मेरा मुझमें कुछ नहीं – Mera Mujhmein Kuchh Nahin

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ओशो की कबीर पर दस प्रवचनों की एक और प्रवचनमाला जिसमें भी पांच प्रवचन कबीर के पदों पर व पांच प्रवचन प्रश्नों के जवाब।
ओशो की कबीर पर दस प्रवचनों की एक और प्रवचनमाला जिसमें भी पांच प्रवचन कबीर के पदों पर व पांच प्रवचन प्रश्नों के जवाब।

मेरा मुझमें कुछ नहीं – Mera Mujhmein Kuchh Nahin
अंधेरा नया नहीं, अति प्राचीन है। और ऐसा भी नहीं है कि प्रकाश तुमने खोजा न हो। वह खोज भी उतनी ही पुरानी है, जितना अंधेरा। क्योंकि यह असंभव ही है कि कोई अंधेरे में हो और प्रकाश की आकांक्षा न जगे। जैसे कोई भूखा हो और भोजन की आकांक्षा पैदा न हो। नहीं, यह संभव नहीं है।

भूख है तो भोजन की आकांक्षा जगेगी।
प्यास है तो सरोवर की तलाश शुरू होगी।
अंधेरा है तो आलोक की यात्रा पर आदमी निकलता है।
अंधेरा भी पुराना है, आलोक की आकांक्षा भी पुरानी है; लेकिन आलोक मिला नहीं। उसकी एक किरण के भी दर्शन नहीं हुए। भटके तुम बहुत, खोजा भी तुमने बहुत, लेकिन परिणाम कुछ हाथ नहीं आया। बीज तो तुमने बोए, लेकिन फसल तुम नहीं काट पाए।

क्योंकि अंधेरे में चलने वाले आदमी को प्रकाश का कोई भी तो पता नहीं। उसने प्रकाश कभी जाना नहीं। वह उसे खोजेगा कैसे? वह किस दिशा में यात्रा करेगा? और अगर अपने से ही पूछता रहा मार्ग, तो भटकेगा ही। उसकी भटकन वर्तुलाकार हो जाएगी। चलेगा बहुत, पहुंचेगा कहीं भी नहीं।

किसी से पूछना पड़ेगा। अपने से थोड़ा ऊपर उठना पड़ेगा। किसी से पूछना पड़ेगा, जिसने प्रकाश जाना हो, जिसने जीया हो उस अनुभव को; जिसके जीवन में वह अमृत-धार बही हो। गुरु का इतना ही अर्थ है। जो तुम खोज रहे हो, वह उसे मिल गया; जिसे तुम चाहते हो, वह उसकी संपदा हो गई; जो तुम होओगे, वह हो चुका है।

तुममें और गुरु में इतना सा ही फासला है। तुम बीज हो, वह वृक्ष है; तुम संभावना हो, वह समाप्ति है; तुम प्रारंभ हो, वह अंत है। जरा सा ही फासला है। शायद एक कदम का फासला है। लेकिन अपने से बाहर उठे बिना मार्ग न मिलेगा। तुम ही खोजोगे, तुम्हारी खोज तुम्हारे अंधकार की ही खोज होगी। तुम ही सोचोगे, तुम्हारा सोचना तुम्हारे अनुभव के पार न जाएगा।

और बहुत-बहुत बार एक ही उलझन में उलझे रहने से अनेक परिणाम होते हैं। या तो उलझन दिखाई ही पड़नी बंद हो जाती है, तुम आदी हो जाते हो। बहुत लोग आदी हो गए हैं अंधकार के। उन्होंने खोज ही बंद कर दी। या तुम्हारे जो ढंग, अनेक बार प्रयोग तुमने किए हैं, वे इतने थिर हो जाते हैं कि तुम उनका अंधा अनुकरण किए चले जाते हो। यांत्रिक ढंग से दोहराए चले जाते हो। फिर तुम यह भी नहीं सोचते कि कोई निष्कर्ष हाथ आता है या नहीं आता? मैंने सुना है, एक सूफी फकीर के आश्रम में प्रविष्ट होने के लिए चार स्त्रियां पहुंचीं। उनकी बड़ी जिद थी, बड़ा आग्रह था। ऐसे सूफी उन्हें टालता रहा, लेकिन एक सीमा आई कि टालना भी असंभव हो गया। सूफी को भी दया आने लगी, क्योंकि वे द्वार पर बैठी ही रहीं--भूखी और प्यासी; और उनकी प्रार्थना जारी रही कि उन्हें प्रवेश चाहिए। —ओशो
In this title, Osho talks on the following topics:
ज्ञान, ध्यान, मृत्यु, अहंकार, धर्म, नीति, संदेह, असहाय अवस्था, समर्पण, मौन
अधिक जानकारी
Type फुल सीरीज
Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13 978-0-88050-970-1
Number of Pages 1502
File Size 2.45 MB
Format Adobe ePub