चेति सकै तो चेति – Cheti Sake To Cheti

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जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अहमदाबाद एवं बड़ौदा में प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए आठ प्रवचन
जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अहमदाबाद एवं बड़ौदा में प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए आठ प्रवचन

चेति सकै तो चेति – Cheti Sake To Cheti
इस देश की हालत भी ऐसी ही है। इस देश का मंदिर बहुत पुराना हो गया है। वह इतना पुराना हो गया है कि उसका पीछे का पूरा इतिहास खोजना भी बहुत मुश्किल है। उसकी सब दीवालें सड़ गई हैं। उसकी सब बुनियादें खराब हो गई हैं। उसका सब कुछ अतीत में नष्ट-भ्रष्ट, जरा-जीर्ण हो गया है। और हम उसमें ही रहे चले जा रहे हैं! और इस देश के विचारशील लोग समझाते हैं कि हमारा बड़ा सौभाग्य है, क्योंकि हमारे पास सबसे ज्यादा पुराना समाज है।

यह दुर्भाग्य है, सौभाग्य नहीं। समाज नया होना चाहिए निरंतर। और जो समाज नये होने की क्षमता खो देता है, उस समाज से रौनक भी चली जाती है, खुशी भी चली जाती है, आनंद भी चला जाता है--जीवन का सब रस चला जाता है।

हिंदुस्तान की पूरी सामाजिक व्यवस्था, सारा ढांचा इतना पुराना हो गया है कि अब उसके भीतर न तो जीना संभव है, न मरना संभव है। उसके भीतर सिर्फ दुखी होना, पीड़ित होना और परेशान होना संभव है। और इसीलिए हम इतने आदी हो गए हैं दुख के कि दुख को मिटाने की कोई कल्पना भी हम में पैदा नहीं होती। न तो कोई देश इतनी गरीबी झेल सकता है जितनी हम झेलते हैं; न कोई देश इतनी बीमारी झेल सकता है जितनी हम झेलते हैं; न कोई देश इतनी बेईमानी झेल सकता है जितनी हम झेलते हैं। और झेलने का कुल एक कारण है कि हम इतने हजारों वर्षों से यह सब झेल रहे हैं कि हम धीरे-धीरे उसके आदी हो गए हैं। और हमें यह खयाल ही नहीं आता कि इसमें कुछ गलत हो रहा है। यही होता रहा है, यही जीवन है--यह हमारी धारणा हो गई है।यह देश सारे मसलों के संबंध में एक पागलखाना हो गया है! किसी चीज के संबंध में सूझ-बूझ का कोई सवाल नहीं है--किसी चीज के संबंध में! और क्यों नहीं है? उसके कुछ कारण हैं। सबसे बड़ा कारण मैं आपसे कहना चाहता हूं, वह यह है कि हमने जब से यह मान लिया है कि सूझ-बूझ के ठेकेदार पहले हो चुके, अब हमको कोई सूझ-बूझ की जरूरत नहीं है, तब से हमने सूझ-बूझ को छुट्टी दे दी है। सब ऋषि-मुनि, जो भी जानने योग्य था, जान गए और लिख गए। और सब सत्य जो जाने जा सकते थे, वे हमारी गीता में, हमारे वेद में, हमारे उपनिषदों में लिखे हैं। जब से हमने यह माना कि हमारी किताबें पूर्ण हो गईं; जब से हमने यह माना कि हमारे ज्ञानी सर्वज्ञ हैं; जब से हमने यह माना कि जानने योग्य सब जाना जा चुका है--उसी दिन से हिंदुस्तान ने अपनी प्रतिभा नष्ट कर दी। उसी दिन से हिंदुस्तान में बुद्धि का विकास रुक गया। जो बेटे अपने बाप पर शक नहीं करते, वे बेटे नालायक हैं, वे कभी आगे नहीं बढ़ते। जो बेटे अपने बाप को पकड़ कर अंधे की तरह खड़े हो जाते हैं, वे वहीं ठहर जाते हैं जहां बाप ठहर गया। निश्चित ही बाप से आगे जाना जरूरी है, नहीं तो कोई भी समाज रुक जाता है।

हिंदुस्तान रुक गया है। हम कंटेम्प्रेरी नहीं हैं, हम दुनिया के समसामयिक नहीं हैं। यह भूल कर मत कहना कि हम बीसवीं सदी में रहते हैं। हिंदुस्तान में मुश्किल से एकाध, दो-चार आदमी मिलेंगे, जो बीसवीं सदी में रहते हैं। हिंदुस्तान में कोई ईसा से दो हजार साल पहले रहता है, कोई तीन हजार साल पहले रहता है। हिंदुस्तान में कई सदियों के लोग एक साथ रह रहे हैं। हिंदुस्तान का मस्तिष्क पुराना हो गया है। और पुराना हो जाने का बुनियादी कारण यह है कि हमने यह मान लिया कि अब मस्तिष्क के विकास की कोई जरूरत नहीं है, विकास हो चुका है। हमने यह स्वीकार कर लिया कि सब जो जाना जा सकता था, वह जाना जा चुका है। हमारी किताबों में सब लिखा है। और इसलिए कोई मुसीबत आए, तो अपनी पुरानी किताब खोलो और उसमें से समाधान निकालो।
—ओशो
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Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13 978-81-7261-097-5