बिरहिनी मंदिर दियना बार – Birahini Mandir Diyana Bar
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प्रसिद्ध संत यारी पर बोले गए ओशो के अमृत प्रवचन। इस प्रवचन माला में पांच प्रवचन यारी के वचनों पर व पांच प्रश्नोत्तरी है।
प्रसिद्ध संत यारी पर बोले गए ओशो के अमृत प्रवचन। इस प्रवचन माला में पांच प्रवचन यारी के वचनों पर व पांच प्रश्नोत्तरी है।
मैं मौलिक रूपांतरण की बात कर रहा हूं। और सिर्फ बात ही नहीं कर रहा हूं, उस नये आदमी को पैदा करने की चेष्टा में लगा हूं। यह कोई शास्त्रार्थ नहीं है जो मैं चला रहा हूं। शास्त्रार्थ में मेरा रस ही नहीं है। मैं तो नया आदमी पैदा करने में लगा हूं। वही सबूत होगा, वही गवाह होगा कि मैं जो कहता हूं वह हो सकता है या नहीं? क्या एक ऐसा व्यक्ति पैदा किया जा सकता है, जो हिंदू न हो, मुसलमान न हो, ईसाई न हो, भारतीय न हो, पाकिस्तानी न हो, जापानी न हो, चीनी न हो?
किया जा सकता है! उसी का प्रयोग चल रहा है। मेरा संन्यासी विश्व का नागरिक है। उसकी कोई और राष्ट्रीय मान्यता नहीं है। उसका कोई चर्च नहीं है, कोई संप्रदाय नहीं है। वह समस्त चर्चों और संप्रदायों से मुक्त व्यक्ति है। और मेरा संन्यासी जीवन को दंड नहीं मानता है, अनुग्रह मानता है। और मेरा संन्यासी आवागमन से मुक्त नहीं हो जाना चाहता है।
मेरा संन्यासी अपनी कोई चाह नहीं रखता है; परमात्मा जैसे जिलाए उसमें राजी है--जो उसकी मर्जी!
और मेरा संन्यासी जीवन के किन्हीं भी अंगों का तिरस्कार नहीं करता है। मेरा संन्यासी जीवन की समग्रता को स्वीकार करता है और उस समग्रता को जीने की चेष्टा करता है। मेरा संन्यासी चेष्टा में संलग्न है कि उसके भीतर कोई भी अंग निषिद्ध न हो। क्योंकि जो भी अंग हम निषिद्ध करते हैं, वह अंग बदला लेता है। अगर कामवासना का निषेध करोगे, तो कामवासना बदला लेगी, तुम्हारे चित्त को कामवासना ही कामवासना से भर देगी। अगर तुम क्रोध को दबाओगे, तो तुम्हारे भीतर क्रोध रोएं-रोएं में समा जाएगा। अगर तुम शरीर का दमन करोगे, तो तुम यह मत सोचना कि तुम आत्मवादी हो जाओगे; तुमसे ज्यादा शरीरवादी खोजना मुश्किल हो जाएगा। अगर तुम बाहर के जगत को इनकार करके हिमालय की गुफा में भाग जाना चाहोगे, तो हिमालय की गुफा में बैठ कर भी तुम बाहर के जगत का ही चिंतन-मनन करोगे।
मैं पूरे मनुष्य में भरोसा करता हूं। बाहर भी अपना है, भीतर भी अपना है। बाजार भी अपना है और मंदिर भी अपना है। धन भी अपना है और ध्यान भी अपना है। प्रेम में भी डूबो और समाधि को भी मत भूलो। दोनों पंखों को एक साथ सम्हाल लेना है। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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