सहज मिले अविनाशी – Sahaj Mile Avinashi
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मित्रों व प्रेमियों के छोटे छोटे समूहों के बीच प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दी गई सात अंतरंग वार्ताओं का संग्रह
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मूल्यों के अतिभार ने इस मुल्क को जीवन की जो ताजगी है, उससे वंचित कर दिया। मूल्यों का भार बहुत बढ़ जाए, तो भूख की ताजगी अनुभव नहीं हो सकती। भूख की ताजगी उसे अनुभव हो सकती है जिसके चित्त पर मूल्यों का भार न हो। हुआ यह है कि मूल्यों की, वैल्यूज की इस चिंतना में, संस्कृति की और धर्म की इस चिंतना में जीवन से हमारे सारे संबंध टूट गए। लाइफ निगेटिव हैं हमारी वैल्यूज। जीवन को निषेध करती हैं। मोक्ष से उनका संबंध होगा, आत्मा से उनका संबंध होगा, परमात्मा से उनका संबंध होगा, परलोक से उनका संबंध होगा, जीवन से उनका कोई संबंध नहीं है, जीवन-विरोधी हैं, जीवन की शत्रु। तो तीन-चार हजार वर्ष तक अगर ऐसे मूल्यों के भीतर किसी कौम के मस्तिष्क को रहना पड़ा हो, जो जीवन-विरोधी हो, लाइफ अफरमेटिव न हो, जीवन की विधायकता को स्वीकार न करता हो, बल्कि जिसके पीछे कहीं न कहीं यह कोशिश हो कि किस भांति इस जीवन से छुटकारा हो जाए, उस मुल्क में अगर जीवन की ताजगी खो गई हो, तो इसमें आश्चर्य कैसा? लेकिन यह मूल्यों के विघटन का परिणाम नहीं है, यह मूल्यों के होने का परिणाम है। अगर मूल्य विघटित हो गए तो भूख की ताजगी यह मुल्क फिर अनुभव कर सकेगा। अगर नहीं विघटित हुए, तो नहीं कर सकेगा। सब बोथला-बोथला हो गया है।
क्यों? जीवन की जो ताजगी है, जीवन की ताजगी जीवन की मांसलता से जुड़ी है। और भूख शरीर को लगती है, आत्मा को नहीं। और ये हमारी सारी जो बातें हैं जो जीवन-विरोधी हैं वे मूलतः शरीर-विरोधी भी हैं। क्योंकि जो बात जीवन-विरोधी होगी वह शरीर-विरोधी भी होगी। और ये हमारे सारे मूल्य अशरीरी हैं। यह, यह सारा का सारा मूल्यों का...और जहां शरीर आता है वहीं तो हम कहने लगते हैं कि यह तो मूल्यों का विघटन हुआ। और जहां जीवन आता है वहीं हम कहने लगते हैं कि यह तो मूल्यों का विघटन हुआ।
तो यह हम सौंदर्य की बातें करते हैं, लेकिन सौंदर्य की स्वीकृति हमारे मूल्यों में है नहीं। क्योंकि सौंदर्य शरीर से मुक्त नहीं हो सकता। और सौंदर्य आकार से मुक्त नहीं हो सकता। तो फिर जब हम सौंदर्य की बातें करने लगते हैं और भीतर से निषेध जीवन का होता है, विरोध जीवन का होता है, तो एक अशरीरी सौंदर्य की बातें शुरू हो जाती हैं, जिसका कोई रूप नहीं, जिसका कोई आकार नहीं, वह एकदम बोथला और धुंधला-धुंधला होता है, उसकी बातें करते-करते, उसका चिंतन करते-करते, वह जो जीवंत सौंदर्य है उसे देखने में भी हम समर्थ नहीं रह जाते। बल्कि हम भयभीत भी हो जाते हैं, उसके होने से, हम डर भी जाते हैं।
डरे हैं हम दो हजार साल से, जीवन को जीने से डरे हुए हैं। उसको हम कहीं जीते नहीं, किसी तल पर जीते नहीं, बातें करते हैं, चिंतन करते हैं, सारी बातें करते हैं, शास्त्र लिखते हैं, प्रवचन करते हैं, भाषण करते हैं, वार्ता करते हैं, किताबें लिखते हैं, सब, लेकिन जीवन को जीने से बहुत डरते हैं। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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