गीता-दर्शन, अध्याय चौदह – Gita Darshan, Adhyaya 14

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श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय चौदह ‘गुणत्रय विभाग योग’ पर वुडलैंड, मुंबई में हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए दस प्रवचन
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय चौदह ‘गुणत्रय विभाग योग’ पर वुडलैंड, मुंबई में हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए दस प्रवचन

गीता-दर्शन, अध्याय चौदह –
कृष्ण की पूरी चेष्टा यही है कि अर्जुन कैसे मिट जाए। गुरु का सारा उपाय सदा ही यही रहा है कि शिष्य कैसे मिट जाए। यहां जरा जटिलता है। क्योंकि शिष्य मिटने नहीं आता। शिष्य होने आता है। शिष्य बनने आता है, कुछ पाने आता है। सफलता, शांति, सिद्धि, मोक्ष, समृद्धि, स्वास्थ्य--कुछ पाने आता है। इसलिए गुरु और शिष्य के बीच एक आंतरिक संघर्ष है। दोनों की आकांक्षाएं बिलकुल विपरीत हैं। शिष्य कुछ पाने आया है और गुरु कुछ छीनने की कोशिश करेगा। शिष्य कुछ होने आया है, गुरु मिटाने की कोशिश करेगा। शिष्य कहीं पहुंचने के लिए उत्सुक है, गुरु उसे यहीं ठहराने के लिए उत्सुक है। पूरी गीता इसी संघर्ष की कथा है। अर्जुन घूम-घूमकर वही चाहता है, जो प्रत्येक शिष्य चाहता है। कृष्ण घूम-घूमकर वही करना चाह रहे हैं, जो प्रत्येक गुरु करना चाहता है। एक दरवाजे से कृष्ण हार जाते लगते हैं, क्योंकि अज्ञान गहन है, तो दूसरे दरवाजे से कृष्ण प्रवेश की कोशिश करते हैं। वहां भी हारते दिखाई पड़ते हैं, तो तीसरे दरवाजे से प्रवेश करते हैं। ध्यान रहे, शिष्य बहुत बार जीतता है। गुरु सिर्फ एक बार जीतता है। गुरु बहुत बार हारता है शिष्य के साथ। लेकिन उसकी कोई हार अंतिम नहीं है। और शिष्य की कोई जीत अंतिम नहीं है। बहुत बार जीतकर भी शिष्य अंततः हारेगा। क्योंकि उसकी जीत उसे कहीं नहीं ले जा सकती। उसकी जीत उसके दुख के डबरे में ही उसे डाले रखेगी। और जब तक गुरु न जीत जाए, तब तक वह दुख के डबरे के बाहर नहीं आ सकता है। लेकिन संघर्ष होगा। बड़ा प्रीतिकर संघर्ष है। बड़ी मधुर लड़ाई है। शिष्य की अड़चन यही है कि वह कुछ और चाह रहा है। और इन दोनों में कहीं मेल सीधा नहीं बैठता। इसलिए गीता इतनी लंबी होती जाती है। एक दरवाजे से कृष्ण कोशिश करते हैं, अर्जुन वहां जीत जाता है। जीत जाता है मतलब, वहां नहीं टूटता। जीत जाता है मतलब, वहां नहीं मिटता। चूक जाता है उस अवसर को। उसकी जीत उसकी हार है। क्योंकि अंततः जिस दिन वह हारेगा, उसी दिन जीतेगा। उसकी हार उसका समर्पण बनेगी।
—ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:
चाह, अचाह, होश, सत्य, समर्पण, स्वतंत्रता, साक्षीभाव, ज्ञान, वैराग्य, सात्विक कर्म
अधिक जानकारी
Type फुल सीरीज
Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13 978-0-88050-934-3
File Size 2,808 KB
Format Adobe ePub