है, तो उसे बुझना पड़ता है। यह उसकी स्वेच्छा नहीं है।
—ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:सांख्य, राजयोग, प्रतिकर्म, मैत्री, नव-संन्यास, स्वाध्याय, आनंद, कर्ताभाव, मोह, संदेह
Type | फुल सीरीज |
---|---|
Publisher | ओशो मीडिया इंटरनैशनल |
ISBN-13 | 978-0-88050-924-4 |
File Size | 3,753 KB |
Format | Adobe ePub |
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