प्रभु की पगडंडियां – Prabhu Ki Pagdandiyan
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ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।
ओशो द्वारा दिए गए दस अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।
इस निर्जन सागर-तट पर आपको आपको बुलाया और आप आ गए हैं। शायद आपको ठीक खयाल भी न हो कि किसलिए बुलाया गया है। यदि आपने सोचा हो कि मैं यहां कुछ बोलूंगा और आप सुनेंगे, तो आपने ठीक नहीं सोचा। बोलने के लिए तो मैं गांव-गांव में खुद ही आ जाता हूं और आप मुझे सुन लेते हैं। यहां सिर्फ सुनने के लिए आने की कोई जरूरत नहीं है। यहां कुछ करने का खयाल हो तो ही आने की सार्थकता है। मेरी तरफ से मैंने कुछ करने को ही आपको यहां बुलाया। क्या करने को बुलाया?
इन तीन दिनों में, आने वाले तीन दिनों में उस करने की दिशा में ही कुछ बातें मैं आपसे कहूंगा, इस आशा में कि आप केवल उन्हें सुनेंगे नहीं, बल्कि इन तीन दिनों में कम से कम उनका प्रयोग करेंगे। और यह मेरी समझ है कि सत्य की दिशा में एक भी कदम उठा लिया जाए तो उसे वापस नहीं लौटाया जा सकता है, यह असंभावना है। असत्य की तरफ उठाया गया कदम वापस उठाना ही पड़ता है और सत्य की तरफ उठाया गया कदम कभी भी वापस नहीं उठाया जा सकता है।
तो अगर तीन दिनों में जरा सा भी कदम उठाया तो आगे वह कदम उठता ही रहेगा, उस कदम से पीछे नहीं लौटा जा सकता है। मैं कुछ कहूंगा, मेरे कहने से कुछ होने वाला नहीं है। अगर उसके साथ आप प्रयोग करते हैं तो यह आश्वासन मेरी तरफ से है कि जितनी पाने की आपने कल्पना की हो जीवन में, उससे बहुत ज्यादा पाया जा सकता है।
बहुत थोड़े श्रम से हम कितनी आंतरिक संपदा पा सकते हैं, इसका हमें कुछ भी पता नहीं है। पता हो भी कैसे, जब हम पा लें तभी पता चल सकता है, दूसरा कोई रास्ता भी नहीं। लेकिन हजारों वर्षों से आदमी एक आश्चर्यजनक चक्कर में उलझ गया है। वह चक्कर सुनने, समझने और विचार करने का चक्कर है। कई बार ऐसा होता है कि बहुत सोचते-विचारते रहने वाले लोग कुछ भी नहीं कर पाते हैं।
दुनिया में जितना सोच-विचार बढ़ता चला गया है, उतनी ही सक्रिय होने की हमारी क्षमता क्षीण होती चली गई है। हमारी स्थिति तो उस मजाक जैसी हो गई है, जैसा मैंने सुना है कि पहले महायुद्ध में एक अमरीकी विचारक भी युद्ध की सेना में भर्ती हो गया। विचारक का काम ही विचार करना है। बस, वह एक ही काम जानता है--सोचना, सोचना।
मिलिटरी में भर्ती किया गया तो वह पूरी तरह स्वस्थ था, कोई रुकावट नहीं पड़ी। डॉक्टरों ने उसे इजाजत दी। सारे अंग, सारा शरीर ठीक था। आंखें ठीक थीं, सब तरह से वह स्वस्थ था, योग्य था, लेकिन किसी डॉक्टर को यह कभी भी कल्पना नहीं हो सकती थी कि वह पूरी तरह स्वस्थ आदमी, कुछ भी करने में असमर्थ है सिवाय सोचने के। इसका पता भी कैसे चल सकता था! आपको देख कर भी यह पता नहीं चलता, किसी को देख कर यह पता नहीं चलता। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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