रहिमन धागा प्रेम का – Rahiman Dhaga Prem Ka

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दूलन-वाणी पर ओशो के दस अमृत प्रवचन; पांच प्रवचन सूत्रों पर आधारित तथा पांच प्रश्नोत्तर।
दूलन-वाणी पर ओशो के दस अमृत प्रवचन; पांच प्रवचन सूत्रों पर आधारित तथा पांच प्रश्नोत्तर।

आंसू दुख के भी होते हैं, आनंद के भी। दुख के आंसू तो मिट जाते हैं; आनंद के आंसू अमृत हैं, उनके मिटने का कोई उपाय नहीं, कोई आवश्यकता भी नहीं। आनंद में आंसू झरें, इससे ज्यादा शुभ और कोई लक्षण नहीं है। आनंद में हंसना इतना गहरा नहीं जाता, जितना आनंद में रोना गहरा जाता है। मुस्कुराहट परिधि पर उठी हुई तरंगें हैं; और आंसू तो आते हैं अंतर्गर्भ से, अंतर्तम से। आंसू जब हंसते हैं तो केंद्र और परिधि का मिलन होता है। आंसू जब हंसते हैं तो मोती हो जाते हैं। ये आंसू तो आनंद के हैं, प्रेम के हैं, प्रार्थना के हैं, पूजा के हैं, ध्यान के हैं, अहोभाव के हैं। तू कहती है: ‘आपकी पहली मुलाकात आंसुओं से हुई थी।’ बहुतों की पहली मुलाकात मुझसे आंसुओं से ही हुई है। और जिनकी पहली मुलाकात आंसुओं से नहीं हुई है, उनकी मुलाकात अभी हुई ही नहीं; जब भी होगी, आंसुओं से होगी। आंसू, तुम्हारे भीतर कुछ पिघला, इसकी सूचना है; कुछ गला; अहंकार जो जमा है बर्फ की तरह, वह पिघला, तरल हुआ, बहा। आंखें कुछ भीतर की खबर लाती हैं। जो शब्द नहीं कह पाते, आंसू कह पाते हैं। शब्द जहां असमर्थ हैं, आंसू वहां भी समर्थ हैं। आंसुओं का काव्य है, महाकाव्य है--मौन, निःशब्द, पर अपूर्व अभिव्यंजना से भरा हुआ। आंसू तो फूल हैं--चैतन्य के। जो मुझसे पहली बार बिना आंसुओं के मिलते हैं, उनका केवल परिचय होता है, मिलन नहीं। फिर किसी दिन मिलन भी होगा। और जब भी मिलन होगा तो आंसुओं से ही होगा। और तो कुछ जोड़ने वाला सेतु जगत में है ही नहीं। आंसू ही जोड़ते हैं। बड़ी नाजुक चीज है आंसू। मगर प्रेम भी नाजुक है। फूल भी नाजुक है। आंसुओं से बनता है एक इंद्रधनुष--दो आत्माओं को जोड़ने वाला। कोई ईंट-पत्थर के सेतु बनाने की आवश्यकता भी नहीं है; अदृश्य को जोड़ने के लिए इंद्रधनुष पर्याप्त है। और आंसुओं पर जब ध्यान की रोशनी पड़ती है तो हर आंसू इंद्रधनुष हो जाता है। मुझे पता है सोहन, तू रोती ही रही है। मगर मैंने तुझे कभी कहा भी नहीं कि रुक, रो मत। क्योंकि यह रोना और ही रोना है! यह रोना पीड़ा का नहीं, विषाद का नहीं, संताप का नहीं, चिंता का नहीं। यह रोना समस्या नहीं है, समाधान है। यह रोना व्यथा नहीं है, तेरे अंतर-आनंद की कथा है। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज