कहा कहूं उस देस की – Kaha Kahun Us Desh Ki
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प्रश्नोत्तर प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन
प्रश्नोत्तर प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन
शब्द की बहुत गहराई में जाएं, बिलकुल प्राचीन से प्राचीन तो वही मतलब है। वही मतलब है। लेकिन बुद्ध होने में और बुद्धिमान होने में बड़ा फर्क है। बुद्ध से हम मतलब लेते हैं: प्रबुद्ध होने का, एनलाइटन होने का, जागे हुए होने का। बुद्धि से मतलब लेते हैं: सोच-विचार का। और मजा है कि इन दोनों बातों में बड़ा विरोध है।
जितना जागा हुआ आदमी होगा, उतना कम सोच-विचार करता है। जितना कम जागा हुआ आदमी होगा, उतना ज्यादा सोच-विचार करता है। असल में सोच-विचार सब्स्टीट्यूट है जागे होने का।
एक अंधा आदमी है, उसको इस कमरे के बाहर जाना है, तो वह सोचता है, दरवाजा कहां है, रास्ता कहां है? पूछता है, उठने के पहले पच्चीस दफे सोचता है, कहीं टकरा न जाऊं। एक आंख वाला है, वह उठता है और निकल जाता है। वह सोचता ही नहीं कि दरवाजा कहां है। वह पूछता ही नहीं कि दरवाजा कहां है। वह जो अंधा आदमी है, उसके लिए पूछना, सोचना, खोजना सब पड़ता है क्योंकि उसे आंख न होने की वजह से यह सारे काम करने पड़ते हैं। आंख वाले आदमी से तो आप पूछिएगा कि दरवाजा कहां है? तब वह बताएगा? निकलते वक्त उसको पता ही नहीं वह दरवाजे से निकल गया। वह निकल ही गया और उसने न सोचा कि दरवाजा है, न फिकर की, न किसी से पूछा बस निकल गया है।
निकल जाना इतना सहज हुआ है कि उसमें कहीं सोच-विचार नहीं आया।
बुद्ध को जिस अर्थ में हम वहां शब्द का प्रयोग करते हैं, वहां विचार नहीं है वह। वहां उसका मतलब है ऐसा व्यक्ति जो देख रहा है और निकल गया है देखने से।
जहां हम बुद्धि का उपयोग करते हैं वहां बड़ी और बात है। वहां हम यह कह रहे हैं कि जहां हमें दिखाई नहीं पड़ रहा लेकिन हम सोच-सोच कर, टटोल-टटोल कर निकलने की कोशिश कर रहे हैं।जो देखने वाला कर सका है बिना सोच-विचारे, वह हम सोच-विचार कर, करने की कोशिश कर रहे हैं। तो ऐसा हो सकता है।
बुद्ध तो जाग कर बुद्ध होते हैं। उनके पीछे जो अनुयायी होता है, वह सोच-विचार कर होता है। वह सब सोच-विचार कर तैयारी करता है। उसी ढंग का खाना खाता है, उसी ढंग से कपड़े पहनता है, वैसे ही चलता है, बैठता है, उठता है। वह पूछता है बुद्ध से कि कैसे उठते हो, आप कैसे बैठते हो, कैसे सोते हो? वह सब वैसे ही करता है। वह सब कर लेता है और फिर भी पाता है कि वह बात नहीं घटी। वह घट भी नहीं सकती क्योंकि वह जो प्रबुद्ध होना है वह बुद्धि का जोड़ नहीं है। असल में प्रबुद्ध होना एक अर्थ में बुद्धि का पूरी तरह असफल होकर टूट जाना है। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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