मैं धार्मिकता सिखाता हूं धर्म नहीं – Main Dharmikta Sikhata Hoon Dharm Nahin

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हमारे युग के सर्वाधिक मौलिक क्रांतिद्रष्टा ओशो को आधारभूत देशना ‘धर्म नहीं धार्मिकता’ पर दिए गए २२ प्रवचनांशों का एक अप्रतिम संकलन।
हमारे युग के सर्वाधिक मौलिक क्रांतिद्रष्टा ओशो को आधारभूत देशना ‘धर्म नहीं धार्मिकता’ पर दिए गए २२ प्रवचनांशों का एक अप्रतिम संकलन।

उद्धरण : मैं धार्मिकता सिखाता हूं धर्म नहीं - भाग 2 - दूसरा प्रवचन — मैं आल्हाद सिखाता हूँ, विषाद नहीं

"मेरी दृष्टि में वही व्यक्ति प्रामाणिक रूप से धार्मिक है, जो जीवन के प्रति समादरपूर्ण है;
न कि वे लोग जो प्रति रविवार चर्च चले जाते हैं; अथवा मंदिर, मस्जिद, या सिनागॉग हो आते हैं।
बिना आत्म-रूपांतरण की प्रक्रिया से गुजरे, बगैर कुछ दांव पर लगाए, धर्म का सौदा बड़े सस्ते में कर के, वे लोग स्वयं को ही धोखा दे रहे हैं।
उन्होंने सुंदर-सुंदर खिलौनों से खेलने का इंतजाम कर लिया है--परमात्मा की मूर्तियां, स्वर्ग से अवतरित शास्त्र, ईश्वर के पैगाम लेकर आने वाले पैगंबर और अवतार, जो हमारे द्वारा ही कल्पित हैं; क्योंकि यह खयाल मात्र ही हमें बड़ी तसल्ली देता है, प्रीतिकर लगता है कि परमात्मा हमारी फिकर रखता है, और हमारे लिए पैगाम भेजता है।

अपने अहंकार की वजह से ही हमने इन अवतारों और पैगंबरों पर विश्वास किया है। अहंकार के कारण ही हमने ईश्वर में भरोसा किया है कि ईश्वर ने मनुष्य की रचना की, और उसने अपनी ही शक्ल में मनुष्य को बनाया। उसने मनुष्य का निर्माण ऐसे किया जैसे मनुष्य उसकी सृजनात्मकता की परम पराकाष्ठा हो, इसके बाद फिर उसने कुछ और सृजन नहीं किया। यह उसकी अंतिम कृति है। इसके पश्चात उसने अवकाश ग्रहण कर लिया, रिटायर हो गया।

मेरे लिए यह बिलकुल ही भिन्न अर्थ रखता है। आदमी यह मानता है कि वह ईश्वर की कृति है, क्योंकि यह मान्यता उसके अहं को बहुत पुष्ट करती है कि ‘‘मैं कोई ऐरा-गैरा, कोई साधारण व्यक्ति नहीं, वरन परमात्मा की रचना हूं।’’

परंतु मेरी दृष्टि में परमात्मा का विचार ही बड़ा बेहूदा है; और यह खयाल कि उसने मनुष्य की सृष्टि की, मनुष्य को एक कठपुतली मात्र बना देता है।....

ईश्वर ने मनुष्य की रचना की, इस समूची धारणा ने जीवन का सौंदर्य और आनंद छीन कर तुम्हें मशीनों में बदल डाला है। मैं तुम्हारे जीवन से ईश्वर को विदा करना चाहता हूं ताकि तुम पहली बार स्वयं को आत्म-निर्भर एवं स्वतंत्र महसूस कर सको; किसी के द्वारा निर्मित कठपुतली की भांति नहीं, वरन जीवन के शाश्वत स्रोत की तरह स्वयं को अनुभव कर सको। केवल तभी तुम प्रफुल्लित हो सकते हो।"—ओशो
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Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-049-4
Number of Pages 136