काहे होत अधीर – Kahe Hot Adheer

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ओशो द्वारा पलटू-वाणी पर दिए गए उन्नीस अमृत प्रवचनों का संकलन।
ओशो द्वारा पलटू-वाणी पर दिए गए उन्नीस अमृत प्रवचनों का संकलन।

उद्धरण : काहे होत अधीर - तीसरा प्रवचन - साजन-देश को जाना

"गुरु ने पहचान करवा दी। गंगा-यमुना को अलग छांट कर बता दिया और दोनों के बीच में छिपी हुई अदृश्य चेतना की धार--साक्षी से मिलन करवा दिया। गुरु ने उसी ठांव से हमें जुड़ा दिया, उसी मंजिल पर पहुंचा दिया--उस अदृश्य, अगोचर, अनिर्वचनीय! उसको ठैयां कहा है, ठांव कहा है। तेहिं ठैयां जोरल सनेहिया हो! और कला यह है गुरु की कि प्रेम के माध्यम से उस ठांव तक पहुंचा दिया; उस अदृश्य से, अनिर्वचनीय से मिलन करवा दिया। वह भी प्रीति से, प्रेम से! और हमारे हृदय को ही नहीं चुरा कर ले गया, उसी चोरी के साथ एक चोरी और भी हो गई: हमारी सारी पीर, हमारी सारी पीड़ा भी चुरा कर ले गया। पीछे रह गया सिर्फ आनंद का एक सागर।

और जिसने भी इस योग को जान लिया, इस मिलन को जान लिया--योग का अर्थ होता है: मिलन--जिसने भी स्वयं के और परमात्मा के मिलन को जान लिया, उसकी फिर कोई मृत्यु नहीं है; वह अमृत को उपलब्ध हो जाता है।

पलटूदास कहते हैं, घबराना मत। रास्ता अंधेरा हो, चिंता न लेना; कंटकाकीर्ण हो, लौट मत जाना; विरह की अग्नि सताए, घबरा मत जाना। यह तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है परमात्मा से मिलना। यह तुम्हारा स्वरूपसिद्ध अधिकार है। वह प्यारा मिलेगा, यह तुम्हारी किस्मत में लिखा है। देर-अबेर तुम चाहे कितनी ही करो, वह प्यारा मिलेगा। यह तुम्हारा अधिकार है।

और कोई चीज इस परम लक्ष्य में बाधा न बने--धन, पद, प्रतिष्ठा। और कोई चीज इस परम लक्ष्य में बाधा न बने--परिवार, प्रियजन, मित्र। और कोई चीज इस परम लक्ष्य में बाधा न बने, इसका स्मरण रखना। हजार बाधाएं हैं, हजार प्रलोभन हैं। तुम्हारी अवस्था ऐसी है जैसे छोटे से बच्चे की मेले में हो जाती है, जहां खिलौनों ही खिलौनों की दुकानें लगी हैं। इस दुकान की तरफ खिंचता है कि यह खिलौना खरीद लूं, उस दुकान की तरफ खिंचता है कि वह खिलौना खरीद लूं। सारे खिलौने खरीद लेना चाहता है। ऐसी तुम्हारी दशा है।

संसार मेला है, दुकानों पर खिलौने ही खिलौने टंगे हैं--तरह-तरह के, रंग-बिरंगे खिलौने हैं, मन-भावक खिलौने हैं। मगर सब खिलौने हैं। कितने ही खिलौने खरीद लो, सब टूट जाएंगे, सब यहीं पड़े रह जाएंगे। और तुम्हें खाली हाथ जाना होगा।

और खाली हाथ नहीं जाना है, कस्द करो! संकल्प लो, खाली हाथ नहीं जाना है!"—ओशो
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Publisher OSHO Media International
Number of Pages 556