प्रेम गंगा – Prem Ganga
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ध्यान साधना शिविर, भावनगर में ध्यान-प्रयोगों सहित ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन
ध्यान साधना शिविर, भावनगर में ध्यान-प्रयोगों सहित ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन
जीवन है सतत परिवर्तन, जीवन है रोज नया। और विश्वास सब पुराने हैं। कोई विश्वास नया नहीं है। विचार नया हो सकता है, विश्वास कभी नया नहीं हो सकता। न हिंदू का विश्वास नया हो सकता है, न मुसलमान का, न जैन का, न पारसी का, न सिक्ख का। किसी का विश्वास नया नहीं हो सकता, क्योंकि विश्वास आता है अतीत से, विश्वास आता है पीछे से, विश्वास आता है किसी और से। विश्वास है सीखा हुआ उत्तर, विश्वास है रेडीमेड दिमाग।
और जिस आदमी के पास ऐसे तैयार उत्तर हैं वह आदमी जीवंत समस्या का साक्षात्कार करने में असमर्थ हो जाता है। समस्या होती है नई और हम अपने पुराने खजाने में खोज करते हैं कि लाएं उत्तर। और हमें तब बड़ी परेशानी होती है, जब हम पाते हैं कि इसके लिए तो कोई उत्तर नही है तो या तो फिर हम अपने उत्तर के अनुकूल समस्या को शक्ल देने की कोशिश करते हैं, उसमें भी हम हार जाएंगे। और या फिर हम ठगे खड़े रह जाते हैं अपने समाधान को पकड़े और समस्या आगे बढ़ती चली जाती है। और जिंदगी मुश्किल में पड़ जाती है।
इस देश में ऐसा पिछले तीन-चार हजार वर्षों से निरंतर हुआ है। हमारे पास बहुत समाधान हैं, हमारे पास उत्तर की कमी नहीं है, हमारे पास शास्त्रों की कमी नहीं है, गुरुओं की कमी नहीं है। हमें सब बातें बता दी गई हैं; और हमारे साथ जो दुर्भाग्य है वह यह कि हमने सब बातें कंठस्थ कर ली हैं। और हम उन्हीं बातों के आधार पर जिंदगी में जो भी समस्या खड़ी होती है उसको हल करने की कोशिश करते हैं। हम विचार नहीं करते, हम अपने विश्वास को सामने खड़ा कर लेते हैं। और हमारा विश्वास कुछ भी नहीं कर पाता। क्योंकि विश्वास बासा है, समस्या ताजी और नई है। बासे उत्तर नये प्रश्नों के लिए अर्थहीन हैं।
नये प्रश्नों के लिए नये उत्तर चाहिए। नये उत्तर कहां से आएंगे? विश्वास कभी भी नये उत्तर नहीं दे सकता। नये उत्तर के लिए चाहिए विचार। और विचार का अर्थ है: दूसरे पर निर्भर नहीं। विचार सदा अपने पर निर्भर होता है। विचार का अर्थ है: स्वयं सोचना होगा। स्वयं सोचना होगा और इतनी तेजी से सोचना होगा कि समस्या बदल न जाए। नहीं तो हम सोचते बैठे रहें, और समस्या बदल जाए तो हम सोच कर भी निकालेंगे तो किसी अर्थ का नहीं होगा। मन ऐसा चाहिए--इतना विचारपूर्ण, सारे देश का, सारे समाज का, सारी समाज की प्रतिभा ऐसी चाहिए कि वह सोचने में त्वरित, इंटेंस थिंकिंग हो कि चीजें बदल न जाएं और हम देख पाएं। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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