असंभव क्रांति – Asambhav Kranti
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ध्यान साधना शिविर, माथेरान में प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए दस प्रवचन
"स्वतंत्रता विद्रोह नहीं है, क्रांति है।
क्रांति की बात ही अलग है। क्रांति का अर्थ है : दूसरे से कोई प्रयोजन नहीं है। हम किसी के विरोध में स्वतंत्र नहीं हो रहे हैं। क्योंकि विरोध में हम स्वतंत्र होंगे, तो वह स्वच्छंदता हो जाएगी। हम दूसरे से मुक्त हो रहे हैं--न उससे हमें विरोध है, न हमें उसका अनुगमन है। न हम उसके शत्रु हैं, न हम उसके मित्र हैं--हम उससे मुक्त हो रहे हैं। और यह मुक्ति, ‘पर’ से मुक्ति, जिस ऊर्जा को जन्म देती है, जिस डाइमेन्शन को, जिस दिशा को खोल देती है, उसका नाम स्वतंत्रता है।"—ओशो
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
पल-पल, मोमेंट टु मोमेंट जीने का सूत्र मनुष्य होने की पहली शुरुआत भीड़ से मुक्ति है शास्त्र और किताब में फर्क क्या है? धर्म आत्मा का विज्ञान है प्रेम का जीवन ही सृजनात्मक जीवन है
क्रांति की बात ही अलग है। क्रांति का अर्थ है : दूसरे से कोई प्रयोजन नहीं है। हम किसी के विरोध में स्वतंत्र नहीं हो रहे हैं। क्योंकि विरोध में हम स्वतंत्र होंगे, तो वह स्वच्छंदता हो जाएगी। हम दूसरे से मुक्त हो रहे हैं--न उससे हमें विरोध है, न हमें उसका अनुगमन है। न हम उसके शत्रु हैं, न हम उसके मित्र हैं--हम उससे मुक्त हो रहे हैं। और यह मुक्ति, ‘पर’ से मुक्ति, जिस ऊर्जा को जन्म देती है, जिस डाइमेन्शन को, जिस दिशा को खोल देती है, उसका नाम स्वतंत्रता है।"—ओशो
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
सामग्री तालिका
अध्याय शीर्षक
अनुक्रम
#1: सत्य का द्वार
#2: पुराने का विसर्जन, नये का जन्म
#3: मौन का स्वर
#4: ध्यान की आंख
#5: क्रांति का क्षण
#6: जीवन का आविर्भाव
#7: सत्य का संगीत
#8: सृजन का सूत्र
#9: काम का रूपांतरण
#10: बस एक कदम
अनुक्रम
#1: सत्य का द्वार
#2: पुराने का विसर्जन, नये का जन्म
#3: मौन का स्वर
#4: ध्यान की आंख
#5: क्रांति का क्षण
#6: जीवन का आविर्भाव
#7: सत्य का संगीत
#8: सृजन का सूत्र
#9: काम का रूपांतरण
#10: बस एक कदम
अनुक्रम
#1: सत्य का द्वार
#2: पुराने का विसर्जन, नये का जन्म
#3: मौन का स्वर
#4: ध्यान की आंख
#5: क्रांति का क्षण
#6: जीवन का आविर्भाव
#7: सत्य का संगीत
#8: सृजन का सूत्र
#9: काम का रूपांतरण
#10: बस एक कदम
अनुक्रम
#1: सत्य का द्वार
#2: पुराने का विसर्जन, नये का जन्म
#3: मौन का स्वर
#4: ध्यान की आंख
#5: क्रांति का क्षण
#6: जीवन का आविर्भाव
#7: सत्य का संगीत
#8: सृजन का सूत्र
#9: काम का रूपांतरण
#10: बस एक कदम
अनुक्रम
#1: सत्य का द्वार
#2: पुराने का विसर्जन, नये का जन्म
#3: मौन का स्वर
#4: ध्यान की आंख
#5: क्रांति का क्षण
#6: जीवन का आविर्भाव
#7: सत्य का संगीत
#8: सृजन का सूत्र
#9: काम का रूपांतरण
#10: बस एक कदम
ध्यान साधना शिविर, माथेरान में प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए दस प्रवचन
उद्धरण : असंभव क्रांति - दूसरा प्रवचन - पुराने का विसर्जन, नये का जन्म
"हम देखते हैं कि धार्मिक आदमी से ज्यादा गुलाम आदमी दिखाई नहीं पड़ता दुनिया में। होना उलटा था : धार्मिक आदमी स्वतंत्रता की एक प्रतिमा होता, धार्मिक आदमी स्वतंत्रता की एक गरिमा लिए होता, धार्मिक आदमी के जीवन से स्वतंत्रता की किरणें फूटती होतीं, वह एक मुक्त पुरुष होता, उसके चित्त पर कोई गुलामी न होती। लेकिन धार्मिक आदमी सबसे ज्यादा गुलाम है, इसीलिए धर्म सब झूठा सिद्ध हो गया है।… लोग मरघट पर अरथी ले जाते मैं देखता हूं, तो कंधे बदलते रहते हैं रास्ते में। इस कंधे पर रखी थी अरथी, फिर इस कंधे पर रख लेते हैं। कंधा बदलने से थोड़ी राहत मिलती होगी। इस कंधे पर वजन कम हो जाता है, यह थक जाता है तो फिर दूसरा कंधा। थोड़ी देर बाद फिर उनको मैं कंधे बदलते देखता हूं, फिर इस कंधे पर ले लेते हैं। कंधे बदल जाते हैं, लेकिन आदमी के ऊपर वह अरथी का बोझ तो तैयार ही रहता है। इससे क्या फर्क पड़ता है कि कंधे बदल लिए। थोड़ी देर राहत मिलती है, दूसरा कंधा फिर तैयार हो जाता है।
इसी तरह दुनिया में इतने धर्म पैदा हो गए, कंधे बदलने के लिए। नहीं तो कोई और कारण नहीं था कि ईसाई हिंदू हो जाता, हिंदू ईसाई हो जाता। एक पागलपन से छूटता है, दूसरा पागलपन हमेशा तैयार है। दुनिया में तीन सौ धर्म पैदा हो गए हैं, कंधे बदलने की सुविधा के लिए, और कोई उपयोग नहीं है। जरा भी उपयोग नहीं है। और भ्रांति यह पैदा होती है कि मैं एक गुलामी से छूटा, अब मैं आजादी की तरफ जा रहा हूं।
मैं आपको कोई नई गुलामी का संदेश देने को नहीं हूं। गुलामी से गुलामी की तरफ नहीं, गुलामी से स्वतंत्रता की तरफ यात्रा करनी है। वह मेरी बात मान कर नहीं हो सकता है। इसलिए मेरी बात मानने की जरा भी जरूरत नहीं है। मैं कहीं भी आपके रास्ते में खड़ा नहीं होना चाहता हूं। मैंने निवेदन कर दी अपनी बात, उसे सोचने-समझने की है। अगर वह फिजूल मालूम पड़े, तो उसे एकदम फेंक देना।"—ओशो
Publisher | OSHO Media International |
---|---|
ISBN-13 | 978-81-7261-266-5 |
Number of Pages | 204 |

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