नहीं सांझ नहीं भोर – Nahin Sanjh Nahin Bhor

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संत चरणदास के वचनों पर ओशो द्वारा दिए गए पांच प्रवचन व पांच प्रवचन प्रश्न-उत्तर के।
संत चरणदास के वचनों पर ओशो द्वारा दिए गए पांच प्रवचन व पांच प्रवचन प्रश्न-उत्तर के।

उसे जानना ही होगा, जो सदा है, ताकि हम भी सदा के साथ हो जाएं। उसे पहचानना ही होगा, जो शाश्वत है, ताकि हमारी यह क्षणभंगुर लहर सी जिंदगी और न तड़पे; और न परेशान हो। चरणदास उन्नीस वर्ष के थे, तब यह तड़प उठी। बड़ी नई उम्र में तड़प उठी। मेरे पास लोग आते हैं, वे पूछते हैं: क्या आप युवकों को भी संन्यास दे देते हैं? संन्यास तो वृद्धों के लिए है। शास्त्र तो कहते हैं--‘पचहत्तर साल के बाद।’ तो शास्त्र बेईमानों ने लिखे होंगे, तो शास्त्र उन्होंने लिखे होंगे जो संन्यास के खिलाफ हैं। तो शास्त्र उन्होंने लिखे होंगे, जो संसार के पक्ष में हैं। क्योंकि सौ में निन्यानबे मौके पर तो पचहत्तर साल के बाद तुम बचोगे ही नहीं। संन्यास कभी होगा ही नहीं; मौत ही होगी। और इस दुनिया में जहां जवान को भी मौत आ जाती हो, वहां संन्यास को पचहत्तर साल तक कैसे टाला जा सकता है? इस दुनिया में जहां बच्चे भी मर जाते हों, इस दुनिया में जहां जन्म के बाद बस, एक ही बात निश्चित है--मृत्यु, वहां संन्यास को एक क्षण भी कैसे टाला जा सकता है? इस दुनिया में--जो मौत से घिरी है--जिस दिन तुम्हें मौत दिख जाएगी, जिस दिन इससे पहचान हो जाएगी, जिस दिन तुम देख लोगे: सब राख ही राख है, उसी दिन संन्यास घटेगा। फिर क्षण भर भी रुकना संभव नहीं। फिर स्थगित नहीं किया जा सकता। उन्नीस वर्ष की उम्र में चरणदास चले गए जंगलों में--रोते, चीखते, पुकारते। सब-कुछ दांव पर लगा दिया। और एक अपूर्व घटना घटती है। जब तुम परमात्मा को खोजने निकलते हो, तब गुरु मिलता है। निकलते तुम परमात्मा को खोजने, मिलता गुरु है। क्योंकि परमात्मा से सीधा साक्षात नहीं हो सकता। तुम्हारे बीच और परमात्मा के बीच भूमिका का बड़ा अंतर है। कहां तुम, कहां परमात्मा! कहां तुम बाहर-बाहर, कहां परमात्मा भीतर-भीतर, इन दोनों के बीच कोई सेतु नहीं, कोई संबंध नहीं। जो भी परमात्मा को खोजने गया है, उसे गुरु मिला है। वह परमात्मा तुम्हारे प्रति सदय हुआ, तुम्हारे भाग्य खुले--इसकी खबर है, इसकी सूचना है। मांगो परमात्मा को, मिलता गुरु है। और गुरु मिल जाए, तो समझो कि तुम्हारी प्रार्थना सुनी गई; पहुंची। अब तुम अकेले नहीं हो। सेतु फैला; दोनों किनारे जुड़े। तुम इस किनारे हो, परमात्मा उस किनारे है; गुरु सेतु है--जो दोनों किनारों को जोड़ देता है। गुरु कुछ तुम जैसा, कुछ परमात्मा जैसा। एक हाथ तुम्हारे हाथ में, एक हाथ परमात्मा के हाथ में। अब इस सहारे तुम जा सकोगे। अब यह जो झूलता सा पुल है, यह जो लक्ष्मण झूला है--इससे तुम जा सकोगे। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज