नये समाज की खोज – Naye Samaj Ki Khoj

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सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं पर प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए अठारह अमृत प्रवचनों का संकलन
नये समाज की खोज – Naye Samaj Ki Khoj
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सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं पर प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए अठारह अमृत प्रवचनों का संकलन

‘नये समाज की खोज’ नई खोज नहीं है, शायद इससे ज्यादा कोई पुरानी खोज न होगी। जब से आदमी है तब से नये की खोज कर रहा है। लेकिन हर बार खोजा जाता है नया, और जो मिलता है वह पुराना ही सिद्ध होता है। क्रांति होती है, परिवर्तन होता है, लेकिन फिर जो निकलता है वह पुराना ही निकलता है। शायद इससे बड़ा कोई आश्चर्यजनक, इससे बड़ी कोई अदभुत घटना नहीं है कि मनुष्य की अब तक की सारी क्रांतियां असफल हो गई हैं। समाज पुराना का पुराना है। सब तरह के उपाय किए गए हैं, और समाज नया नहीं हो पाता। समाज क्यों पुराना का पुराना रह जाता है? नये समाज की खोज पूरी क्यों नहीं हो पाती? इस संबंध में पहली बात मैं आपसे यह कहना चाहूंगा कि एक बहुत गहरी भूल होती रही है इसलिए नया समाज नहीं जन्म सका। और वह भूल यह होती रही है कि समाज को बदलने की कोशिश चलती है, आदमी को बिना बदले हुए। और समाज सिर्फ एक झूठ है; समाज सिर्फ एक शब्द है। समाज को कहीं ढूंढने जाइएगा तो मिलेगा नहीं। जहां भी मिलता है आदमी मिलता है, समाज कहीं नहीं मिलता! जहां भी जाइए व्यक्ति मिलता है, समाज कहीं नहीं मिलता! समाज को खोजा ही नहीं जा सकता, नया करना तो बहुत मुश्किल है। मिल जाता तो नया भी कर सकते थे। समाज मिलता ही नहीं; जब मिलता है तब व्यक्ति मिलता है। और परिवर्तन के लिए जो चेष्टा चलती है वह समाज के परिवर्तन के लिए चेष्टा चलती है। इसलिए समाज नहीं बदल पाता है। और फिर समाज मिल भी जाए तो बदलेगा कौन? यदि व्यक्ति बिना बदला हुआ है तो समाज को बदलेगा कौन? बहुत बार क्रांति होती है। फिर क्रांति के बाद पुराने आदमी के हाथ में समाज चला जाता है। गुलामी को तोड़ने की हजारों साल से कोशिश चल रही है। पुरानी गुलामी टूटती मालूम पड़ती है, टूट भी नहीं पाती कि फिर नई शक्ल में पुरानी गुलामी खड़ी हो जाती है। गुलाम बनाने वाले बदल जाते हैं और गुलाम बनाने वालों के चेहरों के रंग बदल जाते हैं, गुलाम बनाने वालों के कपड़े और झंडे बदल जाते हैं--गुलामी अपनी जगह कायम रहती है। क्योंकि आदमी का दिमाग गुलाम है, उसे बिना बदले दुनिया में कभी गुलामी नहीं टूट सकती। अंग्रेज की गुलामी टूट सकती है, मुसलमान की गुलामी टूट सकती है, हिंदू की गुलामी टूट सकती है, लेकिन गुलामी नहीं टूट सकती; गुलामी नई शक्लों में फिर खड़ी हो जाती है। पुरानी की पुरानी गुलामी फिर सिंहासन पर बैठ जाती है। —ओशो
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Publisher Osho Media International
Type फुल सीरीज