अजहूं चेत गंवार – Ajahun Chet Ganwar
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प्रसिद्ध संत पलटू के वचनों पर ओशो द्वारा दिए गए इक्कीस अमृत प्रवचन की श्रृंखला जिनमें से प्रत्येक दूसरे दिन ओशो ने साधकों के प्रश्नों के जवाब दिए हैं।
प्रसिद्ध संत पलटू के वचनों पर ओशो द्वारा दिए गए इक्कीस अमृत प्रवचन की श्रृंखला जिनमें से प्रत्येक दूसरे दिन ओशो ने साधकों के प्रश्नों के जवाब दिए हैं।
पलटूदास के संबंध में बहुत ज्यादा ज्ञात नहीं है। संत तो पक्षियों जैसे होते हैं। आकाश पर उड़ते जरूर हैं, लेकिन पद-चिह्न नहीं छोड़ जाते। संतों के संबंध में बहुत कुछ ज्ञात नहीं है। संत का होना ही अज्ञात होना है। अनाम। संत का जीवन अंतर-जीवन है। बाहर के जीवन के तो परिणाम होते हैं इतिहास पर, इतिवृत्त बनता है। घटनाएं घटती हैं बाहर के जीवन की। भीतर के जीवन की तो कहीं कोई रेख भी नहीं पड़ती। भीतर के जीवन की तो समय की रेत पर कोई अंकन नहीं होता। भीतर का जीवन तो शाश्वत, सनातन, समयातीत जीवन है। जो भीतर जीते हैं उन्हें तो वे ही पहचान पाएंगे जो भीतर जाएंगे। इसलिए सिकंदरों, हिटलरों, चंगीज और नादिरशाह, इनका तो पूरा इतिवृत्त मिल जाएगा, इनका तो पूरा इतिहास मिल जाएगा। इनके भीतर का तो कोई जीवन होता नहीं, बाहर ही बाहर का जीवन होता है; सभी को दिखाई पड़ता है।
राजनीतिज्ञ का जीवन बाहर का जीवन होता है; धार्मिक का जीवन भीतर का जीवन होता है। उतनी गहरी आंखें तो बहुत कम लोगों के पास होती हैं कि उसे देखें; वह तो अदृश्य और सूक्ष्म है।
अगर बाहर का हम हिसाब रखें तो संतों ने कुछ भी नहीं किया। तो, तो सारा काम असंतों ने ही किया है दुनिया में। असल में कृत्य ही असंत से निकलता है। संत के पास तो कोई कृत्य नहीं होता। संत का तो कर्ता ही नहीं होता तो कृत्य कैसे होगा? संत तो परमात्मा में जीता है। संत तो अपने को मिटा कर जीता है--आपा मेट कर जीता है। संत को पता ही नहीं होता कि उसने कुछ किया, कि उससे कुछ हुआ, कि उससे कुछ हो सकता है। संत होता ही नहीं। तो न तो संत के कृत्य की कोई छाया पड़ती है और न ही संत के कर्ता का कोई भाव कहीं निशान छोड़ जाता है। —ओशो
Publisher | Osho Media International |
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Type | फुल सीरीज |
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