सपना यह संसार – Sapna Yah Sansar

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संत रज्जबदास के पदों पर ओशो ने बीस प्रवचनों की श्रृंखला दी है। दस में वे रज्जब के पदों को समझाते हैं तो दस प्रवचन प्रश्नोत्तर है।
सपना यह संसार – Sapna Yah Sansar
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संत रज्जबदास के पदों पर ओशो ने बीस प्रवचनों की श्रृंखला दी है। दस में वे रज्जब के पदों को समझाते हैं तो दस प्रवचन प्रश्नोत्तर है।

परमात्मा की ओर जाने वाले दो मार्ग: एक ज्ञान, एक भक्ति। ज्ञान से जो चले, उन्हें ध्यान साधना पड़ा। ध्यान की फलश्रुति ज्ञान है। ध्यान का फूल खिलता है तो ज्ञान की गंध उठती है। ध्यान का दीया जलता है तो ज्ञान की आभा फैलती है। लेकिन ध्यान सभी से सधेगा नहीं। पचास प्रतिशत लोग ध्यान को साध सकते हैं। पचास प्रतिशत प्रेम से पाएंगे, भक्ति से पाएंगे। भक्ति का अर्थ है: डूबना, पूरी तरह डूबना; मदमस्त होना, अलमस्त होना। ध्यान है: जागरण, स्मरण; भक्ति है: विस्मरण, तन्मयता, तल्लीनता। ध्यान है होश; भक्ति है उसमें बेहोश हो जाना। ध्यान पाता है स्वयं को पहले और स्वयं से अनुभव करता परमात्मा का। भक्ति पहले पाती है परमात्मा को, फिर परमात्मा में झांकी पाती अपनी। यह जगत संतुलन है विरोधाभासों का--आधा दिन, आधी रात; आधे स्त्री, आधे पुरुष। एक संतुलन है विरोधों में। वही संतुलन इस जगत का शाश्वत नियम है। उसी को बुद्ध कह रहे हैं: ‘एस धम्मो सनंतनो।’ यही है शाश्वत नियम कि यह जगत विरोध से निर्मित है। वृक्ष आकाश की तरफ उठता है तो साथ ही साथ उसे पाताल की तरफ अपनी जड़ें भेजनी होती हैं। जितना ऊपर जाए, उतना नीचे भी जाना होता है। तब संतुलन है। तब वृक्ष जीवित रह सकता है। ऊपर ही ऊपर जाए और नीचे जाना भूल जाए, तो गिरेगा, बुरी तरह गिरेगा। नीचे ही नीचे जाए, ऊपर जाना भूल जाए, तो जाने का कोई प्रयोजन नहीं, कोई अर्थ नहीं। विरोधों में विरोध नहीं हैं, वरन एक संगीत है। परम विरोध है ज्ञान और भक्ति का। और इस सत्य को ठीक से समझ लेना चाहिए कि तुम्हारी रुचि क्या है? तुम ज्ञान से जा सकोगे कि प्रेम से? ज्ञान का रास्ता कठोर है, थोड़ा रूखा-सूखा है; पुरुष का है। प्रेम का रास्ता रस डूबा है, रसनिमग्न है; हरा-भरा है; झरनों की कलकल है, पक्षियों के गीत हैं। वह रास्ता स्त्रैण-चित्त का है, स्त्रैण आत्मा का है। ध्यान के रास्ते पर तुम अपने संबल हो। कोई और सहारा नहीं। ध्यान के रास्ते पर संकल्प ही तुम्हारा बल है। तुम्हें अकेले जाना होगा--नितांत अकेले। संगी-साथी का मोह छोड़ देना होगा। इसलिए बुद्ध ने कहा है: अप्प दीपो भव! अपने दीये खुद बनो। कोई और दीया नहीं है; न कोई और रोशनी है; न कोई और मार्ग है। ध्यान के रास्ते पर एकाकी है खोज। लेकिन भक्ति के रास्ते पर समर्पण है, संकल्प नहीं। भक्ति के रास्ते पर परमात्मा के चरण उपलब्ध हैं; उसकी करुणा उपलब्ध है। तुम्हें सिर्फ झुकना है, झोली फैलानी है और उसकी करुणा से भर जाओगे। भक्ति के रास्ते पर परमात्मा का हाथ उपलब्ध है, तुम जरा हाथ बढ़ाओ। तुम अकेले नहीं हो। भक्ति के रास्ते पर संग है, साथ है। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज