अपने माहिं टटोल – Apne Mahin Tatol

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ध्यान साधना शिविर, उदयपुर में प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए दस प्रवचनों का संग्रह
ध्यान साधना शिविर, उदयपुर में प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए दस प्रवचनों का संग्रह

उद्धरण : अपने माहिं टटोल - पहला प्रवचन - चित्त का दर्पण

"हमारी मान्यता से सत्य प्रभावित नहीं होता, सत्य अपनी जगह है। हमारी मान्यता गलत होगी तो हम गलत और अंधेरे में भटकते रहेंगे, हमारा बोध स्पष्ट होगा तो हम सत्य के निकट पहुंच जाएंगे। सत्य हमारी मान्यता से प्रभावित नहीं होता, लेकिन हमारी मान्यता हमको प्रभावित कर देती है और अंधेरे में ढकेल देती है। क्या करें?

इन तीन दिनों में मैंने आपसे यह कहा है : अपने विचार को निष्पक्ष, मान्यता से मुक्त, परंपरा, रूढ़ियों से ऊपर उठाना जरूरी है, अगर कोई जानना चाहता हो उसे जो कि है। अगर परमात्मा को खोजना हो, तो परमात्मा के नाम से जो-जो बताया गया है, उसे पकड़ कर बैठ रहना खतरनाक है, उसे छोड़ देना होगा। उसे छोड़ देना होगा इसलिए कि उसका अभी पकड़ना अंधेरे में पकड़ना है। और जो उसे पकड़ कर तृप्त हो जाता है, फिर वह सच्चे परमात्मा की खोज ही नहीं करता, उसे कोई जरूरत नहीं रह जाती है।

इसलिए मैंने जोर दिया है कि आपका चित्त निष्पक्ष हो, विचारपूर्ण हो, जागरूक हो, अंधा न हो, विश्वासी न हो, विवेकयुक्त हो।

अब तक कहा जाता रहा है: विश्वास धर्म है। मैं आपसे कहता हूं: विश्वास अधर्म है। विश्वास धर्म नहीं है; धर्म है विवेक, धर्म है विचार। और चूंकि यह कहा जाता रहा है कि विश्वास धर्म है, इसी वजह से धर्म पीछे पड़ गया, विज्ञान के मुकाबले हारता चला गया। क्योंकि विज्ञान है विचार, विज्ञान विश्वास नहीं है। इसलिए विज्ञान तो रोज-रोज गति करता गया और धर्म सिकुड़ता गया, सिकुड़ता गया और सिकुड़ कर वह छोटे-छोटे डबरों में परिणत हो गया--हिंदू का डबरा, मुसलमान का डबरा, ईसाई का डबरा, जैनी का डबरा। सागर चाहिए धर्म का, डबरे नहीं चाहिए। धर्म चाहिए, हिंदू और मुसलमान और ईसाई नहीं चाहिए। एक ऐसी दुनिया चाहिए जहां धर्म तो हो, लेकिन हिंदू और मुसलमान न रह जाएं। क्योंकि हिंदू-मुसलमान की वजह से धर्म के आने में बाधा पड़ रही है।

और हिंदू-मुसलमान तब तक रहेंगे, जब तक विश्वास है। जिस दिन विश्वास की जगह विचार होगा, विवेक होगा, उस दिन दुनिया में बहुत धर्मों की कोई गुंजाइश नहीं रह जा सकती है।…धर्म अनेक क्यों हैं? जब जमीन के कानून एक हैं और जब पदार्थ के नियम एक हैं, तो आत्मा के नियम अनेक कैसे हो सकते हैं? जब सामान्य पदार्थ के नियम सार्वलौकिक हैं, युनिवर्सल हैं, तो परमात्मा के नियम भी अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? वे भी युनिवर्सल हैं।

लेकिन हमारे विश्वास के कारण हम उन सार्वलौकिक नियमों को खोजने में असमर्थ हैं।"—ओशो
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Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-189-7
Number of Pages 208