एक नया द्वार – Ek Naya Dwar
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ओशो के पांच अमृत प्रवचनों का संकलन।
ओशो के पांच अमृत प्रवचनों का संकलन।
जीवन भर की दौड़ का परिणाम मौत के अतिरिक्त और क्या होता है? जीवन भर चलने के बाद मौत के सिवाय हम और कहां पहुंचते हैं? और अगर मौत ही मंजिल है, और अगर मौत ही पहुंचना है, तो जीवन का क्या अर्थ है फिर? जीवन का क्या अभिप्राय है? दुख से बचना चाहते हैं, पीड़ा से बचना चाहते हैं, अशांति से बचना चाहते हैं, लेकिन पहुंच कहां पाते हैं। आनंद में पहुंचते हैं? अमृत में पहुंचते हैं? नहीं, पहुंचते हैं मृत्यु में, पहुंचते हैं अंधकार में, पहुंचते हैं विनाश में। और अगर जीवन का अंतिम फल मृत्यु होती हो, तो क्या यह पूरा जीवन ही मृत्यु के अंधकार में घिरा हुआ प्रतीत नहीं होगा? और जिससे हम बचना चाहते हैं अगर वही अंत में जीवन में उपलब्ध होता हो, तो क्या ऐसे जीवन को हम सफल जीवन कहेंगे? लेकिन हम सारे लोग वहीं पहुंचते हैं और हम जितना बचना चाहते हैं उतना ही वहीं पहुंचते हैं, जिससे हम बचना चाहते हैं वहीं पहुंच जाते हैं।
शायद उस बूढ़ी औरत को जो दिखाई पड़ा वह हमें दिखाई नहीं पड़ता, इसलिए यह दुर्घटना, इसलिए यह दुर्भाग्य घटित होता है। भीतर हमारे आग होती है, बुझाने की कोशिश हम बाहर करते हैं। आग नहीं बुझेगी, आग का बुझना असंभव है। भीतर ही अगर पानी भी खोजा जा सके, तो शायद आग बुझ सकती है।
सिकंदर मरा, जिस दिन मरा उस दिन जिस गांव में जिस राजधानी पर उसकी अरथी निकली, लाखों लोग देखने वाले इकट्ठे थे। एक अजीब बात सारे लोगों ने देखी जो कभी नहीं देखी गई थी, सिकंदर के दोनों हाथ अरथी के बाहर लटके हुए थे। हाथ तो अरथी के भीतर होते हैं, क्या कोई भूल हो गई थी? सिकंदर के साथ भूल नहीं हो सकती थी। हजारों लोग अरथी को लेकर बाहर आए थे, किसी को तो दिखाई पड़ ही जाता, अंधे नहीं थे लोग। रास्ते पर गांव में भीड़ विचार में पड़ गई, सिकंदर के हाथ अरथी के बाहर क्यों हैं?
एक ही प्रश्र्न उस दिन उस राजधानी में गूंजने लगा: सिकंदर के हाथ अरथी के बाहर क्यों हैं? सांझ होते-होते पता चला सिकंदर ने मरते वक्त कहा था: मेरे हाथ अरथी के बाहर रखना। लोगों ने पूछा: क्यों? उसने कहा: ताकि लोग देख सकें कि सिकंदर के हाथ भी मरते वक्त खाली हैं। उसने कहा: ताकि लोग देख सकें कि मरते वक्त सिकंदर के हाथ भी खाली हैं। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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