धर्म की यात्रा – Dharm Ki Yatra

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हम जीवन में जो भी करते हैं किसी प्रयोजन से करते हैं। कोई न कोई उसके अंत में लाभ हमारी दृष्टि में होगा। अगर महावीर से और बुद्ध से अगर हम यह पूछें कि महावीर क्यों बोल रहे हैं, कौन से प्रोफिट की, कौन से लाभ की इच्छा है? बोलने से उनका प्रयोजन क्या है, लाभ क्या है? हमें यह खयाल ही नहीं है कि जीवन में ऐसी क्रियाएं भी हो सकती हैं जिनका होना अपने आप में आनंद है, जिनके बाहर कोई लक्ष्य नहीं है। आप किसी को प्रेम करते हैं। आपने सोचा कि मैं प्रेम किसलिए कर रहा हूं? और अगर आप उत्तर दे सकें कि मैं इसलिए प्रेम कर रहा हूं, तो आपका प्रेम गर्क हो जाएगा—कोई प्रेम है ही नहीं। जो किसी कारण से हो, वह प्रेम नहीं है। क्योंकि कारण से आपका संबंध हो जाएगा, प्रेम विलीन हो जाएगा। अगर आप किसी को इसलिए प्रेम कर रहे हैं कि वह सुंदर है, तो सौंदर्य के विलीन होने से प्रेम बदल जाएगा। अगर आप किसी को प्रेम करते हैं कि वह गुणवान है, कल अगर उसके गुण, गुण बदल जाएं, तो प्रेम चला जाएगा। अगर आप किसी को इसलिए प्रेम कर रहे हैं कि उसके पास बहुत धन है—तो आप धन से प्रेम कर रहे हैं, गुण से प्रेम कर रहे हैं, सौंदर्य से प्रेम कर रहे हैं। लेकिन ये प्रेम नहीं है। ये प्रेम ....। जीवन में हम क्योंकि हर चीज प्रयोजन से करते हैं, इसलिए हम पूछते हैं कि हर चीज का प्रयोजन होना चाहिए। लेकिन जीवन में जब कोई भी शांति का और आनंद का अनुभव हो, तो क्रियाएं प्रेम से शून्य हो जाती हैं। क्रियाएं प्रेम से निस्पंद होने लगती हैं; आनंद से निस्पंद होने लगती हैं। और निश्चित ही जीवन में अगर भीतर आनंद उपलब्ध हो, तो आनंद का एक लक्षण है—वह बंटना चाहता है। दुख का एक लक्षण है—वह सिकुड़ना चाहता है। जब आप दुखी होते हैं, आप चाहते हैं कोई मिले नहीं, आप अकेले ही चले जाएं, एक अधेंरी कोठरी में बंद हो जाएं। अगर बहुत ही दुख है तो आप मर जाना चाहते हैं, आत्महत्या कर लेना चाहते हैं। ताकि किसी से मिलने की कोई संभावना ही न रह जाए। दुख में आप अकेले होना चाहते हैं, और आनंद में आप सबके साथ होना चाहते हैं। जो मनुष्य परिपूर्ण आंनद से भर जाता है, वह सारे जगत के साथ हो जाता है। इसलिए आपने देखा होगा, जब महावीर और बुद्ध और कृष्ण और क्राइस्ट दुखी हैं, जब उनके जीवन में दुख है; तो हम पाते हैं वे एकांत की तरफ जा रहे हैं। और जब उनके जीवन में आनंद है; तो हम पाते हैं वे बस्ती की तरफ वापस लौट रहे हैं। महावीर बारह वर्षों तक जंगल में थे, जब वे दुख में थे। और जब उन्हें आनंद उपलब्ध हुआ तो वे बस्ती की तरफ वापस लौट आए। आनंद बंटना चाहता है। और रहस्य यह है कि आनंद जितना बंटता है, उतना बढ़ता चला जाता है। यह कोई प्रयोग नहीं है; कोई डाक का प्रश्न नहीं है; कोई अर्थ नहीं है इसके पीछे। लेकिन अगर किसी को आनंद मिले, तो यह अनिवार्य हो जाता है कि वह लोगों से कह दें कि आनंद कैसे मिला है? अगर किसी को दिखाई पड़ता हो कि सामने रास्ते पर गड्ढा है, और आप उस तरफ जा रहे हों, तो उसके प्राण कहेंगे कि वह आपको कह दे—कि यह गड्ढा है। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज