कोंपलें फिर फूट आईं – Koplen Phir Phoot Aayeen

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यह प्रवचनमाला ओशो द्वारा ‍हिंदी में दी गई अंतिम प्रवचनमाला ‍है।
यह प्रवचनमाला ओशो द्वारा ‍हिंदी में दी गई अंतिम प्रवचनमाला ‍है।

मैं तो वैसा ही हूं। और तुम भी वैसे ही हो। जो बदल जाता है, वह हमारा असली चेहरा नहीं है, वह हमारी आत्मा नहीं है। जो नहीं बदलता, न जीवन में, न मृत्यु में, वही हमारा यथार्थ है। हम लोगों से पूछते हैं--कैसे हो? नहीं पूछना चाहिए। क्योंकि हमने स्वीकार ही कर लिया पूछने में--बदलाहट को, परिवर्तन को, बचपन को, जवानी को, बुढ़ापे को, जीवन को, मौत को। कुछ है तुम्हारे भीतर जिसका तुम्हें भी पता है। बचपन में भी यही था, और नहीं जन्मे थे, तब भी यही था। गंगा में बहुत जल बहता गया, लेकिन तुम किनारे खड़े हो और वही हो। तुम दिखाई भी न पड़ोगे कल, तो भी वही रहोगे। नये होंगे रूप, नई आकृतियां, शायद तुम अपने को भी पहचान न पाओ। नये होंगे नाम, नया होगा परिचय, नया होगा वेश, फिर भी मैं कहता हूं--तुम वही होओगे। तुम सदा से वही हो और तुम सदा वही रहोगे। इस सदा सनातन, शाश्वत को चाहो तो ईश्वर कहो, चाहो तो तुम्हारी सत्ता कहो। इस पर बहुत लहरें आती और जाती हैं, पर समुंदर वही है। बदलाहट झूठ है। लेकिन हमने बदलाहट को सच माना हुआ है और उसे संसार बना लिया है। काश, हम समझ सकें कि बदलाहट झूठ है, तो चोर और साधु में कोई फर्क न रह जाए, क्योंकि दोनों के भीतर जो है वह न तो चोर है और न साधु है; तो हिंदू और मुसलमान में कोई फर्क न रह जाए। उनकी भाषाएं अलग होंगी, लेकिन उनकी भाषाओं के भीतर छिपा एक साक्षी भी है। उनके कृत्य अलग होंगे, लेकिन उन कृत्यों के पीछे छिपा भी कुछ है, जो सदा वही है। और उस सनातन की तलाश ही धर्म है। पूछना चाहिए लोगों से--बदले तो नहीं हो? मगर उलटा है संसार, उलटे हैं उसके नियम, ऊलजलूल हैं उसकी बातें। और चूंकि भीड़ उनको मान कर चलती है, दूसरे भी उनको स्वीकार कर लेते हैं। अपने चेहरे को तुम देखते हो दर्पण में, तो सोचते हो तुमने अपने को देख लिया। काश, इतना आसान होता तो सभी को आत्म-दर्शन हो गया होता। सुनते हो अपना नाम, तो सोचते हो तुम्हें अपना नाम पता है। बात इतनी सस्ती होती तो दुनिया में धर्म की कोई जरूरत न थी। वह नाम तुम्हारा नहीं है, उधार है और बासा है। आए थे तुम बिना नाम के और जाओगे तुम बिना नाम के। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज