होनी होय सो होय – Honi Hoy So Hoy

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कबीर-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks

कबीर-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks


होनी होय सो होय

पीवत रामरस लगी खुमारी

 जॉर्ज गुरजिएफ से उनके एक शिष्य ने पूछा: ‘आप मनुष्य को प्रेम करते हैं या नहीं?’ पूछने का कारण था, क्योंकि गुरजिएफ मनुष्य के संबंध में अति कठोर सत्य बोलता था। कहता था: मनुष्य है ही नहीं पृथ्वी फर, मशीनें हैं। मनुष्य तो कभी-कभार फैदा होता है--कोई बुद्ध, कोई जीसस, कोई जरथुस्त्र; शेष तो सब यंत्र हैं। धोखे में हैं मनुष्य होने के। मनुष्य हो सकते थे, हो सकते हैं; लेकिन मनुष्यता जन्म के साथ नहीं मिलती, उपलब्ध करनी होती है, अर्जित करनी होती है, आविष्कृत करनी होती है।

गुरजिएफ यह भी कहता था कि आत्मा सभी व्यक्तियों में नहीं होती। यह और भी कठोर बात थी; क्योंकि सदा से ऐसा ही कहा जाता रहा है कि आत्मा प्रत्येक के भीतर है। लेकिन गुरजिएफ कहता था: सोई हुई आत्मा का होना और न होना बराबर है। जागे, तो ही है; सोई हो, तो नहीं है। कितनों की आत्मा जागी हुई है? जिनकी जागी है वे ही आत्मवान हैं, शेष सब आत्महीन हैं।

इसलिए प्रश्र्न स्वाभाविक था और शिष्य ने पूछा कि आप मनुष्य को प्रेम करते हैं या घृणा? आपके वचन बड़े कठोर हैं। गुरजिएफ ने जो कहा, उस पर खूब ध्यान देना। गुरजिएफ ने कहा: मनुष्य जैसा है उसे तो मैं घृणा करता हूं। उसकी सात पीढ़ियों पीछे तक घृणा करता हूं। और मनुष्य जैसा हो सकता है उसके प्रति मेरे मन में सिवाय समादर के और कुछ भी नहीं।

मनुष्य जैसा है, वह तो कूड़ा-करकट है। लेकिन जैसा हो सकता है! जैसा है, वह तो कीचड़ है, लेकिन हो सकता है कमल। बीज का क्या मूल्य; बीज जब विकसित हो, फूल खिलें, गंध उड़े, तो कुछ मूल्य है।

हम केवल संभावना की भांति पैदा होते हैं। जीवन एक अवसर है--जीवन को पाने का। इससे ही तृप्त मत हो जाना, नहीं तो चूक जाओगे। इससे ही राजी मत हो जाना। मत समझ लेना कि जन्म मिल गया तो जीवन मिल गया। जन्म मिला तो केवल मृत्यु मिली, क्योंकि जन्म का अंत मृत्यु में है।

जीवन तो मिलता है--जन्म से नहीं; ध्यान से। एक और जन्म चाहिए--ध्यान का जन्म। द्विज होना होगा। एक जन्म तो मिलता है माता-पिता से। एक जन्म देना होता है स्वयं को। जो माता-पिता से मिलता है वह तो देह का जन्म है। देह तो मरेगी; वह तो क्षणभंगुर है। पानी का बबूला है; अभी है अभी नहीं। एक और जन्म है, जो स्वयं को ही देना होता है। वही शाश्र्वत है। वही ले जाता है महाजीवन में।

कबीर के ये सूत्र, उसी महाजीवन की तरफ एक-एक सीढ़ियों की भांति हैं। सीधे-सादे वचन, पर महावाक्य हैं ये।

 

संत तो हजारों हुए हैं, पर कबीर ऐसे हैं जैसे पूर्णिमा का चांद--अतुलनीय, अद्वितीय! जैसे अंधेरे में कोई अचानक दीया जला दे, ऐसा यह नाम है। जैसे मरुस्थल में कोई अचानक मरूद्यान प्रकट हो जाए, ऐसे अदभुत और प्यारे उनके गीत हैं!

मैं कबीर के शब्दों का अर्थ नहीं करूंगा। शब्द तो सीधे-सादे हैं। कबीर को तो पुनरुज्जीवित करना होगा। व्याख्या नहीं हो सकती उनकी, उन्हें पुनरुज्जीवन दिया जा सकता है। उन्हें अवसर दिया जा सकता है कि वे मुझसे बोल सकें।

तुम ऐसे ही सुनना जैसे यह कोई व्याख्या नहीं है; जैसे बीसवीं सदी की भाषा में, पुनर्जन्म है। जैसे कबीर का फिर आगमन है। और बुद्धि से मत सुनना। कबीर का कोई नाता बुद्धि से नहीं है। कबीर तो दीवाने हैं। और दीवाने ही केवल उन्हें समझ पाए और दीवाने ही केवल समझ पा सकते हैं। कबीर मस्तिष्क से नहीं बोलते हैं। यह तो हृदय की वीणा की अनुगूंज है।...

...और तुम्हारे हृदय के तार भी छू जाएं, तुम भी बज उठो, तो ही कबीर समझे जा सकते हैं। यह कोई शास्त्रीय, बौद्धिक आयोजन नहीं है। कबीर को पीना होता है, चुस्की-चुस्की। जैसे कोई शराब पीए! और डूबना होता है, भूलना होता है अपने को, मदमस्त होना होता है।

भाषा पर अटकोगे, चूकोगे; भाव पर जाओगे तो पहुंच जाओगे। भाषा तो कबीर की टूटी-फूटी है। बेपढ़े-लिखे थे। लेकिन भाव अनूठे हैं, कि उपनिषद फीके पड़ें, कि गीता, कुरान और बाइबिल भी साथ खड़े होने की हिम्मत न जुटा पाएं।

भाषा पर अटकोगे, तो कबीर साधारण मालूम होंगे। कबीर ने कहा भी: ‘लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात।’ नहीं पढ़ कर कह रहे हैं। देखा है आंखों से। जो नहीं देखा जा सकता उसे देखा है, और जो नहीं कहा जा सकता उसे कहने की कोशिश की है।

बहुत श्रद्धा से ही कबीर समझे जा सकते हैं।

ओशो

 

 

 

पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:

 

• मांग और प्रार्थना

• तृष्णारहित जीवन

• प्रेम मृत्यु है--अहंकार की, अस्मिता की

• मन और संस्कार

• प्रियजन की मृत्यु

• मनुष्य दुखी क्यों है? उसकी पीड़ा क्या है?

 

In this title, Osho talks on the following topics:
मांग.. प्रार्थना.. जीवन.. प्रेम.. मृत्यु.. मन.. संस्कार.. मौन.. समर्पण.. कबीर..
अधिक जानकारी
Type फुल सीरीज
Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल