महावीर मेरी दृष्टि में – Mahavir Meri Drishti Mein

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भगवान महावीर पर प्रश्नोत्तर सहित श्रीनगर एवं पहलगांव में प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए पच्चीस अमृत प्रवचनों का अनुपम संकलन।
महावीर मेरी दृष्टि में – Mahavir Meri Drishti Mein
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भगवान महावीर पर प्रश्नोत्तर सहित श्रीनगर एवं पहलगांव में प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए पच्चीस अमृत प्रवचनों का अनुपम संकलन।

दुनिया में दो ही तरह के लोग होते हैं, साधारणतः। या तो कोई अनुयायी होता है, और या कोई विरोध में होता है। न अनुयायी समझ पाता है, न विरोधी समझ पाता है। एक और रास्ता भी है--प्रेम, जिसके अतिरिक्त हम और किसी रास्ते से कभी किसी को समझ ही नहीं पाते। अनुयायी को एक कठिनाई है कि वह एक से बंध जाता है और विरोधी को भी यह कठिनाई है कि वह विरोध में बंध जाता है। सिर्फ प्रेमी को एक मुक्ति है। प्रेमी को बंधने का कोई कारण नहीं है। और जो प्रेम बांधता हो, वह प्रेम ही नहीं है। तो महावीर से प्रेम करने में महावीर से बंधना नहीं होता। महावीर से प्रेम करते हुए बुद्ध को, कृष्ण को, क्राइस्ट को प्रेम किया जा सकता है। क्योंकि जिस चीज को हम महावीर में प्रेम करते हैं, वह और हजार-हजार लोगों में उसी तरह प्रकट हुई है। महावीर को थोड़े ही प्रेम करते हैं। वह जो शरीर है वर्धमान का, वह जो जन्मतिथियों में बंधी हुई एक इतिहास रेखा है, एक दिन पैदा होना और एक दिन मर जाना, इसे तो प्रेम नहीं करते हैं। प्रेम करते हैं उस ज्योति को जो इस मिट्टी के दीये में प्रकट हुई। यह दीया कौन था, यह बहुत अर्थ की बात नहीं। बहुत-बहुत दीयों में वह ज्योति प्रकट हुई है। जो ज्योति को प्रेम करेगा, वह दीये से नहीं बंधेगा; और जो दीये से बंधेगा, उसे ज्योति का कभी पता नहीं चलेगा। क्योंकि दीये से जो बंध रहा है, निश्चित है कि उसे ज्योति का पता नहीं चला। जिसे ज्योति का पता चल जाए उसे दीये की याद भी रहेगी? उसे दीया फिर दिखाई भी पड़ेगा? जिसे ज्योति दिख जाए, वह दीये को भूल जाएगा। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज