ज्यूं था त्यूं ठहराया – Jyun Tha Tyun Thahraya
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ओशो द्वारा दिए गए दस प्रश्नोत्तर प्रवचनों का संकलन।
ओशो द्वारा दिए गए दस प्रश्नोत्तर प्रवचनों का संकलन।
जिसे पकड़ कर हम परमात्मा तक पहुंच जाएं। ऐसा ही यह सूत्र है। सूत्र के अर्थ में ही सूत्र है। सेतु बन सकता है--परमात्मा से जोड़ने वाला। यूं तो पतला है बहुत, धागे की तरह, लेकिन प्रेम का धागा कितना ही पतला हो, पर्याप्त है।
‘ज्यूं था त्यूं ठहराया।’ मनुष्य स्वभाव से परमात्मा है, लेकिन स्वभाव से भटक गया। वह भटकाव भी अपरिहार्य था। बिना भटके पता ही नहीं चलता कि स्वभाव क्या है? जैसे मछली को जब तक कोई पानी से बाहर न निकाल ले, तब तक उसे याद भी नहीं आती कि क्या है पानी का राज, कि पानी जीवन है। यह तो जब मछली तट की रेत पर तड़फती है, तभी अनुभव में आता है। सागर में ही रही, सागर में ही बड़ी हुई, तो सागर का बोध असंभव है। भटके बिना बोध नहीं होता। भटके बिना बुद्धत्व नहीं होता।
इसलिए अपरिहार्य है भटकाव, लेकिन फिर भटकते ही नहीं रहना है! अनुभव में आ गया कि सागर है जीवन, तो फिर सागर की तलाश करनी है। धूप में तप्त रेत पर तड़फते ही नहीं रहना है।
और हम सब तड़फ रहे हैं। हमारा जीवन सिवाय तड़फन के और क्या है--एक विषाद, एक संताप, एक चिंताओं का झमेला, एक दुख स्वप्नों का मेला! एक दुखस्वप्न छूट नहीं पाता कि दूसरा शुरू हो जाता है। कतार लगी है--अंतहीन कतार! कांटे ही कांटे--जैसे फूल यहां खिलते ही नहीं! दुख ही दुख! सुख की बस आशा। और आशा धीरे-धीरे निराशा बन जाती है। जब बहुत बार आशा हार जाती है; हर बार टूट जाती है, बिखर जाती है, तो स्वभावतः उम्र के ढलते-ढलते, सांझ आते-आते मनुष्य हताश हो जाता है, निराश हो जाता है। सूर्यास्त के साथ होते-होते उसके भीतर भी कुछ जीवन टूट जाता है, बिखर जाता है।
मरने के पहले ही लोग मर जाते हैं। जीने के पहले ही लोग मर जाते हैं! जीते-जी जान नहीं पाते जीवन क्या है? और कारण--इतना ही कि मछली तड़फती रहती है रेत पर; पास ही सागर है; एक छलांग की बात है। एक कदम से ज्यादा दूरी नहीं है। लेकिन अपनी तड़फन में ही ऐसी उलझ जाती है, याद भी आती है सागर की। वे सुख के दिन विस्मृत भी नहीं होते। इसीलिए तो आकांक्षा है आनंद की।
आनंद की आकांक्षा इस बात का सबूत है कि कभी हमने आनंद जाना है। जिसे जाना न हो, उसकी आकांक्षा कैसी! जिसे कभी चखा न हो, स्वाद न लिया हो, उसकी अभीप्सा असंभव है। जाना है कभी; स्वाद अब भी हमारी जबान पर है। अभी भी भूली नहीं। कितनी ही बिसर गई हो बात, बिलकुल नहीं भूल गई, बिलकुल नहीं मिट गई! —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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