झुक आयी बदरिया सावन की – Jhuk Aayee Badariya Sawan Ki

पुस्तक — अन्य प्रारूपों में भी उपलब्ध है:ऑडियोपुस्तकें (English)ई-पुस्तकें (English)
स्टॉक में
मीरा-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पूना में ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत प्रवचनों का अनुपम संकलन।
मीरा-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पूना में ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत प्रवचनों का अनुपम संकलन।

उद्धरण : झुक आयी बदरिया सावन की - पहला प्रवचन - भक्ति : एक विराट प्यास

"भक्ति है नाचता हुआ धर्म। और धर्म नाचता हुआ न हो तो धर्म ही नहीं। इसलिए भक्ति ही मौलिक धर्म है--आधारभूत।
धर्म जीता है--भक्ति कीं धड़कन से। जिस दिन भक्ति खो जाती है उस दिन धर्म खो जाता है। धर्म के और सारे रूप गौण हैं। धर्म के और सारे ढंग भक्ति के सहारे ही जीते हैं। भक्त है तो भगवान है। भक्त नहीं तो भगवान नहीं। भक्त के हटते ही धर्म केवल सैद्धांतिक चर्चा मात्र रह जाती है; फिर उसमें हृदय नहीं धड़कता; फिर उसमें रसधार नहीं बहती; फिर नाच नहीं उठता।

और यह सारा अस्तित्व भक्त का सहयोगी है, क्योंकि यह सारा अस्तित्व उत्सव है। यहां परमात्मा को जानना हो तो उत्सव से जानने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं। आंसू भी गिरें, तो आनंद में गिरें। पीड़ा भी हो, तो उसके प्यार की पीड़ा हो!
देखते हैं चारों तरफ प्रकृति को! उत्सव ही उत्सव है। नाद ही नाद है। सब तरह के साज बज रहे हैं। पक्षियों में, पहाड़ों में, वृक्षों में, सागरों में--सब तरफ बहुत-बहुत ढंगों और रूपों में परमात्मा होली खेल रहा है। कितने रंग फेंकता है तुम पर! कितनी गुलाल फेंकता है तुम पर! और अगर तुम नहीं देख पाते, तो सिवाय तुम्हारे और कोई जिम्मेवार नहीं।

लोग परमात्मा को खोजने निकलते हैं; उन्हें उत्सव खोजने निकलना चाहिए। उत्सव जिस दिन समझ में आ जाएगा, उसी दिन परमात्मा भी समझ में आ जाएगा। परमात्मा को सीधे-सीधे पकड़ लेने का कोई उपाय भी नहीं है। रस में ही पकड़ो उसे--रस में डूब कर, विमुग्ध होकर। नाच में पकड़ो उसे। पकड़ लिया नाच में तो पकड़ लिया; नहीं पकड़ पाए नाच में, तो फिर कहीं न पकड़ पाओगे। शास्त्रों में नहीं है। सिद्धांतों में नहीं है। ज्ञानियों की व्यर्थ की चर्चाओं में नहीं है। जहां भक्त उठते हैं, बैठते हैं; जहां भक्तों के आंसू गिरते हैं; जहां भक्त रस में डूब कर उसके गुणगीत गाते हैं; जहां उसकी प्रशंसा के स्वर उठते हैं; जहां कोई भक्त अपनी खंजड़ी बजा कर नाच उठता है--वहां खोजो। मंदिरों में भी नहीं मिलेगा। जिसने अपने मन के मंदिर में विराजमान किया है, वहां मिलेगा। भगवान को खोजना हो तो भक्त को खोजो। भक्त मिल गया तो भगवान के मिलने में ज्यादा देर न रही।"—ओशो
अधिक जानकारी
Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-250-4
Dimensions (size) 23.2 x 16.7 x 2.8 cm
Number of Pages 300